महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव मामले में छापे मार कर पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताआें की गिरफ्तारी की गई है। जिसके बाद इतिहासकार रोमिला थापर ( Romila Thapar )ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाया है। उनकी दायर याचिका पर आज दोपहर 3.45 बजे सुनवाई होगी।
Romila Thapar : गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका
महाराष्ट्र पुलिस ने पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताआें को माआेवदियों से सलिंप्तता होने के शक में गिरफ्तार किया है जिसका विरोध जोरो से हो रहा है। इतिहासकार रोमिला थापर समेत पांच सामाजिक कार्यकर्ता अब सु्प्रीम कोर्ट गए हैं। उन्होंने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच के समक्ष कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पेश की। कोर्ट ने स्वीकारते हुए इस मामले में तत्काल सुनवार्इ का आदेश दिया है। जिसके बाद शाम 3:45 बजे इस पर सुनवार्इ होगी।
सभी को रिहा करने की मांग
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका में उल्लेख किया गया है कि रोमिला थापर व अन्य कार्यकर्ताओं की मांग है कि भीमा-कोरेगांव मामले में छापे मार कर गिरफ्तार किए गए सभी कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाए। उन्होंने यह भी अपील की है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में स्वतंत्र जांच के निर्देश दिए जाए। बात है पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव – भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हिंसा हुर्इ थी। एेेसे में इस घटना की जांच के तहत ये छापे मारे गए हैं।
भीमा-कोरेगांव हिंसा : मराठा और दलितों में युद्ध
1 जनवरी 1818 को पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव युद्ध में अंग्रेजों और पुणे के बाजीराव पेशवा द्वितीय के बीच युद्ध हुआ था। अंग्रेजों की सेना में महाराष्ट्र के महार (दलित) समाज के 600 सैनिक थे और पेशवा की सेना में करीब 28 हजार मराठा शामिल थे। इस दौरान अंग्रेजों ने पेशवा की सेना को बुरी तरह से हराया था। हालांकि इस दौरान जंग में बड़ी संख्या में महार सैनिक शहीद हो गए थे। ऐसे में हर साल पुणे के भीमा में जयस्तंभ नाम से बने स्मारक पर दलित समुदाय के लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचते पहुंचते हैं। महाराष्ट्र में पेशवाओं का शासन ब्राह्माण शासन व्यवस्था के रूप में देखा जाता है।
पूर्व संध्या से ही भड़की थी हिंसा
बीते साल भी 1 जनवरी को श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमे करीब 3 लाख से अधिक दलित शामिल होने पहुंचे थे। इस कार्यक्रम के दौरान अहमदनगर हाइवे पर दोनों समुदाय के बीच झड़प होने लगी। इस दौरान एक व्यक्ति मौत के बाद यह मामला काफी उग्र हो गया। कहा जाता है हिंसा की आग नए साल की पूर्व संध्या को ही भड़कने लगी थी। 31 दिसंबर की शाम को दलितों के एक संगठन “शनिवारवाड़ा यलगार परिषद” ने पेशवाओं के ऐतिहासिक निवास शनिवारवाड़ा के बाहर कार्यक्रम आयोजित किया था।
इसमें दलितों के नेता जिग्नेश मेवाणी ने पेशवाओं के खिलाफ बड़े भड़काऊ बयान दिए थे।