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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : विलुप्त होती भाषाओं को बचाने की चुनौतियाँ

किशन भवनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फ़रवरी 2022 को मनाया जा रहा है। इस साल की थीम का विषय है बहुभाषी सीखने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, चुनौतियाँ और अवसर। बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाना, सभी के लिए गुणवत्ता युक्त शिक्षण देना और ऐसी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर इस साल का विषय केंद्रित है। वर्तमान प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग की प्रौद्योगिकी में आज शिक्षा में कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है। यह सभी के लिए समान और समावेशी है। साथ ही आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासों में तेजी ला सकता है।

भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एक विश्वव्यापी वार्षिक उत्सव है। पहली बार यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को घोषित किया था। इसे औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 56/262 को अपनाने के साथ मान्यता दी थी। मातृभाषा दिवस एक व्यापक पहल का हिस्सा है। 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 61/266, में अपनाई गई दुनिया के सभी देशों में उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं का संरक्षण है। इसे 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में भी स्थापित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार बांग्लादेश की पहल थी। बांग्लादेश में 21 फरवरी को वर्षगांठ मनायी जाती है। बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के लोगों ने बांग्ला भाषा की मान्यता के लिए लड़ाई लड़ी थी। यह भारत के पश्चिम बंगाल में भी मनाया जाता है।

दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6-7 हज़ार भाषाओं में से कम से कम 43 फ़ीसदी लुप्तप्राय हैं। केवल कुछ सौ भाषाओं को वास्तव में शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक डोमेन में जगह दी गई है। डिजिटल दुनिया में सौ से भी कम का उपयोग किया जाता है। अकेले भारत में 22 भाषाएँ आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त हैं। लगभग 1635 मातृभाषाएं और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं| अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इस बात की याद दिलाता है कि भाषा हमें कैसे जोड़ती है, कैसे हमें सशक्त बनाती है और कैसे दूसरों को हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने में हमारी मदद करती है। इसी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, हर साल भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।

हम भारतीय नागरिक विश्व में सबसे अधिक सौभाग्यशाली हैं। क्योंकि मानवीय बौद्धिक क्षमता और भाषाई ज्ञान का अपार मृदुल बहुभाषी नागरिकों में  ख़जाना है। हमारी मातृभाषा ही निवेदिता हमारी शक्ति है। हर भारतीय मातृभाषा का गौरवशाली इतिहास समृद्धि व साहित्य है। भारतीय अनेकता में एकता की मिठास से वैश्विक स्तर पर भारतीय भाषा और साहित्य की प्रतिष्ठा बढ़ी है, जिसे रेखांकित करना हर भारतीय के लिए गौरव की बात है।

बात अगर हम हमारी मातृभाषा और भाषाई विविधता के अणखुटख़जाने को रेखांकित करने के महत्व की करें तो भारतीय बौद्धिक क्षमता विश्व प्रसिद्ध है और 135 करोड़ जनसांख्यकीय तंत्र में हर व्यक्ति के पास अपने ढंग की एक विशेष कला है। यह कला उसे उनके भाषाई इतिहास साहित्य, पूर्वजों से मिली है, जिसका उपयोग करने के लिए उनके पास उचित और पर्याप्त प्लेटफार्म नहीं है। अगर है भी तो सभी के लिए नहीं है। जिसे हमें रेखांकित कर उनके लिए अपना कौशल दिखाने विश्वविद्यालय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में भाषाई विविधता के कड़ियों को जोड़ने के लिए एक अभियान चलाना होगा और उस कौशल को बाहर निकालकर हमें तराशना होगा। तभी आत्मनिर्भर भारत में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
भाषाई विविधता को अगर एक माला में पिरोया जाए, तो इसमें राजभाषा हिंदी को एक सखी के रूप में प्रयोग करना होगा। हमारी भाषाई विविधता को हमारी शक्ति बनाना होगा। भारत खूबसूरत मानवीय बोलियों, भाषाओं का एक विश्व प्रसिद्ध अभूतपूर्व संगम है। भारत 68 फ़ीसदी युवाओं वाला एक युवा देश है जहां युवाओं को अपनी मातृभाषा में बोलने पर गर्व महसूस होना चाहिए।
हमारी विशाल मातृभाषाओंं और भारतीय भाषाओं के साहित्य ग्रंथों में यह हमारी पहचान है। यूं तो भारत में 22  भाषाओं को संविधान में मान्यता दी गई है, लेकिन पूरे भारत में भाषाएं और उपभाषाएं हजारों की संख्या में होंगी। इसकी रक्षा करना और विलुप्तता से बचाने की जवाबदारी, हमारे आज के युवाओं के ऊपर है क्योंकि आज हमारे देश की 68 प्रतिशत आबादी युवा है। इस युवा भारत को ही हमारी संस्कृति, मातृभाष और क्षेत्रीय भाषाओं को जीवित रखना है। इसलिए, हमें अपनी मातृभाषा को महत्व देना होगा। अपने समाज, घर, क्षेत्र में अपनी मातृभाषा में बात करना होगा, ताकि उसे हम विलुप्तता से बचा सकें। आज इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ गई है, क्योंकि आज के बदलते परिवेश में हमारे देश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचलन कुछ तेज़ी से बढ़ रहा है। खासकर के युवाओं में इसका क्रेज अधिक महसूस किया जा रहा है। बड़े शहरों से होकर अब हमारे छोटे शहरों गांवों में भी फैलने की संभावना बढ़ गई है। जिसका संज्ञान बुजुर्गों को लेना होगा और युवाओं को अपनी मातृभाषा में बोलने, संस्कृति, साहित्यग्रंथों, भाषाओं की तरफ ध्यान आकर्षित कराकर उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन देना होगा। ताकि, भारतीय धरोहर को विलुप्तता से बचाया जा सके। हमने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से कई बार देखा, पड़ा, वह सुना है कि हमारे माननीय उपराष्ट्रपति का संज्ञान इस भाषाई क्षेत्र की ओर बहुत अधिक है। हर मौके पर इस दिशा में सुझाव, मार्गदर्शन, अपील प्रोत्साहन देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते जो काबिले तारीफ है।

अतः अगर हम उपरोक्त गुणों का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी 2022 बहुत महत्वपूर्ण है तथा मात्र भाषाएं हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने एक दूसरे से जोड़ने सशक्त बनाने है सुनीता संवाद एकजुटता को प्रेरित करने का अचूक अस्त्र मंत्र है तथा वर्तमान प्रौद्योगिकी व डिजिटल युग में मातृभाषा सहित बहुभाषी शिक्षा चुनौतियों का समाधान करने का अचूक अस्त्र मंत्र साबित होंगे।

 

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