अस्थमा रोगियों के लिए दवा का वितरण वर्ष में सिर्फ एक दिन होता है। शरद पूर्णिमा पर गुरुद्वारा गुरु का ताल पर हर साल अस्थमा के रोगियों को दवा दी जाती है। इस साल भी 13 अक्तूबर को यह दवा दी जाएगी। दवा के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से मरीज आते हैं। गुरुद्वारा गुरु का ताल में संत बाबा मोनी सिंह ने इस परंपरा को शुरू किया था। 1971 में पहली बार रोगियों को दवा दी गई थी।
यह दवा अस्थमा और एलर्जी के रोगियों को दी जाती है। दवा को खीर में मिलाकर दिया जाता है। खीर को गाय के दूध में बनाया जाता है। चावल भी विशेष किस्म के इस्तेमाल किए जाते हैं। खीर एक दो नहीं बल्कि कई क्विंटल दूध में बनती है। मिट्टी के सकोरे में खीर और दवा मिलाकर रोगियों को दी जाती है। संत बाबा प्रीतम सिंह बताते हैं कि दवा खाने का बाद रोगियों को गुरुद्वारे में ही एक-दो किलोमीटर नंगे पैर चलने को कहा जाता है।
रोगी का शरीर देखकर ही दवा की मात्रा निर्धारित की जाती है। दवा खाने के बाद कई परहेज हैं जैसे तेल, खट्टा, वसा की चीजों से दूरी रखनी होती है। दवा खाने के बाद दूसरे दिन सुबह रोगियों को मूली की सब्जी खिलाई जाती है। इस दवा का सेवन करने के लिए देश के कई हिस्सों से रोगी यहां आते हैं। गुरुद्वारे में सभी के रुकने का प्रबंध भी किया जाता है।