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विद्यांत में विभाजन विभीषिका दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन

लखनऊ। आजादी का अमृत महोत्सव के कार्यक्रम श्रंखला के अंतिम चरण में आज विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज में विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ कॉलेज प्राचार्य डॉ. धर्म कौर ने किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ बृजेंद्र पांडेय। डॉ. बृजेंद्र पांडेय ने अपना भाषण दो भागों में प्रस्तुत किया। सबसे पहले उन्होंने वर्तमान संदर्भ के बारे में बताया। दूसरे भाग में उन्होंने विभाजन की भयावहता के बारे में बात की।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में हम मूल्यों और आदर्शों के संकट का सामना कर रहे हैं। उन्होंने एडमंड बर्क को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था कि राष्ट्र का संचित ज्ञान उसकी क़ीमती संपत्ति है। उन्होंने कहा कि सिस्टम पर एकरूपता, आधिपत्य को रोका जाना चाहिए। दूसरे भाग में उन्होंने कहा कि हम भ्रमित हैं कि बंटवारे की दहशत को याद करना है या भूल जाना है। निजी जीवन में हम किसी भी भयानक घटना को भूलना चाहते हैं। कुछ लोग इतिहास को फिर से देखना चाहते हैं ताकि हम इस से सबक सीख सकें। लेकिन उन्होंने जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के हवाले से कहा कि इतिहास हमें एक बात सिखाता है कि यह हमें कुछ नहीं सिखाता।

मूर्ख इतिहास से सबक नहीं लेते। विभाजन का मुद्दा बहुआयामी, बहु-प्रासंगिक, बहुस्तरीय था। उन्होंने विभाजन के बारे में विस्तार से जानने के लिए छात्रों को खुशवंत सिंह की किताब ए ट्रेन टू पाकिस्तान, दुर्गादास की किताब इंडियन फ्रॉम कर्जन टू नेहरू आदि को पढ़ने का सुझाव दिया। इतिहास के छात्रों के लिए उन्होंने डोमिनिक लैपपायर्स और लैरी कॉलिन्स की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट, सिथल बंदोपाध्याय
की किताब प्लासी टू पार्टिशन – ए हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न इंडिया, मौलाना अबुल कलाम की किताब इंडिया विन्स फ्रीडम, मनोहर लोहिया की पुस्तक गिल्टी मेन ऑफ इंडियाज पार्टिशन आदि को पढ़ने सुझाव दिया।

उन्होंने कहा कि उस समय कोरिया, जर्मनी और भारत को विभाजन का सामना करना पड़ा था। पहले दो साम्यवाद और पूंजीवाद की वैचारिक रेखा पर विभाजित थे। एक को अमेरिका और दूसरे को यूएसएसआर का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने उन फिल्मों के बारे में बात की जिनमें विभाजन के मुद्दे को शामिल किया गया है। लेकिन इन फिल्मों ने केवल हिमशैल का सिरा दिखाया है। बंगाल और पंजाब को विभाजन का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ा। क्लेमेंट एटली ने 1948 तक माउंटबेटन को भारत को मुक्त करने के लिए भेजा, लेकिन माउंटबैंटन ने विकट स्थिति को देखते हुए इसे 1947 में ही आज़ाद करने का सुझाव दिया।

उन्होंने छात्रों को आगाह किया कि वे सोशल मीडिया में दिए गए जानकारी के आधार पर तत्काल निर्णय न लें। हमें देश की एकता पर ध्यान देना चाहिए। कार्यक्रम में डॉ. राजीव शुक्ला और डॉ बृजेश कुमार ने भी विचार व्यक्त किए। डॉ. राजीव शुक्ला ने कहा कि जब परिवार विभाजित होता है तो हमें समस्या का सामना करना पड़ता है, जब राष्ट्र का विभाजन होता है तो भी हमें समस्या का सामना करना पड़ता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ आर के ने किया। इस अवसर पर डॉ. अमित वर्धन, डॉ. आलोक भारद्वाज, डॉ. बीबी यादव, डॉ. शहादत, डॉ. संजय, डॉ. ध्रुव कुमार त्रिपाठी, डॉ. दिनेश मौर्य, डॉ. अभिषेक वर्मा के अलावा छात्र छात्राएं सहभागी हुए।

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