लखनऊ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांति के महत्व को स्वीकार करते हुए 1981 में एक प्रस्ताव पास किया था 21 सितम्बर को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस सारे विश्व में मनाया जाता है। विश्व शांति दिवस मुख्य रूप से सारी दुनियां में शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। इसके लिए विश्व में फैली हिंसा, आतंकवाद और युद्धों को 21 सितम्बर के दिन दूर करने का हर देश तथा उसके नागरिकों द्वारा प्रतिज्ञा ली जाती है। शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र का मुख्य ध्येय दुनिया भर में शांति स्थापित करना है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ का 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापना हुई थी। विश्व की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों की उपेक्षा करके 200 से अधिक देशों को समेटे इस दुनियां की वर्तमान स्थिति अत्यन्त दुःखदायी है।
जो व्यक्ति या समुदाय इतिहास से सबक नहीं सीखता है वह इसे दोहराने के कारण बर्बाद हो जाता है-
सारी दुनिया घातक शस्त्रों की होड़ तथा आतंकवाद के जख्मों से घायल है। ऐसे में जब दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के 100 साल पूरे कर चुकी है, तब यह प्रश्न युगानुकूल है कि आखिर दुनिया किस ओर बढ़ रही है? शान्ति की ओर या युद्ध की ओर। दो महायुद्धों के महाविनाश से भी मानव जाति की नफरत नहीं मिटी है वरन् दुनिया अन्दर ही अन्दर सुलग रही है। किसी महापुरूष ने कहा है कि जो व्यक्ति या समुदाय इतिहास से सबक नहीं सीखता है वह इसे दोहराने के कारण बर्बाद हो जाता है। इस सदी में दो विश्व युद्ध तथा दो देशों के बीच भयानक युद्धों में लाखों लोगों ने अपनी जान गवायी है। वास्तव में आज दुनियां धार्मिक, जातीय और राजनीतिक हिंसा के दौर से गुजर रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार अकेले सीरिया में ही पिछले सात सालों में 2.20 लाख लोगों की मौत हो चुकी हैं। इसके साथ ही सोमालिया, नाइजीरिया, ईरान, अफगानिस्तान सहित दुनियाँ के तमाम देश युद्ध और हिंसा की चपेट में हैं।
संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में शान्ति की परम आवश्यकता है-
संयुक्त राष्ट्र संघ, उसकी तमाम संस्थाएं, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को अपना शांति दूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के महासचिव ने वर्ष 2013 के अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस (21 सितम्बर) को पहली बार युद्धों पर अंकुश लगाने के लिए ‘‘शान्ति की शिक्षा’’ को समर्पित किया था। इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का उद्घाटन यूएनओ के न्यूयार्क में स्थित हेडक्वार्टर में “पीस रिंग” बजाकर होता है। हमारे विद्यालय को शान्ति की शिक्षा बच्चों के माध्यम से सारे विश्व को देने के कारण वर्ष 2002 में संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई यूनेस्को द्वारा शान्ति शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है-
शांति किसे प्यारी नहीं होती? शांति की ही खोज में मनुष्य अपना सारा जीवन न्यौछावर कर देता है लेकिन अफसोस आज इंसान दिन-प्रतिदिन इस शांति से दूर होता चला जा रहा है। आज पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। विश्व शांति का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है। हमें ऐसे प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने है जिससे युद्धों तथा आतंकवाद पर हमेशा के लिए अंकुश लग जाये। ताकि किसी महिला का सुहाग न उजड़े, किसी मां की गोद खाली न हो तथा कोई बच्चा अनाथ न हो। हमें यह समझना होगा कि दूसरों का हित करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।
हमें बाल्यावस्था में ही शान्ति के विचार मानव मस्तिष्क में डालने होंगे-
युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए हमें मानव मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार डालने होंगे। मनुष्य को विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। इसलिए संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शान्ति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। मानव इतिहास में अब वह समय आ गया है जब भारत को अपनी वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के विश्व एकता के विचार के अनुरूप सारे विश्व में विश्व एकता तथा विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए एक कदम बढ़ाना होगा। अहिंसा के मसीहा महात्मा गाँधी के यह विचार बरबस हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं कि यदि हम वास्तव में विश्व से युद्धों को समाप्त करना चाहते है तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करना पड़ेगी। परमाणु हथियारों व मानव संहारक मिसाइलों के इस युग में युद्ध लड़े तो जा सकते हैं, किन्तु जीते नहीं जा सकते। यह सृष्टि भगवान का आंगन है।
विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन विश्व की अन्तिम आशा है-
वर्ष 2001 से मेरे संयोजन में विश्व के 2 अरब 50 करोड़ बच्चे (जो अब पैदा हो चुके है तथा जो आगे जन्म लेने वाले हैं) के सुरक्षित भविष्य के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है। विगत 19 वर्षों में आयोजित हुए इन सम्मेलनों में 133 देशों के 1222 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश व शांति प्रचारक प्रतिभाग कर चुके हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता महान अर्थशास्त्री जान टिनबेरजेन ने कहा है कि ”राष्ट्रीय सरकारें विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों का हल अधिक समय तक हल नहीं कर पायेंगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व का न्यायालय का गठन शीघ्र करने की आवश्यकता है।’’
विश्व संसद के गठन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को पत्र-
संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पावर सिस्टम होने के कारण मानव जाति के हित में कोई निष्पक्ष फैसला नहीं हो पाता है इसलिए विश्व के सभी देशों को मिलकर संरासं से वीटो पावर सिस्टम समाप्त करके विश्व की एक संसद का गठन करने के लिए आवश्यक कदम उठाना चाहिए। एक प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून होने से कोई देश किसी आतंकवादी को शरण नहीं दे सकेंगा। आज दुर्भाग्यवश वीटो पावर सिस्टम के कारण संरासं विश्व में आतंकवाद, हिंसा एवं युद्धों को रोकने में असफल होता चला जा रहा है इसलिए यह वीटोपावर सिस्टम मानवता के हित में नहीं हैं।
विश्व नागरिकों के द्वारा ही विश्व में शांति स्थापित किया जा सकता है-
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं, लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते हैं, जबकि नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मण्डेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।
21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए, जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो, इसलिए 21वीं सदी की शिक्षा के माध्यम से हमें प्रत्येक बालक को विश्व नागरिक के रूप में विकसित करते हुए उनका दृष्टिकोण विश्वव्यापी बनाना चाहिए।
डॉ. जगदीश गांधी