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सेवा व समरसता का सन्देश

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

वर्तमान परिस्थिति में मोहन भागवत का संवाद प्रेरणादायक था। उन्होंने वस्तुतः भारतीय चिंतन के अनुरूप ही विचार व्यक्त किये, जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः की कामना की गई। इसी के अनुरूप उन्होंने जरूरतमंदों की सहायता का आह्वान किया। संघ की यही विचार दृष्टि है। स्वयं सेवक का भाव भी इसी को रेखांकित करता है। निःस्वार्थ सेवा का विचार ही किसी को स्वयंसेवक बनाता है। सेवा कार्य में कोई भेदभाव नहीं होता। संघ के स्वयंसेवक पूरे देश में इस समय सेवा प्रकल्प चला रहे है। सभी आनुषंगिक संघटन इस समय इसी कार्य में तन मन धन से समर्पित है। भागवत ने विदुर नीति से लेकर संवैधानिक व्यवस्था तक का उल्लेख किया।

वर्तमान चुनौती के मुकाबले पर सकारात्मक सन्देश दिया। विदुरनीति से भी प्रेरणा का आह्वान किया। इसमें कहा गया कि मनुष्य को छह दोषों से बचना चाहिए। आलस्य और दीर्घ सूत्रता नहीं होनी चाहिए। घर में रहते हुए संवाद,समझदारी और समरसता का भाव जागृत करना चाहिए। यह भारतीय चिंतन के अनुरूप है। भागवत ने वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका पर मार्गदर्शन किया। स्वदेशी का आचरण आज हमारा सम्बल बना है। समाज और देश को स्वदेशी को अपनाना होगा। संकट को अवसर के रूप में समझने की आवश्यकता है। इसी से बेतरह भारत की राह निर्मित होगी। स्वदेशी उत्पाद में क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विदेशों पर निर्भरता को कम करना होगा।स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी महत्व है। डॉ.अंबेडकर ने भी कानून-नियमों के पालन पर बहुत जोर दिया है।

समाज में सहयोग,सद्भाव और समरसता का माहौल बनाना आवश्यक है।भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयारी करनी होगी। आज जो अस्त व्यस्त हुआ है,उसे ठीक करने में समय लगेगा।बाजार फैक्ट्री,उद्योग शुरू करने में भी सावधानी दिखानी होगी। फिलहाल भीड़ नहीं होनी चाहिए। कोरोना को परास्त करने के लिए आत्मसंयम भी दिखाना होगा।अर्थव्यवस्था को लेकर भी संघ प्रमुख ने लोगों का मनोबल बढ़ाया।प्रधानमंत्री के कथन का उल्लेख किया,जिसमें उन्होंने ने स्वावलंबन की बात कही थी। नए सिरे से रोजगार की व्यवस्था करनी होगी। अर्थनीति, विकासनीति की रचना अपने सिस्टम के आधार से करना होगी। भागवत ने भारतीय चिंतन के अनुरूप सहयोग पर बल दिया। यह किसी के विरोध का समय नहीं है। जरूरतमंदों की निस्वार्थ सहायता करनी चाहिए। यह हमारे देश का विषय है। इसलिए हमारी भावना सहयोग की रहेगी। एक सौ तीस करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र है, हमारा बंधु है।

उन्होंने कहा कि देश में कोरोना के फैलने के कारण हम जानते हैं। लेकिन यह कुछ विशेष लोगों की गलती थी। इसके आधार पर पूरे समाज को उस पर आरोपित नहीं करना है। अपने स्वार्थ के लिए भारत तेरे टुकड़े होंगे, यह कहने वाले भी हमारे बीच बहुत हैं। बहुत से लोग अवसर की ताक में हैं। ऐसे में हमें अपने मन में क्रोध और अविवेक के कारण इसका लाभ लेने वाली अतिवादी ताकतों से सावधान रहना हैं। इस प्रकार मोहन भागवत ने सेवा समरसता का सन्देश दिया है। आज इस पर अमल की आवश्यकता है।

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