2002 के गुजरात दंगों पर बनाई गई जस्टिस नानावती मेहता आयोग की फाइनल रिपोर्ट आज राज्य विधानसभा में पेश की जाएगी. गोधरा ट्रेन जलने और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के कारणों की जांच के लिए नानावती आयोग का गठन किया गया था. आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट 25 सितंबर 2008 को विधानसभा में पेश किया था.
पांच साल बाद पेश होगी रिपोर्ट
इसके बाद आयोग ने अपनी फाइनल रिपोर्ट 18 नवंबर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसे रोक दिया था. अब पांच साल बाद इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया जाएगा.
गोधराकांड के बाद भड़क गए थे दंगे
बता दें कि साबरमती एक्सप्रेस में 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर आग लग गई थी. इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. गोधरा ट्रेन अग्निकांड में मारे गए अधिकतर लोग कार सेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे. मामले की जांच करने के लिए गुजरात सरकार की तरफ से गठित नानावती आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि एस-6 कोच में लगी आग दुर्घटना नहीं थी, बल्कि उसमें आग लगाई गई थी.
गौरतलब है कि 2002 में दंगों में गुजरात पुलिस पर इस मामले में निष्क्रिय रहने के आरोप लगे थे. तीन दिन तक चली हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे जबकि कई लापता हो गए. आरोप लगते हैं कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं की. बाद में केंद्र की यूपीए सरकार ने दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था जिसने अपनी रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दे दी थी.
वहीं इससे पहले गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 11 दोषियों की सजा फांसी से उम्रकैद में बदल दी थी. एसआईटी कोर्ट ने 1 मार्च, 2011 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में 31 लोगों को दोषी पाया था और 63 को बरी कर दिया था. अदालत ने दोषी पाए गए लोगों में से 11 लोगों को फांसी और 20 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.