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संगीत की नजर से, उपस्थित चुनौती एक स्वीकृति का सूचक

चला चीन वुहाने से वो, पूरी दुनिया में छाया। सैलाब कुदरत का ये, मंजर समझ ना कोई पाया।।

सभी जानते हैं कि इस समय कोविड-19 जैसी भयानक महामारी की चुनौतियों का सामना पूरा विश्व कर रहा है। जिसका प्रभाव मानव जीवन की प्रत्येक गतिविधियों पर भी पड़ रहा है। परंतु शास्त्रों में लिखा है कि विपरीत परिस्थितियों के भी दो पहलू होते हैं। सकारात्मक एवं नकारात्मक हम जिस पहलू को आत्मसात करते हैं, वैसा ही परिणाम हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है।

सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितियां बहुत तेजी से बदल रही हैं और इस महामारी से शिक्षा की गति भी अवरुद्ध सी हो गई है। संगीत जैसी गुरुमुखी विद्या का आज की तकनीकों के माध्यम से आगे बढ़ना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसको आज के कलाकारों,शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को स्वीकार करके आगे बढ़ना होगा। आज हम सोशल डिस्टेंसिंग के जिस दौर में खड़े हैं वहां शिक्षा प्राप्त करने का एकमात्र माध्यम ऑनलाइन शिक्षा ही रह गई है, जिसके द्वारा हम सरकार के नियमों का पालन करते हुए अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं।

 डॉक्टर आकांक्षा गुप्ता

इस चुनौती को हम जितना सकारात्मक रूप देंगे उतना ही अपने लिए नए विभिन्न आयामों को दिखा देंगे। आज हम 14 दिनों के कोरोनटाइन और लॉकडाउन को सकारात्मक दृष्टि से देखें तो प्राचीन समय में भी हमें ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जब ऋषि मुनि अपने Gyan शक्ति इत्यादि को बढ़ाने के लिए एकांतवास सुनते थे और तपस्या पूर्ण होने पर ही वहां से बाहर आते थे। इसी तरह मुगल काल में औरंगजेब के समय में सबसे ज्यादा ग्रंथ लिखे गए जब उसने संगीत कलाकारो को बाहर ना निकलने का आदेश दिया था।

बिल्कुल सामान्य सी बात है कि जब किसी नए कार्य की शुरुआत होती है तो बहुत सी कठिनाई सामने आती है पर उनसे निकलने का समाधान भी उसी में निहित होता है। जब संगीत में स्वर लिपि पद्धति नहीं थी तो उससे पहले की चीजें हमें कहीं भी स्वरलिपि बंद नहीं मिलती। इस दिशा में पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर एवं पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने अपना अमूल्य योगदान दिया। जिसकी वजह से आज हम बंदिशों को लिपि बंद कर पाते हैं। अतः वर्तमान के चुनौती को सकारात्मक दृष्टि से लिया जाए तो हम निश्चित रूप से आगे ही बढ़ेगे क्योंकि यदि कोरोना को पलट कर के पढ़ा जाए तो ना रोको अर्थात अपनी सोच को बढ़ने से नहीं रोकना चाहिए, ऐसी उम्मीद किया जा सकता है। कोविड-19 बीमारी कुछ सीख भी देती है। हम सभी बराबर हैं और बीमारी हमारे साथ कोई भेदभाव नहीं करती। अपनी गलती से सबक लें और प्रकृति का सम्मान करें।

प्रकृति का सम्मान करो, अब और इसे ना खोना है।
मिलकर सब को लड़ना है जिससे, उसका नाम कोरोना है।।

 

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