आज सारी दुनिया Mother’s day मदर्स डे पर ‘माँ’ को सम्मान दे रही और दे भी क्यों न, आखिर माँ का स्थान सबसे ऊँचा जो है। हर इंसान को इस खूबसूरत दुनिया में लाने वाली भी तो ‘माँ‘ ही है। ऐसे में आज के दिन विशेष पर “माँ” शीर्षक पर कुछ रचनाएँ –
Mother’s day : कुछ रचनाएँ,जो माँ के स्वरुप को दर्शाती हैं
दीक्षित दनकौरी
माँ के क़दमों में है जन्नत ये बताने वाले
मुझको लगता है कि जन्नत से वो आगे न गए
सरिता गुप्ता
जीवन के हर मोड़ पर, छले गए हर बार।
मां की ममता साथ थी,हार गया संसार।।
लाल बिहारी लाल
माँ जीवन का सार है, माँ है तो संसार।
माँ बिन जीवन लाल का,समझो है बेकार।।
संजय वर्मा “दृष्टि”
रहे खुद भूखी फिर भी , दे पेट भर खाना |
भाव है उसका ऐसा ,खिला खुश हो जाना ||
हर धर्म की माँ ओ के ,ममता के एक रूप |
आँचल से ढांक देती ,जब सर पर हो धूप||
रंगनाथ द्विवेदी
मैं घंटे बतियाता हूं माँ की कब्र से,
एै “रंग”–एैसा लगता है की जैसे,
माँ की कब्र से भी
अपने बेटे को दुआ आती है।
कृष्णा नन्द तिवारी
माँ के कदमो में रहूँ, टूटे सभी गुरूर !
माँ ममता की छाव से , कभी न रखना दूर !!
मनोज कामदेव
माँ से ही संसार है,माँ ही ममता रूप।
देती सबको छाँव है,खुद सहती है धूप।।
संजय कुमार गिरि
जाकर छत पर देखता ,चंदा तारे रोज ।
माँ उसको मिलती नहीं ,बालक करता खोज ।।
माधवी राठी
मांग लूं यह मन्नत ,फिर यही जहाँ मिले
फिर यही गोद मिले , फिर यही माँ मिले
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
सुख-दुख दोनों में रहे, कोमल और उदार।
कैसी भी सन्तान हो, माँ देती है प्यार।।
राधेश्याम बन्धु
‘मां ही पहली गुरू है, मां है तीरथ धाम,
कौशल्या- आशीष से, राम हो गये राम।