अयोध्या। बड़े भाई के प्रति प्रेम व त्याग के प्रतीक भरत की तपस्थली नंदीग्राम (भरतकुंड) श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिंदू धर्म में नंदीग्राम का अपना अलग धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। बताया जाता है कि भगवान राम जब 14 साल के लिए वन गए थे। तो उनके छोटे भाई भरत ने भी उतने ही समय तक यहां एक तरह से वनवास में ही जीवन व्यतीत किया था।
रामायण के अनुसार, भगवान राम जब अपनी पत्नी सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन की ओर प्रस्थान किये। तो भरत भी उनके साथ वन जाने के लिए चल दिए। श्रीराम ने उन्हें काफी समझा-बुझाकर नंदीग्राम में ही रोक दिया था। श्री तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस में चौपाई है। प्रभु करी कृपा पांवरी दीन्ही। सादर सीस धर लीनी।।
बड़े भाई राम के समझाने पर भरत जी रुक तो गए। लेकिन वे वापस अयोध्या नहीं गए। उन्होंने श्रीराम जी से खड़ाऊं लेकर उनके प्रतीक के तौर पर नंदीग्राम से ही राजपाट चलाने लगे। भरत खुद को एक राजा नहीं। बल्कि श्रीराम को ही राजा मान उनके प्रतिनिधि के तौर पर अयोध्या का राजकाज चलाते रहे। एक तरह से इतने दिनों तक नंदीग्राम ही राजधानी बनी रही।
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जब तक श्रीराम नहीं आए भरत भी सारे राजसी सुख त्याग कर 14 साल तक वहां तपस्या करते रहे। एक तरह से कह सकते है कि भरत भी 14 साल तक वनवास भोगते रहे। श्रीराम के वन गमन करने के साथ ही उनके पिता राजा दशरथ ने वियोग में अपने प्राण त्याग दिए थे। जिसके बाद भरत जी ने नंदीग्राम में एक कुंड का निर्माण कराया था। बताया जाता है कि भरत ने यहीं उनका श्राद्ध किया था। यह कुंड तबसे भरत कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। इस कुंड के जल को काफी पवित्र माना गया है।
इसके आसपास क्षेत्र व अन्य जनपदों के हिन्दु धर्म के लोग जो गया जाते हैं। वह पहले भरतकुंड जाते हैं। यहां पिंडदान करते हैं। भरतकुंड के किनारे ही एक वेदी है। बताया जाता है कि बिहार के गया में पिंडदान से पहले यहां भरतकुंड में डुबकी लगाकर पिंडदान करने की मान्यता है।
पिंडदान के कारण हिंदू धर्म में नंदीग्राम का विशेष महत्व है। लोग यहां अपने पितरों का श्राद्ध कराने भी आते हैं। भरतकुंड के पास ही एक शिव मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां भी लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। वैसे तो शिव मंदिर में नंदी भगवान शिव की तरफ मुंह किए रहते हैं। लेकिन यहां उनका मुंह दूसरी तरफ किये हैं।
लोगों का मानना है कि भगवान राम ने वन से आने के बाद भरत जी से यहीं पर मुलाकात की थी। और उन्हें साथ लेकर अयोध्या गए थे। रामायण में भरत मिलाप का प्रसंग अहम है। हनुमान जी की भी भरत जी से पहली मुलाकात यहीं पर हुई थी। तब भरत जी ने हनुमान जी को गले लगा लिया था। इन सब धार्मिक कारणों से नंदीग्राम का एक अलग ही महत्व है। नंदीग्राम बेहद खूबसूरत और शांत जगह है। अयोध्या की चहल-पहल से दूर श्री राम जन्मभूमि से 17 किलोमीटर दूर मसौध विकास खंड में यह स्थल है। जो कि आपके मन को असीम शांति प्रदान करेगा।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह