बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने हम सभी को गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिए सुव्यवस्थित संविधान प्रदान किया।देश के सभी लोग ज्यादा से ज्यादा शिक्षा प्राप्त कर सके इसके लिए चाहे संवैधानिक स्तर पर हो , या कानूनी स्तर पर, या सांकेतिक स्तर पर महान दूरदर्शी बाबा साहब की मूर्ति को भी आप देखे तो उनके हाथ में किताब दिखाई देती है। यानी कि शिक्षा ही वह आधार है जो आपके नैतिक और मौलिक गुणों को निखारती है। निश्चित रूप से शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र भी नहीं है।
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लेकिन मनमानी और शोषण पूर्ण आदेश नित्य प्रतिदिन जारी करने वाले बेसिक शिक्षा के महानिदेशक को यह बात कैसे समझाई जाए कि यदि कोई शिक्षक उच्च शिक्षा के लिए या अपने शिक्षा के स्तर को उन्नयन करने के लिए नौकरी की समय अवधि में अध्ययन अवकाश लेकर पढ़ना चाहता है तो यह उसका मौलिक और नैतिक दोनों प्रकार का अधिकार है। मनगढ़ंत तरीके से नियम बनाकर इसे खत्म नहीं किया जा सकता है।
अध्ययन अवकाश सामान्य जन स्वास्थ्य तथा चिकित्सा अन्वेषण विभाग, पशुपालन विभाग, कृषि विभाग, शिक्षा विभाग, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग के सरकारी सेवकों को देय होता है किंतु विशेष परिस्थितियों में जनहित में अन्य विभागों के सेवकों को भी अवकाश प्रदान किया जा सकता है यह अवकाश भारत या भारत के बाहर विशेष गहन अध्ययन व प्रशिक्षण के लिए देय है।
अध्ययन अवकाश के अंतर्गत संबंधित सरकारी सेवक के कम से कम पांच वर्ष की सेवा पूरी कर ली हो अथवा जिनकी सेवानिवृत्ति में कम से कम तीन वर्ष शेष हो, अध्ययन अवकाश एक बार मेंबारह माह संपूर्ण सेवाकाल में अधिकतम चौबिस मास तथा असाधारण एवं चिकित्सीय अवकाश छोड़कर अन्य नियमित अवकाश मिलाकर अधिकतम अट्ठाइस माह तक स्वीकृत किया जा सकता है ।यह अर्द्ध औसत वेतन पर स्वीकृत किया जाएगा, जिसे उत्तर प्रदेश मूल नियम 9(2 )में परिभाषित किया गया है।
सरकारी कर्मचारी जिसका अध्ययन अवकाश किसी अन्य अवकाश से मिलाया जाता है उसे अपना अध्ययन अवकाश ऐसे समय में लेना चाहिए कि उसके समाप्त होने पर उसके पास पहले से स्वीकृत दूसरे अवकाश की इतनी अवधि बची रहे जो उसके ड्यूटी पर लौटने में पर्याप्त हो। यदि कोई कर्मचारी जो अध्ययन अवकाश में हो और अपने अवकाश की समाप्ति के पूर्व अपनी ड्यूटी पर लौट आता है तो उसकी ड्यूटी से अनुपस्थिति को उस अवधि के बराबर अध्ययन अवकाश से कम कर दिया जाएगा।
जब तक कि शासन उस अवधि के लिए साधारण अवकाश देने की अनुमति नहीं दे देता इस पूरे नियम की विस्तृत जानकारी मूल नियम चौरासी तथा सहायक नियम 146अ में उल्लेखित किया गया है। जबसे बेसिक शिक्षा नियमावली बनी है लगभग तभी से यह अवकाश दे था तो फिर अब ऐसी कौन सी मुसीबत आ गई जिसे विशेष प्रावधान कर खत्म करने का पूरा कुचक्र रचा जा रहा है। यह उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षकों के साथ अन्याय है।
अर्थ के इस युग में यदि आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त करने के बाद भी कोई व्यक्ति अपनी शिक्षा का उन्नयन करना चाहता है, अपने मानसिक स्तर को और बढ़ाना चाहता है और खुद के वेतन में कटौती करा कर शिक्षा प्राप्त करना चाहता है तो निश्चित रूप से इस में सरकारी तंत्र को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। देश का पढ़ा लिखा शिक्षक कर्मचारी अपने ज्ञान का उपयोग समाज को शिक्षित करने तथा आने वाली पीढ़ियों को और अधिक उन्नयन करने हेतु ही प्रदान करने वाला है। शिक्षक हित में बने हुए नियमों को बदलने से पहले कृपया मनन करें ।