हमारे भामाशाहों ने मन्दिरों को सरकारी नियन्त्रण से बचाने का सब समय प्रयास किया है। जब भी मुगलों ने मन्दिर पर नजर डाली उस समय के भामाशाह आगे आकर उसे बचाने का पूरा-पूरा प्रयास करते रहे थे। अब प्रस्तुत कर रहा हूं इससे सम्बन्धित एक ऐतिहासिक घटना…
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एक मराठा सैनिक आपा गंगाधर ने 800 साल पहले पुरानी दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में प्रसिद्ध गौरी शंकर मंदिर निर्मित किया गया था। एक बार एक बड़े वैश्य व्यापारी लाला भागमल जी को पता चला कि क्रूर, निर्दयी औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश अपने सिपाहियों को दिया है तो उन्होनें औरंगजेब से सीधा-सीधा पूछा-तुझे कितना जजिया कर चाहिए??? कीमत बोलिये, लेकिन मन्दिर को कोई हाथ नही लगाएगा, मन्दिर की घण्टी बजनी बन्द नही होगी!
कहते हैं इसके जबाब में उस वक़्त औरंगजेब ने औसत जजिया कर से 100 गुना ज्यादा जजिया कर, हर महीने माँगा था। और वैश्य व्यापारी लाला भागमल जी बिना माथे पर शिकन लाये हर महीने उतना जजिया कर औरंगजेब को दान के रूप में दिया था। इस तरह वैश्य व्यापारी लाला भागमल ने उन आततायी से मन्दिर को बचाया यानि मन्दिर को छूने तक नहीं दिया। इस घटना के कई दशक बाद इसी गौरी-शंकर मंदिर का जीर्णोद्धार सेठ जयपुरिया नाम के शिव भक्त ने 1959 में कराया था। इस तरह मराठा सैनिक आपा गंगाधर के समय से लेकर आज तक मन्दिर की घण्टियाँ ज्यों की त्यों बज रही हैं।
लेकिन जब से हमारे ऊपर ब्रिटिश सरकार बैठी उसने इस समस्या को जटिल बना दिया। 1863 में ब्रिटिश सरकार द्वारा धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम पारित हुआ और तो और आजादी के बाद भी यह नियन्त्रण चालू रखा गया अर्थात 1925 में संशोधित विशिष्ट हिंदू मंदिर कानून के अनुसार काम होता रहा।
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प्रोफेसर जी0 रमेश (आईआईएम, बेंगलुरू के सेंटर ऑफ पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर) द्वारा मन्दिर प्रबंधन पर लिखे गए एक शोधानुसार यह कानून और इसके बाद आए संशोधनों ने मन्दिरों के प्रबंधन को देखने के लिए बोर्ड की व्यवस्था करने का हक दिया और कुछ मामलों में तो बोर्ड मन्दिरों के प्रबंधन का सम्पूर्ण भार अपने हाथों में ले सकता था।1959 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार मन्दिरों का नियंत्रण हिन्दू समुदाय को सौंपने की मांग की अर्थात मन्दिर प्रबन्धन समिति में केवल हिन्दू सदस्यों को ही नामित किया जाय और इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव भी पास किया था।
1970 से विश्व हिन्दू परिषद् लगातार इस मुद्दे को उठा रही है और इन सभी प्रयास के चलते 2014 में बीजेपी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार बनने के बाद हिन्दू संगठनों ने मन्दिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के प्रयास में अपनी पूरी ताकत झोंकी। हाल के दिनों में जो-जो घटायें देखने, पढ़ने व सुनने को मिलीं उसके मद्देनजर अब उचित यही रहेगा कि सरकार ऐसा कानून बना दे जिसके चलते मन्दिर प्रबन्धन समिति के सदस्य हिन्दुओं के अलावा और कोई नहीं, ताकि हमेशा के लिये सरकारी नियन्त्रण समाप्त हो जाय अर्थात कोई भी दल सरकार में रहे वह इसमें बदलाव कर ही नहीं सके। यह व्यवस्था हो जाने से हम सनातनी अपने रीति रिवाजों अनुसार ठाकुर जी की सही तरीके से सेवा कर पायेंगे।