भारत में किडनी रोग की मौजूदगी 10 फीसदी हो गई है, इस सच्चाई के बावजूद इस रोग से जुड़े लक्षणों के बारे में जागरूकता बहुत कम है। भारत में कई मरीजों ने डायग्नोसिस तब कराई जब उनकी किडनी सिर्फ 10 फीसदी ही सही सलामत बची थी। यह भी सच है कि इस वजह से किडनी खराबी के आखिरी चरण के मरीजों की संख्या बहुत बढ़ गई है। कई मरीजों में लंबे समय तक किडनी रोग से जूझते रहने के बावजूद इसका कोई लक्षण नहीं दिखता, लिहाजा उचित समय पर इसकी पहचान हो जाने से बीमारी थामने या इसकी प्रगति धीमी करने में अहम भूमिका हो सकती है।
डायबिटीज पीड़ितों की किडनी में बदलाव और हाइपरटेंशन के कारण वैस्कुलर बदलाव समेत कई अन्य कारणों से ऐसे मरीजों में किडनी संबंधी बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है और भारत में इस तरह के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। हाइपरटेंशन और डायबिटीज साथ-साथ चलते हैं और डायबिटीज पीड़ित ज्यादातर मरीजों में हाइपरटेंशन की वजह से डायबिटीक किडनी रोग का खतरा अधिक हो जाता है। हाइपरटेंशन से किडनी की कार्यप्रणाली धीरे-धीरे कम होने लगती है और यह किडनी को नुकसान पहुंचाने लगता है। यदि सही समय पर इलाज न कराया जाए तो यह किडनी खराब होने के अंतिम चरण में भी पहुंचा सकता है।
डायबिटीज के कारण किडनी रोग के ज्यादातर जोखिमों को समय पर डायग्नोसिस, आधुनिक चिकित्सा और लाइफस्टाइल में बदलाव से सुधारा जा सकता है और इस स्थिति का इलाज एवं प्रबंधन संभव हो सकता है। हालांकि अन्य गंभीर बीमारियों की तरह ही किडनी रोग में भी बहुत कम शुरुआती लक्षण दिखते हैं। मसलन, किसी मरीज में एल्बुमिनुरिया हो सकता है, जो किडनी रोग का शुरुआती लक्षण है। इसका मतलब है कि मरीज के पेशाब में प्रोटीन अल्बुमिन की बहुत अधिक मात्रा है लेकिन मरीज में एल्बुमिनुरिया से जुड़ा कोई खास लक्षण नहीं भी हो सकता है।
डायबिटीज पीड़ितों से किडनी संबंधी समस्याओं के बारे में बात करने पर इसकी शीघ्र डायग्नोसिस हो सकती है और मरीज इसकी प्रगति धीमी करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं। डायबिटीज पीड़ित जो मरीज जानते हैं कि उन्हें किडनी रोग है, वे नॉनस्टेरॉयडल एंटीइनफ्लेमेटरी जैसी दवाइयों का सेवन रोक सकते हैं जिनसे किडनी रोग तेजी से बढ़ सकता है।
किडनी रोग की रफ्तार कम करने के लिए अपने खानपान में सुधार ला सकते हैं। किडनी खराब होने से बचने के लिए आपको रोग के आखिरी चरण में पहुंचने से बचना होगा, क्योंकि इस चरण में जिंदगी बचाने के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प रह जाता है। शुरुआती चरण में डायग्नोसिस और किडनी रोग के प्रबंधन से कई परेशानियां टल सकती हैं, खासकर कार्डियोवैस्कुलर संबंधी परेशानियां। डायबिटीज पीड़ितों में किडनी रोग के कारण कार्डियोवैस्कुलर रोग का खतरा दोगुना रहता है।
किडनी रोग की डायग्नोसिस और पहचान दो जांच से ही हो जाती है। पहली जांच सीरम क्रेटाइनिन नामक खून जांच है जिसमें ग्लूमेरूलर फिल्टरेशन रेट (जीएफआर) यानी किडनी फंक्शन की जांच होती है और पता किया जाता है कि किडनी हमारे खून को कितना फिल्टर कर रही है। कम से कम तीन महीने तक 60 से नीचे जीएफआर हो तो यह गंभीर किडनी रोग का संकेत है। दूसरे टेस्ट से पेशाब में एल्बुमिन की जांच के लिए किडनी रोग की डायग्नोसिस और निगरानी की जाती है। यदि किसी को तीन महीने तक तीन में से कम से कम दो एल्बुमिन जांच में यूरिन एल्बुमिन प्रति ग्राम में 30 मिग्रा से अधिक है तो इसे किडनी रोग माना जा सकता है।
यदि किसी डायबिटीज, हाइपरटेंशन या हार्ट डिजीज से पीड़ित व्यक्ति को किडनी रोग संबंधी एक या अधिक रिस्क फैक्टर है, उसके परिवार में किसी को किडनी रोग या डायबिटीज की शिकायत रही है, मरीज 50 से अधिक उम्र का है और जो लोग धूम्रपान करते हैं तो उन्हें किडनी रोग की जांच करा लेनी चाहिए। किडनी रोग की जांच कम खर्चीली और आसान है तथा आरंभ में ही इस रोग की पहचान तथा इलाज शुरू कराने के लिए यह महत्वपूण होती है। आम तौर पर किडनी रोग कुछ लक्षणों या बिना किसी लक्षण के साथ बहुत धीमी गति से बढ़ता है इसलिए तब तक मरीज की स्थिति को देखते हुए इलाज शुरू करने का पर्याप्त अवसर रहता है। डायबिटीज पीड़ितों में किडनी रोग की रोकथाम या रफ्तार कम करने का सबसे पहला और महत्वपूर्ण उपाय है ब्लड ग्लूकोज लेवल पर काबू पाना, चाहे वह टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज से ही पीड़ित क्यों न हो। ग्लूकोज लेवल पर नियमित निगरानी होनी चाहिए। किडनी रोग की प्रगति रोकने या धीमी करने का दूसरा तरीका है ब्लड प्रेशर पर काबू पाना। यह टाइप 2 डायबिटीज पीड़ितों के लिए खास तौर से महत्वपूर्ण है जिन्हें अक्सर उच्च रक्तचाप रहता है।