चीन सीमा पर सुरक्षा के लिहाज से देश की ताकत और बढ़ने जा रही है। 14 साल के अथक प्रयास के बाद गर्बाधार-लिपुलेख तक बनी सीमांत की सामरिक महत्व वाली पहली सड़क को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश को समर्पित किया।
उन्होंने ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैलाश मानसरोवर के लिए लिंक रोड का उद्घाटन किया। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाने भी उपस्थित थे।
इस सड़क के बनने से कैलाश मानसरोवर यात्रा अब आसान हो जाएगी। यात्रियों को अब कम पैदल चलना पड़ेगा साथ ही यात्रा करने में पहले के मुकाबले 6 दिन कम लगेंगे। उत्तराखंड के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर बीआरओ ने लिपुलेख दर्रे से पांच किलोमीटर पहले तक सड़क तैयार कर ली है।
यह सड़क सामरिक लिहाज से भी अहम है। इससे सुरक्षा बलों को भी राहत मिलेगी और कनेक्टिविटी आसान होगी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस लिंक रोड का उद्घाटन किया। इस दौरान सीडीएस जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे भी मौजूद थे।
वहीं उत्तराखंड में बीआरओ कैलाश मानसरोवर तक का रास्ता बना रहा है। यह रास्ता काली नदी के किनारे किनारे बनाया गया है। काली नदी भारत और नेपाल के बीच में है। यह सड़क लिपुलेख दर्रे तक बनेगी। बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने कहा कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से तवाघाट तक 107 किलोमीटर की दूरी है और डबल लेन रोड है, जिसका मेंटेनेंस बीआरओ कर रहा है।
तवाघाट से आगे घटियाबगड़ तक 19.5 किलोमीटर की सिंगल लेन रोड है जिसे डबल लेन किया जा रहा है। घटियाबगड़ से लिपुलेख तक की 80 किलोमीटर की सड़क पर भी बीआरओ काम कर रहा है। इसमें लिपुलेख दर्रे से पांच किलोमीटर पहले तक सड़क बन गई है।
यह सड़क बनने से सुरक्षा बलों का आना जाना भी आसान हो जाएगा। पिथौरागढ़ से चीन और नेपाल बॉर्डर लगता है। यहां आर्मी के अलावा आईटीबीपी और एसएसबी भी तैनात है। सड़क बनने से इन्हें भी राहत मिलेगी। साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रियों को फायदा होगा। अब लिपुलेख दर्रे के पांच किलोमीटर पहले तक गाड़ी जा सकती हैं।
इसका मतलब है कि गुंजी में एक्लेमटाइजेशन के लिए पहला नाइट स्टे कर एक्लेमटाइजेशन की दूसरी स्टेज लिपुलेख के पास पूरी कर सकते हैं। साथ ही अब पांच दिन पैदल चलने के बजाय यह दूरी दो दिन में गाड़ी से पूरी हो जाएगी। इससे 6 दिन बचेंगे।
तीन दिन जाते वक्त और तीन दिन आते वक्त। सिक्किम और काठमांडू से भी कैलाश मानसरोवर जा सकते हैं लेकिन उत्तराखंड का यह रूट सबसे छोटा है और सबसे सस्ता पड़ता है। इसमें एयर ट्रैवल भी नहीं करना होता। जब पांच किलोमीटर की सड़क भी पूरी हो जाएगी तब लिपुलेख दर्रे तक गाड़ी से जाने के बाद चीन की तरफ बस 5 किलोमीटर ही पैदल चलना होगा।
बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह के मुताबिक 2016 में भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) ने लास्ट माइल कनेक्टिविटी यानी एकदम बॉर्डर तक रोड बनाने पर अस्थाई तौर पर रोक लगाई थी और अभी यह रोक हटना बाकी है। यह रोक हट गई तो लिपुलेख दर्रे तक की कनेक्टिविटी का काम इसी महीने शुरू किया जा सकता है और यह काम इसी साल दिसंबर तक पूरा हो सकता है।
शनिवार से सेना और अर्द्ध सैनिक बल की गाड़ियों को संचालन की अनुमति होगी। आम लोगों के वाहनों को कुछ दिनों बाद अनुमति दी जा सकती है। सड़क के बनने से कैलाश मानसरोवर यात्रा, छोटा कैलाश यात्रा सहित माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों के लिए राह आसान होगी। इसके अलावा सामरिक महत्व की दृष्टि से भी सड़क का निर्माण महत्वपूर्ण है। सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी आवाजाही में सुविधा मिलेगी।