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चाइना के पीएम से द्विपक्षीय बातचीत के लिए मोदी ने इस वजह से चुना महाबलीपुरम

इसी सप्ताह तमिलनाडु के महाबलीपुरम में हिंदुस्तान  चाइना के बीच होने वाले द्विपक्षीय बातचीत के लिए चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सहमति मिलना पीएम नरेंद्र मोदी की पहुंच का इशारा है. इस जरूरी द्विपक्षीय बातचीत के लिए आखिर महाबलीपुरम को क्यों चुना गया? क्या इसका कोई राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय कारण है? इसका जवाब है हां

क्या तमिलनाडु में बीजेपी (भाजपा) का जनाधार बढ़ाने के अपने सियासी इरादे से पीएम नरेंद्र मोदी ने चाइना के राष्ट्रपति से बातचीत के लिए महाबलीपुरम को चुना है? इसका भी जवाब है हां.

लेकिन दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत होना इस मुलाकात का सबसे दिलचस्प पहलू नहीं है. पिछले दो सालों में पीएम मोदी  शी जिनपिंग के बीच दस बार मुलाकात हो चुकी है. आखिर इससे क्या इशारा मिलता है? साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 350 सीटें मिलने के असर को बताना? इसका भी जवाब है हां. आइए, अब जरा उपरोक्त तमाम सवालों पर विचार करते हैं.

सबसे पहले बात करते हैं अंतर्राष्ट्रीय पहलू की. कुछ सप्ताह पहले पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका के ह्यूस्टन  न्यूयॉर्क शहरों में थे. वहां नरेंद्र मोदी  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बातचीत बेहद पास रही. ह्यूस्टन में भारतीय लोगों की भीड़ के बीच नरेंद्र मोदी ने घोषणा की, अब की बार ट्रंप सरकार. पिछले छह सालों में दुनिया के नेताओं के साथ पीएम नरेंद्र मोदी की आमने-सामने की मुलाकात का महत्व है  इससे पहले गुजरात के सीएम के रूप में ऐसी मुलाकातों ने मोदी का कद बनाने  बढ़ाने में मदद की है.

अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने संसार के 45 राष्ट्रों का दौरा किया. इसने मोदी की हिंदुस्तान हितैषी छवि बनाने में मदद की. यही नहीं, इन आमने-सामने की मुलाकातों के दौरान उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष पाक को आतंक के गढ़ के रूप में अलग-थलग कर दिया. महाबलीपुरम में शी जिनपिंग के साथ अपनी द्विपक्षीय बातचीत के दौरान पीएम मोदी उन मुद्दों पर बात करने के लिए बाध्य हैं, जो भारतीय रुख के हित में हैं  भारतीय सुरक्षा के लिए मददगार हैं. नयी दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित संसार के अन्य राष्ट्रों के राजनयिकों को महाबलीपुरम मीटिंग के परिणाम की प्रतीक्षा है.

अब बात करते हैं कि आखिर तमिलनाडु के प्रति बीजेपी का आकर्षण क्यों बढ़ गया है? साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दक्षिण हिंदुस्तान पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय किया है, खासकर तमिलनाडु  केरल-इन दो राज्यों से वह अधिकतम पंद्रह सीटें जीतने का इरादा रखती है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद नरेंद्र मोदी  अमित शाह की जोड़ी ने पश्चिम बंगाल  पूर्वोत्तर राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया था, जिसका नतीजा यह रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन छह राज्यों से बीजेपी के खाते में कम से कम 30 सीटें जुड़ीं.

लोकसभा में बीजेपी को 303 सीटें मिलीं, यह मोदी-शाह की जोड़ी के अनुमान से बहुत ज्यादा ज्यादा था. दक्षिण हिंदुस्तान में सफलता हासिल करने के अपने लक्ष्य की वजह से ही मोदी बार-बार तमिलनाडु की यात्रा करते हैं. दक्षिण हिंदुस्तान में चीनी नेता शी जिनपिंग की उपस्थिति से मोदी  बीजेपी के प्रति लोगों की निगेटिव भावनाएं बहुत ज्यादा हद तक कम हो जाएंगी.

कहने की आवश्यकता नहीं कि चाइना के नवविवाहित जोड़ों के लिए महाबलीपुरम एक पर्यटन स्थल बन जाएगा, जहां वे समुद्र तट पर आनंद उठाने के लिए आएंगे. महाबलीपुरम से सटे हुए जिलों में विकास होगा, जो मोदी का मूलमंत्र है. बुनियादी ढांचों के निर्माण की नयी गतिविधियां प्रारम्भ होंगी  मोदी-जिनपिंग की मुलाकात पर संसार की नजर रहेगी.

जाहिर है, मोदी के आलोचक इसमें गुनाह ढूंढेंगे, लेकिन चीन-भारत संबंधों पर नजर रखने वाले इसका स्वागत कर सकते हैं. नयी दिल्ली स्थित लेखक  खासकर चाइना केंद्रित विदेश नीति की स्वतंत्र विश्लेषक नारायणी बसु कहती हैं, दोनों राष्ट्रों के बीच इस तरह के निरंतर जुड़ाव से परिपक्वता के एक नए स्तर का पता चलता है. बसु कहती हैं, आर्थिक मुद्दों से ऐतिहासिक भू- सियासी  क्षेत्रीय मुद्दों को सफलतापूर्वक अलग करने की प्रयास की गई है. इसी का नतीजा है कि बीआरआई  सीमा संबंधी मामले शेष मुद्दों पर हावी होने में सफल नहीं हुए हैं.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी  उनकी बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की. चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने अपनी  अपनी सरकार की एक कठोर छवि सामने रखी, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पर. इसी तरह पिछले वर्ष अपनी पुनर्नियुक्ति के बाद शी जिनपिंग एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं.

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