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लखनऊ विश्वविद्यालय में “लेक्चर ऑन साइंस टेक्नोलॉजी एंड कंटेंपररी सोसाइटी” विषय पर व्याख्यान

लखनऊ। आज लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में लेक्चर का आयोजन हुआ। व्याख्यान का शीर्षक,“लेक्चर ऑन साइंस टेक्नोलॉजी एंड कंटेंपररी सोसाइटी” था। जज प्रोफेसर परमजीत सिंह ने यह व्याख्यान दिया। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच महत्वपूर्ण मुद्दे और जो अंतर्संबंध है, उस व्याख्यान को हम सभी के समक्ष रखा।

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उन्होंने बताया कि हमें किस तरह से विज्ञान को समझना चाहिए। विज्ञान की प्रकृति कैसी होनी चाहिए। इन सब प्रश्नों को जानने के लिए विज्ञान का इतिहास जानना आवश्यक है। उन्होंने काम्ट के विज्ञान के संस्करण की सहायता से अपनी बात को समझाया जिसमें उन्होंने दो महत्वपूर्ण बाते सामान्य और अंतर संबद्धता को सबसे मुख्य माना।

इसके बाद उन्होंने काल पापर के मेटा फिजिक्स नेचर आफ साइंस को चिन्हित किया, जिसमें बताया कि साइंस प्रौद्योगिकी है जबकि यह वास्तविक नहीं है, विज्ञान हमेशा तार्किक नहीं होता है बल्कि इसका एक धार्मिक पहलू भी होता है जैसे कि जब हम कुछ चीजें हम वैज्ञानिक रूप से नहीं सिद्ध नहीं कर पाते है, तब हम उसे धार्मिक रूप से संबोधित कर देते हैं , जैसे जो भी हुआ भगवान की इच्छा से हुआ।

लखनऊ विश्वविद्यालय

विज्ञान का कोई एक नियम नहीं होता है, विज्ञान का ना कोई प्रारंभ है ना कोई अंत है, इसे उन्होंने सौरमंडल का उदाहरण देते हुए समझाया कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता बल्कि सूर्य केंद्र में रहता है, ये सब विज्ञान ने सिद्ध किया है। विज्ञान हमें बताता है कि हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए, क्या होना चाहिए, व्यवस्थित रूप से बताता है।

विज्ञान को एक ऐसा विषय है जो कि समाज के हर क्षेत्र में विकास का स्रोत है। विज्ञान मिथ्याकरण के सिद्धांत पर बना है, जिसमें एक बार चीजें सिद्ध होती है, लेकिन उसमें दोबारा मिथ्या करण हो जाता है और नया प्रश्न खड़ा हो जाता है।

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उन्होंने विज्ञान की तुलना भारतीय वर्ण व्यवस्था से कि इन्होंने समाज को भी वर्गीकृत किया जैसे आधुनिक समाज, वैज्ञानिक समाज, तार्किक समाज,समसामयिक समाज। अंत में विज्ञान में पहले दार्शनिक दृष्टिकोण था, उसके बाद धार्मिक और अब तार्किक हो गया है, लेकिन तीनों में से कोई भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ।

उन्होंने अंत में ओसेन का उदाहरण देते हुए विज्ञान का क्रम समझाया इसी चरण में बीएचयू के प्रोफेसर एके पांडे ने विज्ञान के विकास की क्रमबद्ध व्याख्या की और इस चरण को आगे बढ़ाते हुए प्रोफेसर राजेश मिश्रा ने अपने कुछ अवलोकन को बताया जिसमें उन्होंने राबर्ट के मटर्न, कार्ल मार्क्स, कार्ल पापर के सिद्धांतों को साझा करते हुए विज्ञान का विस्तारित रूप समझाया।

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उन्होंने संकट उत्पादन प्रणाली की व्याख्या देते हुए बताया कि संकट समाज में 2 तरीके से आता है, मानवी और प्राकृतिक यह दोनों घातक होता है। इसी चरण में समाजशास्त्र के विभाग अध्यक्ष डॉक्टर डीआर साहू ने शूमाकर के कांसेप्ट स्मॉल इस ब्यूटीफुल को वर्तमान में किस प्रकार प्रासंगिक है, इसकाे बताया शूमाकर कैसे आधुनिक आर्थिक सोच हमारे 21वीं सदी के जीवन में अनुभव किए जाने वाले भावनात्मक संकट का कारण बनती है। व्याख्यान का समापन डॉक्टर सुकांत चौधरी के वोट ऑफ थैंक्स से हुआ।

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