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इश्क का बुखार

  श्यामल बिहारी महतो

अभी मंगरा का बचपना ठीक से खत्म भी नहीं हुआ था कि बदमाशियां उसकी शुरू हो गई थी, उसका जीने का ढंग ही बदल गया था और तभी उसके साथ वह हादसा हो गया था।
उसी के खातिर वैध साधू महतो को हमारे घर आना पड़ा था। आज ही सुबह। शाम को ही उनसे फोन पर बातें हुई थीं। लाने-पहुंचाने वाली बात पर साफ मना करते हुए –
“समय पर मैं खुद पहुंच जाऊंगा, आप चिंता न करें ..!” उसने कहा था।

मंगरा पिछले तीन दिनों से घर में पड़ा पड़ा दर्द से कराह रहा था। दर्द भी ऐसा कि उसने खाना पीना तक त्याग दिया था। दर्द से बेहाल! वह न उठ पा रहा था,न चल – फिर पा रहा था। हमेशा एक तरफ देह किए पड़ा रहता। कुछ भी खाने दो, फकत एक नजर भर उसे देखता और मुंह दूसरी तरफ घूमा लेता था। उसकी यह हालत न उसकी मां से देखी जा रही थी न मुझसे देखा जा रहा था। फिर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे थे। उसके दर्द के आगे हम पूरी तरह लाचार और बेबस थे। जब भी मैं उसके पास जाता,उसकी आंखों से लोर टप टप टपकने लगती और वह मुझे बड़ी कातर नेत्रों से देखने लगता, उसका इस तरह देखना मुझसे देखा नहीं जा रहा था। कभी कभी उसकी डबडबाई आंखें देख मुझे लगता वह अपनी गलती पर पश्चाताप करने लगा है। और वह मुझसे कहना चाहता है कि आपकी बात कभी नहीं मानी सदा मनमानी करता रहा उसी का यह नतीजा है। शुरू में ही अगर हम आपकी बातें मान ली होंती तो आज हमको यह दिन देखना नहीं पड़ता।

“मंगरा जियादा बदमाशी मत किया करो वर्ना कभी रोना भी पड सकता है…!” बचपन में कही मेरी यह बात आज मंगरा को शायद बहुत याद आ रही थी । वह बार बार सुबक रहा था। आज भी मुझे याद है बचपन में ही वह बदमाशी पर उतर आया था और फिर कभी किसी की सुनी नहीं और न अपनी आदतों से कभी बाज ही आया। जैसा जब मन किया मनमर्जियां करता रहा, कहूं तो जैसे जैसे वह बड़ा होता गया,उसकी नादानियां और शरारतें भी बड़ी होती गई। उसकी मां का भी दोष कम नहीं था।

“देखो,मंगरा को समझाओ ..!” मैं उसकी मां से कहा करता।
“बच्चा है ! बचपना है! अभी शरारत नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा….?” उसकी मां उल्टे मुझसे सवाल कर देती। तब वह मां का दूध पीना छोड़ मुझे चिढ़ाने सा मुंह करने लगता था।
“शरारत तक तो ठीक है, पर यह तो कुछ ज्यादा ही बेहुदा हरकतें करने लगा है और डांटने की बजाय तुम उसे और सर पे चढ़ा रही है- यह ठीक नहीं है,मंगरा की.मां !” मैं बिगड़ सा पड़ता था।
“तुम काहे इसके पीछे पड़े रहते हो, खेलने दो न। यह मेरी देह पर चढ़े, कपार पर चढे-चढने दो,बड़ा होगा तो खुद ब खुद समझदार हो जाएगा..!” और उसकी मां के सामने मेरी एक नहीं चलती और तब खदबदाते मन से उन दोनों मां बेटे को देखता रह जाता था। इधर
मां की सह पाये मंगरा का उछल कूद शुरू हो जाता था।

“डर है, बड़ा होकर कहीं यह हमें कोई परेशानी में न डाल दे और खुद कोई मुसीबत मोल न ले ले । मुझे इसकी चिंता है …!”
“ऐसा कुछ नहीं होगा,यह मेरा बेटा है और इसकी हर हरकत पर मेरी कड़ी नजर है…!”
“फिर भी..मेरा कहना था..!”
“ऐसा करो, अगले साल ठंड के दिनों में इसका “ नेगा करवा दो “
” अगले साल क्यों, इसी साल क्यों नहीं ? अभी ठंड गया कहां है..!’
” कुछ मेरी भी बातें मान लो न…!” मंगरा की मां मनुहार करने लगती और मैं उसका मुंह ताकने लगता था।
” मंगरा कहां है..? बुलाइए…!” घर आते ही वैध साधू महतो ने पूछा था।
” उसी के पास चलना होगा। वह यहां आ नहीं सकता है ..!” मैंने कहा।
” तेनुघाट में आपका कोई जानकार वकील है..?” धानेश्वर महतो अचानक आंगन में आ टपका था।
” क्यों ? क्या हुआ..?”

रात को पुलिस दामाद को उठा कर ले गयी। आज सुबह उसे तेनुघाट चलान कर दिया…!”
और धानेश्वर आंगन में ही माथा पकड़ कर बैठ गया था।
“परसों तो पंचायत में समझौता हो गया था न, फिर यह सब कुछ…?”
“हां हो तो गया था, पर बाद में किसी ने लड़की के बाप को बहका दिया,कि कुंवारी लड़की है, हल्ला हो गया है,अब इसके साथ कौन तेली लडका शादी करेगा,बोलो करमचंद को इसके साथ भी शादी कर लेगा, दामाद ने इंकार कर दिया। बेटी को लेकर उसका बाप कल सुबह थाने चला गया। लड़की ने थाने में बयान दिया है ” करमचंद ने मेरे साथ बहुत बार बलात्कार किया है।” मन तो मेरा भी किया कि दो शब्द खरी खोटी मैं भी इसे सुना दूं कि किसने कहा था, घर में जवान पत्नी के रहते बाहर कुंवारी लड़की से इश्क़ लडाना ! गांव में सबको पता है कि बेटी को आगे कर लड़की की मां दारू बेचने की धंधा करती है, यह तो एक दिन होना ही था लेकिन धानेश्वर से बस इतना ही कहा” अच्छा, हम इस पर शाम को बात करेंगे ..!”

“काकू, शाम को घर आना, मां ने पंचायत बुलायी है ..!” धानेश्वर के जाते ही पूरनी देवी का बेटा नुना आकर सामने खड़ा हो गया। कल आफिस में आकर बाप के नाम कोर्ट का एक नोटिस रिसीव करा कर आया है ” एक आप ही है जो हमारे दर्द को समझते है” कह आया था। अब यहां भी मां बेटा चाहते है कि पंचायत में हम उनकी आवाज बनें। पूरनी देवी नेमचन्द महतो की पहली पत्नी थी। और नूना उसका पहला बेटा। पर नेमचन्द उसे अपना बेटा ही नहीं मानता, वह इसे नाजायज कहता है -“एक ही रात मर्द के साथ सोने से कोई औरत बच्चे की मां बन जायेगी.?” उसका सबसे बड़ा आरोप रहा है। नूना के जन्म के बाद ही नेमचन्द ने पूरनी के साथ अपना रिश्ता तोड़ लिया था‌। पूरनी के जीवन में फिर दूसरी रात नहीं आई। बाद में नेमचन्द ने सुखनी नाम की दूसरी औरत से शादी कर ली और कोलियरी रिकॉर्ड में उसका और उनसे जन्में बच्चों के नाम दर्ज करा दिया था। पर नूना नाम सर्विस रिकॉर्ड में चढ़ने से वंचित रह गया। तभी से नूना नेमचन्द पर चढ़ाई किए हुए था। आज के पंचायत में उन दोनों मां बेटे का अहम फैसला होने वाला था।
“ठीक है, अभी तुम जाओ,शाम को आता हूं..!”
“चलिए,मंगरा के पास चलते हैं,बाद में मुझे एक जगह और भी जाना है, वैसे आपके मंगरा को हुआ क्या है..?”
“क्या कहते हैं लड़के लोग.. इश्क ! प्यार ! हमारा मंगरा भी उसी इश्क के चक्कर में पड़ गया ! सिलसिल के चक्कर में ..!”
“सिलसिल कौन..?”
“मंगरा की दोस्त, जिसके पीछे मंगरा दिवाना था और समझता था कि वह सिर्फ उसी की है पर वह यह नहीं जानता था कि उसके पीछे कई और भी पड़े हुए हैं। जैसे रागनी को चाहने वाले विक्रम दास को यह पता नहीं था कि रागनी को चाहने वाले और भी चार हैं, एक साथ पिकनिक गये उन पांचों ने मिलकर बेचारे विक्रम को दशम फॉल में डुबो डुबो के मार डाले थे। इश्क का भूत कभी कभी जान जाने के बाद ही उतरता है तभी जाना था। यहां भी एक सिलसिल के पीछे सभी पागल! “एक अनार सौ बीमार” वाली हालात बन आई थी। अभी तक उस पर मंगरा का ही अधिपत्य था, कहे तो ऐसा उसको वहम हो चुका था, वह उसका और सिलसिल सिर्फ उसकी वाली फीलिंग्स जाग उठा था! जैसे सिलसिल दौड़ पड़ती,मंगरा भी दौड़ पड़ता। उनके पीछे बाकियों भी दौड़ पड़ते थे, कभी जंगल की ओर तो कभी टांड गजार, दौड़ते दौड़ते कभी अतिक्रमण कर किसी के खेत – बारी में घुस जाना। यह कई दिनों से चल रहा था।पहले कौन पहले कौन के चक्कर में सभी एक दूसरे से लड भी पड़ते थे। एक दूसरे को धक्का मुक्की करना तो उनमें आम बात थी ।

कई बार हमने मंगरा को समझाना चाहा कि बाबू इस तरह किसी के पीछे मत दौड़ो, कभी चोट घाट लगा तो जीवन भर लंगड़ा कर चलना पड़ेगा,जो एक का नहीं वह किसी का भी नहीं-यह भी जोड़ता। पर मंगरा काहे सुनता हमारी बात। रात दिन उसी सिलसिल के पीछे पड़ा रहता। खाने पीने कभी घर आता कभी नहीं,मंगरा ने कब मां की आंचल को अलविदा कहा, मां को भी पता नहीं चला। तब ममता मयी उसकी मां ने भी तंग आकर उसे उसकी हालत पर छोड़ दी थी ..!”
“इतना बड़ा बदमाश…!”
“आए है, उसकी बदमाशी का नमूना भी देख लीजिए..!” मैंने कहा था-” परसों ही उसी सिलसिल ने उसे आवाज दी, मै उसे रोकता रह गया पर नहीं माना,खाना छोड़ मुड़ी उठा कर ऐसा दौड़ा ऐसा दौड़ा जैसे जीवन की आखरी दौड़ दौड़ रहा हो। वह सीधे सिलसिल के पास पहुंचा, दोनों में खूब चूमा चाटी और छेड़ छाड़ हुई, मंगरा उस पर लपकना चाहा‌- ” यहां नहीं, चलो कहीं ओर…!” इसके साथ ही सिलसिल दौड़ पड़ी उसके पीछे मंगरा भी दौड़ पड़ा था। फिर वे दोनों कहां गायब हो गए किसी को कोई पता नहीं, कोई खबर नहीं। दिन भर क्या खाये क्या पिये कोई जानकारी नहीं।
अचानक शाम को एक लड़के ने बताया कि चोटाही के पास जामून पेड़ के नीचे मंगरा गिरा पड़ा है।
“कैसे, क्या हुआ..?” सुन कर मैं चिंतित हो उठा। फिर उस लड़के को लिए मैं उधर दौड़ पड़ा। जाकर देखा सचमुच में उस पेड़ के नीचे मंगरा दर्द से कराह रहा है, और चेहरा सुखे सखुआ पता की तरह हो गया है।
“आपका मंगरा, इस जामून पेड़ के नीचे सिलसिल के साथ खेल रहा था, कभी उसको चाटता फिर चढ़ता, फिर चढ़ता फिर चटता। सीधे सीधे उस पर चढ़ -उत्तर रहा था । हम जामून खाने पेड़ पर चढ़े हुए था तभी देखा सिलसिल अचानक से उछल पड़ी और मंगरा जमीन पर गिर पड़ा। मेंढक माफिक पैर उसका तीरा गया और तभी सिलसिल को एक बूढ़ा भगा ले गया, अभी तक उन दोनों का भी कोई पता नहीं है ” लड़के ने बताया था।
“आप तो हमें खरिहान में ले आए, आपका मजनू मंगरा कहां है…?”
“वह देखिए,माचा (मचान) के नीचे बैठा हुआ है, मंगरा.अरे ओ मंगरा .!” मुंडी घुमा कर मंगरा ने हमारी ओर देखा ‌।
“यह तो एक काला बछड़ा है, कमाल की बात है कि इसे अपना नाम मालूम है…!”
“यही हमारा मंगरा है-मजनू मंगरा..!”
“फिर वह सिलसिल ..?”
“एक सफेद जवान बाछी थी…!” मैंने जवाब में कहा
“तो अभी तक आपने जितनी बातें कही, इश्क मोहब्बत पर जितने भाषण दिए सब इसी मंगरा और उस सिलसिल बाछी के लिए था..? गजब की थोथी कूटते है आप..! मै तो समझा था,मंगरा आपके सगे बेटे का नाम है और सिलसिल कोई लड़की होगी..!”
“आज के सगे बेटों का सिर्फ बाप के दौलत से प्यार रहता है,पर मंगरा हमें दिल से प्यार करता है.. बस जल्दी से इसे ठीक कर दीजिए…!”
“चिंता की बात नहीं है,पूठा (पिण्डली ) घसक गया है ..!” वैध साधू महतो ने पैर की पूरी तरह से जांच पड़ताल करने के बाद कहा” बस गरम पानी और पायला (चावल-धान नापने का कांसा बर्तन) मंगा दीजिए..आपका मंगरा दो दिन में चलने के लायक हो जायेगा …!”
आज नूना भी बहुत खुश था। पंचायत का फैसला उसके पक्ष में आया था। पंचों ने नूना को जायज़ मान लिया था।

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