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मजदूरों के हितों की रक्षा जरूरी : लाल बिहारी लाल

जब इस धरती का निर्माण हुआ तो इसमें पहले मजदूर के रुप में त्रिदेवों –ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश ने काम किया। फिर अलग अलग रुप से काम को श्रेणियों में बांट दिया गया। निर्माण का काम ब्रम्हा जी,कार्यपालिका का काम विष्णु जी और न्यायपालिका का काम भगवान महादेव को दिया गया। इन सब पर निगरानी रखने का काम शनी देव को सौंपा गया। कलांतर में मजदूरों के देवता भगवान विश्वकर्मा को बनाया गया। धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई औऱ अलग-अलग देश बनते गये। इसके साथ ही मजदूरी औऱ मजदूरों की परिभाषा भी बदलती गई। इसी के साथ शुरू हुआ मजदूरों का शोषण।

1889 में समाजवादी सम्मेलन में हे मार्केट में

मजदूरों के शोषण के विरुद्ध पहली आवाज 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागों शहर के हे-मार्केट पार्क में मजदूरों ने कार्य को 8 घंटे की समय सीमा को तय करने के मांग को लेकर एकत्रित और संगठित होकर उठाई। तभी पास में एक बम विस्फोट हुआ औऱ इस घटना को स्थानीय पुलिस ने मजदूरों का कृत्य समझकर उनको तितर-बितर करने के लिए फायरिंग कर दिया। इसमें 7 मजदूरों की मौत मौके पर ही हो गई और सैकड़ों मजदूर घायल हुए। 1889 में समाजवादी सम्मेलन में हे मार्केट में मारे गये निर्दोष मजदूरों के सम्मान में प्रतिवर्ष 1 मई को मजदूर दिवस (Labour Day) मनाया जाने के संकल्प पास हुआ।

कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार द्वारा 1 मई 1923 को

उस समय तो सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा पर कलांतर में 7 मजदूरों की क़ुरबानी रंग लाई औऱ अमेरिकी सरकार ने उनकी मांग मानते हुए मजदूरो के काम की समय सीमा 8 घंटे तय कर दिया। जो भारत सहित लगभग 80 देशों में धीरे धीरे मान लिया गया। भारत में इस दिवस को काममकाजी लोगो के सम्मान के तौर पर मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरुआत भारतीय लेबर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार द्वारा 1 मई 1923 को मद्रास में शुरुआत की गई। हालांकि इसे तब मद्रास दिवस के रुप में मनाया जाता था, जो बाद में मजदूर दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।

किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, “किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है।” सिखों के गुरु नानकदेव जी ने भी मजदूरों के हितों में आवाज उठाई थी। इस तरह मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए अब तक भारत में कई कानून भी बनाये गये। अलग से एक मंत्रालय भी बनाया गया, लेकिन आज भी मजदूरो के हीतो की रक्षा समुचित रुप में नहीं हो पाता रही है। हम महज इस बात को लेकर आशान्वित ही रह सकते हैं कि आने वाले दिनों में इनकी दशा एवं दिशा जरुर सुधरेगी। “कभी दबे थे,अभी दबे हैं। कब तक दबे रहेंगे। आओ आज शपथ उठायें इनकों मुक्त करेंगे।” अतः मजदूरों के हितो की रक्षा आज भी जरूरी है।

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