मध्य काल के महान संत, निर्भीक समाज सुधारक सन्त कबीर की जयंती धूमधाम से मुनागंज जनपद औरैया स्थित कबीर आश्रम पर मनाई गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कबीर दास के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया।
आश्रम के महंत राम शरण दास ने कबीर ज्ञान गुदड़ी का वाचन किया। उन्होंने जनसमूह को सन्त कबीर के विचारों पर चलने का आग्रह किया। जैसा कि ज्ञातव्य है कि कबीर दास ने अपनी शिक्षाओं में परमात्मा की भक्ति पर जोर दिया है। वे अपनी वाणी में कहते हैं-
दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार। तरुवर ज्यों पत्ता झड़े बहुर न लागे डार।
कबीर दास हिन्दू धर्म तथा इस्लाम धर्म में व्याप्त कुरीतियों के निर्भीक आलोचक थे। उन्होंने अपनी वाणी में अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि पर विशेष बल दिया था। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा सन्त प्रव्रत्ति के कारण बहुत से हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म के अनुयायी उनके शिष्य बने।
कबीर दास तो केवल मानव धर्म में विश्वास रखते थे।उन्होंने पत्थर और मूर्ति पूजा का विरोध किया-
पाथर पूजैं हरि मिलें तो मैं पूजूँ पहाड़, वाते तो चाकी भली पीस खाय संसार।।
आधुनिक समय में जहां चारों तरफ जातिवाद, धार्मिक कर्मकांड, आपसी वैमनस्यता और कट्टरता का बोलबाला है। ऐसे समय में कबीर के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।
रिपोर्ट-अनुपमा सेंगर