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‘अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल’ में film”बाचा: द राइजिंग विलेज”…

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रोड्यूसर मनोज पटेल और सहायक प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह की फिल्म ‘बाचा: द राइजिंग विलेज’ कोलकाता में आयोजित 5वें अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग और प्रतियोगिता के चयन किया गया है। सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन संस्थान, कोलकाता की ओर से यह फिल्म फेस्टिवल 6 से 8 नवंबर,2019 को आयोजित किया जाएगा।

यह फिल्म महोत्सव इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल-2019 का एक हिस्सा है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है। इस समारोह में दो श्रेणी (स्वतंत्र फिल्म निर्माता और छात्र फिल्म निर्माता) में फ़िल्में स्वीकार की गई हैं। प्रतियोगिता का विषय अनुसंधान, नवोन्मेष और साइंस एम्पाउरिंग नेशन है। फिल्म निर्देशक मनोज पटेल और लोकेन्द्र सिंह की फिल्म ‘बाचा : द राइजिंग विलेज’ को ‘स्वतंत्र फिल्म निर्माता’ श्रेणी में चुना गया है। इस श्रेणी में देशभर से केवल 31 फ़िल्में ही चुनी गई हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट केशव पटेल ने लिखी है। सिनेमेटोग्राफी नितिन पवार ने की है और आवाज दी है प्रज्ञा चतुर्वेदी ने।

फिल्म के केंद्र में अनुसूचित जनजाति गांव-
बैतूल जिले के पास स्थित अनुसूचित जनजाति बाहुल्य बाचा गांव अपने वैज्ञानिक नवाचारों के लिए चर्चा में हैं। विज्ञान की परम्परागत पद्धति और सौर ऊर्जा के नवाचारी प्रयोगों से बाचा में जो सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं, उन्हें ही केंद्र में रख कर मनोज पटेल और लोकेन्द्र सिंह ने ‘बाचा: द राइजिंग विलेज’ फिल्म का निर्माण किया है। फिल्म निर्माण का उद्देश्य वैज्ञानिक सोच, प्रयोग और नवाचारों को सामने लाना है एवं अन्य गांवों को बाचा से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करना है। यह फिल्म बताती है कि असंभव कुछ नहीं, छोटे प्रयासों से ही तस्वीर बदली जा सकती है।

आदर्श गांव के रूप में बाचा-
निर्देशक-संपादक मनोज पटेल ने कहा कि इस वृत्तचित्र की कहानी मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के एक छोटे से अनुसूचित जनजाति गांव “बांचा” के बारे में है। यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म हमें प्रेरित करती है कि आधुनिक और पारंपरिक विज्ञान के छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर,”बांचा” जैसा कोई भी गांव एक आदर्श गांव के रूप में खड़ा हो सकता है।

हर कोई जाने बाचा की कहानी-
फिल्म प्रोड्यूसर लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि चार-पांच वर्ष पहले बाचा गांव पेयजल, सिंचाई, खेती, गंदगी जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रहा था, लेकिन उसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता मोहन नागर ने गांव वालों को साथ लेकर परम्परागत विज्ञान का सहारा लिया और एक पिछड़े गांव को वहीं के लोगों ने आदर्श गांव में परिवर्तित कर दिया है। हम चाहते हैं कि बाचा की कहानी हर कोई जाने,ताकि अन्य गांव भी आदर्श बनें। बाचा जल संरक्षण और सौर ऊर्जा का बड़ा सन्देश देता है। “इलेक्ट्रिक सोलर इंडक्शन” और “बोरी बंधन” जैसे अनूठे प्रयोग अनुकरणीय हैं।

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