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क्वारंटाइन सेन्टर्स लोगों के लिए बन रहे ‘यातना शिविर’: अखिलेश यादव 

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है, जिसके प्रति प्रशासन तंत्र ने उदासीनता का रवैया अपना लिया है। भाजपा सरकार की संकट से निबटने की इच्छाशक्ति भी कमजोर हो चली है। अब न तो कोई श्रमिकों की सुरक्षित और सम्मानित ढंग से वापसी में रूचि ले रहा है और नहीं नागरिकों की जिंदगी-मौत के प्रति संवेदना जता रहा है। भाजपा सरकार प्रदेश की करोड़ों जनता को उसके भाग्य के भरोसे छोड़कर खुद निश्चिंत हो राजसुख भोगने में मग्न हो गई है।


मुख्यमंत्री जी जांच और क्वारंटाइन स्थलों के बारे में बड़े-बड़े दावे करते हैं लेकिन सच यह हैं कि अब क्वारंटाइन सेन्टर्स लोगों के लिए ‘यातना शिविर‘ में तब्दील हो गए है। इनकी हालत बेहद खराब और दयनीय है। अधिकारियों ने तालाबो, पोखरों और उजाड़ जगहों में क्वारंटाइन किए जाने वाले श्रमिकों को पशुओं से भी बुरी दशा में रखा जा रहा है। भाजपा सरकार इसे ही फाइवस्टार व्यवस्था बता रही है जिसके विरोध में कई जगह डाक्टर, नर्स और श्रमिक भी प्रदर्शन कर चुके हैं। अभी तक कोरोना वायरस की बीमारी से लड़ने पर जो व्यय हुआ है उसका ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए। जनता को यह जानने का अधिकार है कि खर्च कहाँ हुआ? पैसों का हिसाब किताब क्या?


भाजपा सरकार की बदइंतजामी और घोर लापरवाही का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि वीवीआईपी जनपद गोरखपुर के सहजनवां ब्लाक में क्वारंटाइन सेन्टर में एक प्रवासी श्रमिक के बिस्तर में सांप घुस गया। श्रमिक की किस्मत अच्छी थी कि वह जिंदा बच गया। लेकिन कुछ दिन पहले गोण्डा में एक स्कूल के अंदर बने क्वारंटाइन सेन्टर में 16 साल के एक लड़के को सांप काटने से मौत हो गई। इन सेन्टरों में घटिया खाना, दिये जाने के साथ वहां तैनात स्टाफ को समय से हाजिर न होने की भी शिकायतें आम है। राज्य सरकार की प्रशासनिक पंगुता और शिथिलता के चलते ही लोग अब निजी क्वारंटाइन सेन्टरों की ओर रूख कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण की जांच रिपोर्टों को लेकर भी विवाद होते रहते हैं। सरकारी अस्पतालों में भी मरीजों के प्रति आवश्यक निर्देशों का पालन नहीं होने की खब़रें आती रही है। लोगों की जिंदगी के साथ यह सरकार जैसा खिलवाड़ कर रही है वह अत्यंत दुःखद और अमानवीय है।


श्रमिकों का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है यह अस्तित्व की लड़ाई है तथा लम्बे समय तक संघर्ष जारी रहने वाला है। सरकार चालाकी से बसों की बहस चलाये रखना चाहती है जबकि बसों का विवाद निरर्थक है। इसे बस करना चाहिए, हजारों श्रमिक दूसरें राज्यों और सीमाओं में अभी भी फंसे हुए है। उनके बारे में उत्तर प्रदेश की सरकार संवेदनशील नहीं है। आज ही खब़र है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की सीमा पर अमझराघाटी पर मेहनतकशों का सैलाब बढ़ता जा रहा है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की निष्क्रिय भाजपा सरकरों ने मजदूरों की बेबसी को धोखा देने और प्रताड़ित करने का काम किया है। जनता के आक्रोश की आंधी में भाजपा की अहंकारी सत्ता के उखड़ने में देर नहीं लगेगी।

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