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नितिन गडकरी का “फोकट” वाला बयान और आम आदमी

  दया शंकर चौधरी

राजस्थान के दौरे पर पहुंचे केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का एक बयान सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें वे कहते दिखाई दे रहे हैं कि वे फोकट क्लास के समर्थक नहीं है। अगर लोगों को सुविधाएं चाहिए तो उन्हें हाइवे पर टोल टैक्स चुकाना पड़ेगा। दरअसल एक पत्रकार वार्ता में केंद्रीय मंत्री से पत्रकारों के लिए टोल फ्री करने की मांग एक मीडियाकर्मी ने की थी, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री ने टोल नाकों से होने वाली कमाई से होने वाले कार्यों की लिस्ट गिना दी। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर पत्रकारों को छूट दी तो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महिलाओं, दिव्यांगों समेत कई कैटेगरी को छूट देनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि सड़क निर्माण के लिए बाजारों से पैसा लिया गया है। जिसे चुकाने के लिए रेवेन्यू की जरूरत होती है।

अगर अच्छी सर्विस चाहिए तो लोगों को उसके लिए खर्चा करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वे किसी को भी टोल फ्री की छूट नहीं देंगे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 15 लाख करोड़ की लागत से हाइवे बनाए जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री का बयान वायरल होने के बाद लोग उन्हें लगातार ट्रोल कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि टोल नाकों पर माननीय नेताओं की लिस्ट लगी है, उसे भी हटवा दिया जाए, उन्हें भी टोल फ्री की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए।

क्या आम जनता से ही सारी भरपाई करनी है। पत्रकार अनुपम चौहान ने मंत्री से पूछा है कि “फोकट का सफर नहीं चाहिए पत्रकारों को, लेकिन मंत्री जी गड्ढामुक्त सफर ही करवा दीजिए, आपकी इतनी मेहरबानी बहुत है।…और जो लोग फोकट का सफर कर रहे हैं, उन्हे भी आज से और अभी से फोकट का सफर छोड़ देना चाहिए देशहित में, ऐसा लगता है कि सारे कायदे आम आदमी के लिए है।वरिष्ठ पत्रकार आरबी सिंह ने वायरल वीडियो में गडकरी की भाषा शैली पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि ‘आम आदमी’ के वोट से सत्ता का सुख उठाने वाले सांसदों और विधायकों को चाहिए कि वे अपने वेतन और भत्तों से टोलटैक्स चुका कर राष्ट्रहित में देश की असली सरकार ‘आम आदमी’ की भावनाओं का सम्मान करें। पत्रकार एसवी सिंह ने भी गडकरी के बयान की आलोचना की है।

पत्रकार और केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी का सवाल जवाब सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। दरअसल केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी इन दिनों दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे का जायजा ले रहे हैं। ताकि जमीनी हकीकत का पता लगा सकें। वे हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 तक देश में 566 टोल प्लाजा थे जो कि अब और बढ़ गए हैं। टोल नाकों से हुई कमाई का उपयोग नेशनल हाईवे की रिपेयरिंग और मेंटेनेंस के लिए किया जाता है।

विधायकों व सांसदों को एक्सप्रेस वे पर टोल टैक्स से छूट

यूपी सरकार ने एक्सप्रेस वे पर यात्रा करने वाले सांसदों व विधायकों से टोल टैक्स न वसूलने का निर्णय लिया है। सरकार का निर्णय है कि इन जनप्रतिनिधियों के वाहनों से एक्सप्रेस वे पर पथकर नहीं वसूला जाएगा। इन एक्सप्रेस वे में यमुना एक्सप्रेस वे, लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे और ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस वे शामिल हैं। टोल टैक्स से छूट के दायरे में लोक सभा, राज्य सभा, उत्तर प्रदेश विधान सभा एवं विधान परिषद के सदस्य गण शामिल हैं। इस संबंध में औद्योगिक विकास विभाग के सचिव एमपी अग्रवाल द्वारा उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे (पथकर उद्ग्रहण एवं फीस निर्धारण तथा उसकी वसूली) नियमावली-2010 में संशोधन की अधिसूचना जारी की गई है। टोल टैक्स से छूट का नियम भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायमूर्ति , राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय एवं राज्य विधान मण्डल की अधिकारिता रखने वाले पीठासीन अधिकारियों के टोलटैक्स पहले से फ्री हैं। इसी प्रकार लोक सभा, राज्य सभा और विधान मण्डल के विरोधीदल नेता से एक्सप्रेस-वे पथकर नहीं लिया जाता है। इनके अलावा उच्चत्म न्यायालय के न्यायाधीश, राज्य विधान परिषद के सभापति, राज्य विधान सभा के अध्यक्ष, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत सरकार के मंत्री तथा उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रियों से टोलटैक्स न लेने की व्यवस्था है। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव और आयुक्त, राज्य के दौरे पर आये उच्च पदस्थ विदेशी व्यक्ति, सी.डी. प्रतीक के साथ कार का प्रयोग करने वाले भारत में संस्थापित विदेशी मिशनों के प्रधानों से पथकर नहीं वसूला जाता है। समस्त राजकीय वाहनों के लिए एक्सप्रेस-वे पर टोल टैक्स फ्री है। इसके अतिरिक्त एम्बुलेंस के रूप में प्रयुक्त यान, अग्निशमन, अर्धसैनिक बलों, पुलिस वर्दी में केन्द्रीय और राज्य सशस्त्र बल के लिए एवं रक्षा मंत्रालय जिसमें वे सम्मिलित हैं, जो भारतीय पथकर (सेना और वायु सेना) अधिनियम 1901 और उसके संबंध में बनाए गए नियमों के दायरे में हैं, उनसे भी पथकर नहीं लिया जा रहा है।

सांसदों को कितना वेतन और भत्ता मिलता है

इन स्थितियों में सभी देशवासी के मन में यह विचार जरूर आता है कि आखिर देश के सांसदों को कितना वेतन मिलता है, उन्हें कितना भत्ता मिलता है। यह सबको मालूम है कि लोकतांत्रिक देश में कानून बनाने का अधिकार संसद को है और संसद अपने सांसदों के दम पर यह काम करती है। लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि सांसद जनता द्वारा चुने जाते हैं और इस प्रकार जनता सांसदों के माध्यम से अपने लिए कानून बनाती है। सांसदों का काम जनता की सेवा करना है और अकसर समाजसेवा में कुछ मिलता नहीं है। केवल समाज की सेवा और समाज का मार्गदर्शन ही उनका काम रहा है। लेकिन सांसदों को कई बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और ऐसे में संसद ने सांसदों का वेतन और जरूरत के हिसाब से भत्ते तय किए। लोकसभा और राज्यसभा के सांसद कार्यकाल के दौरान 50 हजार रुपये का वेतन मिलता है। अगर सांसद संसदीय कार्यवाही के दौरान उसमें शामिल होते हैं, और रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं तो उन्हें 2000 रुपये प्रतिदिन का भत्ता मिलता है। एक सांसद अपने क्षेत्र में कार्य कराने के लिए 45000 रुपये प्रतिमाह भत्ता पाने का हकदार होता है। कार्यालयीन खर्चों के लिए एक सांसद को 45000 रुपये प्रतिमाह मिलता है। इसमें से वह 15 हजार रुपये स्टेशनरी पर खर्च कर सकता है। इसके अलावा अपने सहायक रखने पर सांसद 30 हजार रुपये खर्च कर सकता है। सांसदों को हर तीन महीने में 50 हजार रुपये यानी करीब 600 रुपये प्रतिदिन घर के कपड़े धुलवाने के लिए मिलते हैं। सांसदोंको हवाई यात्रा का 25 प्रतिशत ही देना पड़ता है। इस छूट के साथ एक सांसद सालभर में 34 हवाई यात्राएं कर सकता है। यह सुविधा पति और पत्नी दोनों के लिए है। ट्रेन में सांसद फर्स्ट क्लास एसी में अहस्तांतरणीय टिकट पर यात्रा कर सकता है। इसके लिए उन्हें एक विशेष पास दिया जाता है। एक सांसद को सड़क मार्ग से यात्रा करने पर 16 रुपये प्रतिकिलोमीटर यात्रा भत्ता मिलता है। ऐसे में पत्रकारों सहित आम आदमी का ये सवाल वाजिब लगता है कि देशहित में टोल टैक्स जैसे मामूली खर्चे में माननीयों को दी जाने वाली छूट कहां तक उचित है।

विधायकों की सैलरी एवं भत्ते

तेलंगाना- 2.50 लाख, दिल्ली- 2.10 लाख,
उत्तर प्रदेश- 1.87 लाख, महाराष्ट्र- 1.70 लाख
जम्मू & कश्मीर- 1.60 लाख, उत्तराखंड- 1.60 लाख
आन्ध्र प्रदेश- 1.30 लाख, हिमाचल प्रदेश- 1.25 लाख
राजस्थान- 1.25 लाख, गोवा- 1.17 लाख
हरियाणा- 1.15 लाख, पंजाब- 1.14 लाख
झारखण्ड- 1.11 लाख, मध्य प्रदेश- 2.10 लाख
छत्तीसगढ़- 1.10 लाख, बिहार- 1.14 लाख
पश्चिम बंगाल- 1.13 लाख, तमिलनाडु- 1.05 लाख
कर्नाटक- 98 हजार, सिक्किम- 86.5 हजार
केरल- 70 हजार, गुजरात- 65 हजार
ओडिशा- 62 हजार, मेघालय- 59 हजार
पुदुचेरी- 50 हजार, अरुणाचल प्रदेश- 49 हजार
मिजोरम- 47 हजार, असम- 42 हजार
मणिपुर- 37 हजार, नागालैंड- 36 हजार,त्रिपुरा- 34 हजार

नोट: विधायक की सैलरी एवं भत्ते राज्य में अलग-अलग हो सकते हैं और वर्तमान में उपरोक्त दी गई सैलरी में बदलाव भी हो सकते हैं।

विधायक को सैलरी के अलावा मिलने वाली अन्य सुविधाएं* आइये भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक को मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लेते हैं। उत्तर प्रदेश में एक विधायक को विधायक निधि के रूप में 5 साल के अन्दर 7.5 करोड़ रुपये मिलते हैं। इसके अलावा विधायक को वेतन के रूप में 75 हजार रुपया महीना, 24 हजार रुपये डीजल खर्च के लिए, 6000 पर्सनल असिस्टेंट रखने के लिए, मोबाइल खर्च के लिए 6000 रुपये और इलाज खर्च के लिए 6000 रुपये मिलते हैं। सरकारी आवास में रहने, खाने पीने, अपने क्षेत्र में आने-जाने के लिए अलग से खर्च मिलता है। इन सभी को मिलाने पर विधायक को हर माह कुल 1.87 लाख रुपये मिलते हैं।विधायक को यह अधिकार भी मिला होता है कि वह अपने क्षेत्र में पानी की समस्या के समाधान के लिए 5 साल में 200 हैण्डपम्प भी लगवा सकता है। जबकि एक पम्प लगवाने का खर्च लगभग 50 हजार आता है। इसके अलावा विधायक के साथ रेलवे में सफ़र करने पर एक व्यक्ति फ्री में यात्रा भी कर सकता है।

*रिटायरमेंट के बाद क्या फायदे मिलते हैं ?* कार्यकाल ख़त्म होने के बाद विधायक को हर महीने 30 हजार रुपये पेंशन में रूप में मिलते हैं, 8000 रुपये डीजल खर्च के रूप में मिलने के साथ साथ जीवन भर मुफ्त रेलवे पास और मेडिकल सुविधा का लाभ मिलता है। यानि कि एक लाइन में कहें तो एक बार विधायक बनने के बाद पूरी लाइफ सुरक्षित हो जाती है। यहाँ पर यह प्रश्न उठ सकता है कि इन राज्यों के विधायकों की सैलरी में इतना अंतर कैसे होता है। दरअसल विधायक को सैलरी सम्बंधित राज्य के खजाने से ही मिलती है। इस कारण जिन राज्यों के पास अधिक धन है वे अपने विधायकों को ज्यादा सैलरी देते हैं। पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में विधायकों को सबसे कम सैलरी मिलती है क्योंकि इन राज्यों के पास संसाधन कम मात्रा में हैं। बताते चलें कि पिछले 7 सालों में विधायकों की औसत सैलरी में लगभग 125 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। सैलरी में सबसे अधिक वृद्धि 450 प्रतिशत दिल्ली के विधायकों और उसके बाद तेलंगाना के विधायकों की सैलरी में 170 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सांसदों की सैलरी विधायकों की औसत सैलरी की तुलना में 2 गुना ज्यादा है। सांसद को हर माह 2.91 लाख रुपये मिलते हैं इसमें 1.40 लाख रुपये की बेसिक सैलरी और 1.51 लाख रुपये का भत्ता शामिल होता है।

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