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नानक देव: असीम सुख

हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, यहूदी, तायो, कन्फ्युशियस आदि नामों से प्रचलित सभी धर्मों ने मानव जीवन का जो अंतिम लक्ष्य स्वीकार किया है, वह है परम सत्ता या संपूर्ण चेतन सत्ता के साथ तादात्म्य स्थापित करना। यही वह सार्वभौम तत्व है, जो मानव समुदाय को ही नहीं, समस्त प्राणी जगत् को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं। इसी सूत्र को अपने अनुयायियों में प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित करते हुए श्सिखश् समुदाय के प्रथम धर्मगुरु नानक देव ने मानवता का पाठ पढ़ाया। उनका धर्म और अध्यात्म लौकिक तथा पारलौकिक सुख−समृद्धि के लिए श्रम, शक्ति एवं मनोयोग के सम्यक नियोजन की प्रेरणा देता है। उनके अनुसार वस्तुतः अशुभ विचार एवं अशुभ आचार को शुभ में बदलना ही धर्म है, उसके लिए परम पुरुषार्थ करना होता है। उन्होंने मन का अहंकार मिटाने के लिए प्रार्थना, नियंत्रित करने के लिए साधना और संकल्पवान बनाने के लिए उपासना का मार्ग सुझाया है और यही सब धर्मों का आधार है। उन्होंने न केवल समाज में फैली कुरीतियों एवं आडम्बरों का खंडन किया बल्कि धर्म के नाम पर चल रही अंध−परम्पराओं का भी खुलकर विरोध किया। उन्होंने अपने कृतत्व की जो अमिट रेखाएं खींची हैं, वे युग−युगों तक स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगी। कब उनके जीवन का सूक्ष्म दर्शन एक महादर्शन बन गया, वे प्रकाश के महापुंज बन गये, पता ही नहीं चला। वे एक महान धर्म श्सिखश् धर्म के संस्थापक हो गये।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन नानक देव का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष गुरु नानक जयंती 14 नवंबर को मनाई जा रही है। गुरु नानक जयंती को सिख समुदाय बेहद हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाता है। यह उनके लिए दीपावली जैसा ही पर्व होता है। इस दिन गुरुद्वारों में शबद−कीर्तन किए जाते हैं। जगह−जगह लंगरों का आयोजन होता है और गुरुवाणी का पाठ किया जाता है। उनके लिये यह दस सिक्ख गुरुओं के गुरु पर्वों या जयन्तियों में सर्वप्रथम है। नानक का जन्म 1469 में लाहौर के निकट तलवंडी में हुआ था। नानक जयन्ती पर अनेक उत्सव आयोजित होते हैं, त्यौहार के रूप में भव्य रूप में इसे मनाया जाता है, तीन दिन का अखण्ड पाठ, जिसमें सिक्खों की धर्म पुस्तक श्गुरु ग्रंथ साहिबश् का पूरा पाठ बिना रुके किया जाता है। मुख्य कार्यक्रम के दिन गुरु ग्रंथ साहिब को फूलों से सजाया जाता है और एक बेड़े (फ्लोट) पर रखकर जुलूस के रूप में पूरे गांव या नगर में घुमाया जाता है। शोभायात्रा में पांच सशस्त्र गार्डों, जो श्पंज प्यारोंश् का प्रतिनिधित्व करते हैं, अगुवाई करते हैं। निशान साहब, अथवा उनके तत्व को प्रस्तुत करने वाला सिक्ख ध्वज भी साथ में चलता है। पूरी शोभायात्रा के दौरान गुरुवाणी का पाठ किया जाता है, अवसर की विशेषता को दर्शाते हुए, धार्मिक भजन गाए जाते हैं।

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