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दिल्ली से राजस्थान : धर्म और देश दोनों ही तबाह

दिल्ली में प्रजा पर चलने वाला बुल्डोज़र अब राजस्थान में धर्म पर भी चल गया है। बुल्डोज़र चलाने वाले और कोई नहीं, बल्कि वही हैं जिन्हें, देश की जनता ने मतदान का मुकुट पहना कर अपना सिरमौर बनाया था। आज़ादी के बाद से लेकर कभी धर्म के नाम पर देश तबाह होता है, तो कभी देश के नाम पर धर्म। पिछले 70 सालों में न जनता कुछ समझ सकी और न ही देश की सरकारें सुधर सकीं। 

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

सेक्युलर सियासत का चश्मा गजब है। इसमें जहांगीरपुर के अवैध निर्माण पर चलता हुआ बुलडोजर तो दिखता है, लेकिन राजस्थान में मंदिर व गौशाला की तबाही दिखाई नहीं देती। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी यह नजरिया दिखाई दिया था। जिसे मतदाताओं ने नकार दिया था। उन्होंने माफिया व दबंगों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने की नीति को अपना समर्थन दिया था। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस शासन के बुलडोजर से जन मानस आहत हो रहा है।

कथित सेक्युलर सियासत के दावेदार दोहरे पैमाने से स्वयं को ही बेनकाब करते रहे हैं। इनको गलतफहमी रहती है कि जनता इनके प्रत्येक रूप पर विश्वास करती है। जबकि इन सभी की दशा दिशा ही असलियत को बयान कर देती है। इसके प्रमाण में अनगिनत उदाहरण है। पश्चिम बंगाल व केरल की राजनीतिक हिंसा पर ये खामोश रहते हैं। भाजपा शासित राज्यों की किसी अप्रिय घटना पर ज़मीन आसमान एक कर दिया जाता है। ताज़ा उदाहरण दिल्ली और राजस्थान से जुड़ा है। दिल्ली में रामनवमी जुलूस पर सुनियोजित पत्थरबाजी के विरोध में जिन्होंने एक शब्द नहीं कहा। वहीं, ये लोग आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाई पर मुखर थे। बहुत दिनों के बाद ये सभी चेहरे एक साथ चर्चा में रहे। शायद इन लोगों को ऐसे ही अवसर की तलाश रहती है। इन सभी की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है। इन सभी के सामने विश्वास का संकट है। सेक्युलर सियासत के नाम पर इनके दोहरे मापदंड जगजाहिर हैं। इस बार भी ऐसा हुआ।

इन्होंने दिल्ली में आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाई को मुद्दा बनाया। लेकिन राजस्थान में तीन सौ वर्ष पुराने मंदिर के विध्वंश पर ये सभी खामोश रहे। इसके बाद ही राजस्थान में एक गौशाला को ध्वस्त कर दिया गया। वहां लगी पानी की टँकी को नष्ट कर दिया। करीब चार सौ गौवंश को लावारिस छोड़ दिया गया। यह भी नहीं सोचा गया कि इन गोवंश को पानी व चारा कैसे मिलेगा। यह क्रूरता पूर्ण कार्यवाई थी। अतिक्रमण हटना चाहिए। लेकिन इस कार्य में मानवीय संवेदना की तिलांजलि नहीं देनी चाहिए। राजस्थान में मंदिर को जिस प्रकार नष्ट किया गया, उसका तरीका मध्ययुगीन था। मंदिर को हटाना अपरिहार्य था, तब भी वहां स्थापित प्रतिमाओं को पूरी प्रतिष्ठा के साथ अस्थाई रूप से अन्यत्र स्थापित करना चाहिए था।

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश का एक प्रसंग ध्यान में आ गया। अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ होना था। वहां विराजमान श्री राम लला की प्रतिमा को अस्थाई रूप से अन्य स्थान पर ले जाना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं अयोध्या गए। श्री राम लला की मूर्ति को उन्होंने अपनी गोद में उठाया। विधि विधान व मंत्रोच्चार के साथ योगी इन मूर्तियों को अस्थाई मंदिर में ले गए। इसी प्रकार काशी में माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति को पुनर्स्थापित करना था। योगी आदित्यनाथ काशी पहुंचे। उसी विधि विधान व सम्मान के साथ वह माँ अन्नपूर्णा को मूर्ति को ले गए।

यह कहना गलत है कि राजस्थान के उस क्षेत्र की नगरपालिका पर बीजेपी का कब्जा है। इसलिए मंदिर ध्वस्त करने की जिम्मेदारी उसकी है। लेकिन, अब तथ्य सामने आ रहे हैं कि नगरपालिका ने मंदिर को हटाने का प्रस्ताव नहीं किया था। यह सब गहलौत सरकार के रुख को देखते हुए किया गया। सीकर सांसद सुमेधानंद सरस्वती ने बताया कि बुलडोजर भाजपा ने नहीं चलाया है। बोर्ड ने जो प्रस्ताव लिया वह अधूरे पड़े गौरवपथ के कार्य को पूरा करने के लिए था। उसमें स्पष्ट है कि अतिक्रमण को चिन्हित किया जाए। चिन्हित करने के बाद, नोटिस देकर जवाब लिया जाए। जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर कार्रवाई की जाए। लेकिन, प्रशासन ने नोटिस नहीं दिए। मास्टर प्लान में उल्लेख है कि जिन लोगों के पास पुराने पट्टे हैं, दुकान व मकान हैं, तो आवश्यकता पड़ने पर रास्ते को संकरा किया जा सकता है। इस प्रकार का प्रावधान हैं। यहां बोर्ड भाजपा का है। इसलिए षड्यंत्र के तहत मकान मंदिर तोड़े गए। जिससे भाजपा पर ठीकरा फोड़ा जाए। लेकिन कांग्रेस सरकार का यह दांव उल्टा पड़ रहा है।

गहलोत सरकार ने सालासर, करौली में भी हिंदुओं की आस्थाओं को आहत किया था। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के मंत्री ने झूठ कहा कि नगर पालिका के प्रस्ताव के अनुसार मंदिर तोड़े गए। जबकि नगर पालिका की ओर से जो प्रस्ताव दिया गया था, उसमें साफ है कि 60 फीट की जगह 30 फीट जगह छोड़ दी जाए। उस प्रस्ताव में कहीं पर भी मंदिर का नाम नहीं है। मंदिर विध्वंस की यह कार्रवाई कांग्रेस के स्थानीय विधायक की ओर से बदला लेने की भावना से द्वेष पूर्वक की गई है।

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने आरोप लगाया कि मूर्तियों को खंडित किया गया और ये मूर्तियां नालियों में मिली। यह आस्था पर प्रहार है। अलवर जिले के राजगढ़ में मंदिरों पर बुलडोजर चलाने का मामला पहले से विवादों में चल रहा है और अब कठूमर में गोशाला पर भी वन विभाग की ओर से बुलडोजर चलाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई है। गोशाला को पूरा तोड़ दिया गया है, जिससे सैकड़ों गोवंशों के सामने रहने का संकट हो गया है। गोवंशों को कहां ले जाना है इसके लिए वह विभाग और प्रशासन की ओर से कोई इंतजाम भी नहीं किए गए हैं। कठूमर उपखंड में पिछले एक दशक से चल रही एक मात्र गोशाला को वन विभाग ने अतिक्रमण मानते हुए उसे बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया है। राज्य में सरकार गो सेस से करोड़ों रुपये कमाती है। इसके बावजूद गोवंश की रहने की व्यवस्था को लेकर कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। गोशाला को ध्वस्त करने से करीब चार सौ गोवंश निराश्रित हो गए है। गोशाला संचालक ने दस दिन का समय मांगा था, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई।

भाजपा के आरोप है कि राजस्थान की सरकार बहुसंख्यक समाज को आहत करने की ठान चुकी है। राज्य सरकार द्वारा पहले सालासर के अंदर गेट पर लगे राम मंदिर को गिराने का काम किया गया। फिर करौली के दंगे और फिर अलवर के अंदर राजगढ़ में मंदिर को ध्वस्त किया गया। उसके बाद अब अलवर जिले के ही कठूमर की गौशाला को तबाह कर दिया गया। जबकि, इसे सरकार से अनुदान मिल रहा था। अलवर के जिला कलेक्टर द्वारा बेस्ट गौशाला का अवार्ड भी प्रदान किया गया था। लेकिन, उसके उपरांत भी कठूमर विधानसभा क्षेत्र में विधायक के इशारे के ऊपर वन विभाग का नाम लेकर चार सौ गायों के आशियाने को उजाड़ने का काम किया गया। इसमें पानी की टंकी, गौशाला की चारदिवारी, चारे के शेड को तोड़ दिया गया है। सभी गायों को ऐसे स्थान पर छोड़ा गया है, जहां उनके चारे की कोई व्यवस्था नहीं है।

जहाँगीरपुर में अवैध निर्माण पर चले बुलडोजर को रुकवाने वाले मंदिर व गौशाला को ध्वस्त करने पर खामोश है। इनके लिए राजनीति ही सब कुछ है। आस्था और मानवता से इनका कोई लेना देना नहीं है। ऐसे विषयों पर इनका एक बयान तक नहीं आता क्योंकि इन्हें लगता है कि ऐसा करने से इनकी सेक्युलर छवि खराब हो जाएगी। इनके द्वारा निंदनीय घटनाओं में भी खुल कर भेदभाव किया जाता है। प्रकरण भाजपा शासित प्रदेश में हो तो इसे असहिष्णुता करार दिया जाता है। कांग्रेस प्रदेशों में हो तो आहट तक नहीं होती। इतना ही नहीं, आरोपी हिन्दू हो तो हंगामा, किसी वर्ग विशेष का हो तो फिर वही चिर परिचित खामोशी। इसके बाद भी ऐसे लोग सेक्युलर होने का दावा करते है।

पश्चिम बंगाल में इस कथित सेक्युलर राजनीति की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। यहां चुनाव के बाद हिंसक गतिविधियां चल रही थी। भाजपा समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है। यह बताया जा रहा है कि इनको अपनी मर्जी से वोट देने का अधिकार नहीं है। लेकिन यहां सैकड़ों घटनाओं के बाद भी किसी को असहिष्णुता दिखाई नहीं दी। किसी ने इसके विरोध में सम्मान वापस नहीं किया। किसी ने नहीं कहा कि उनको भारत में रहने से डर लग रहा है। गजब है इनका सेक्युलर चश्मा।

 

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