
पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) पर संसद भवन (Parliament House) में सर्वदलीय बैठक (All-Party Meeting) शुरू हो गई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में बैठक (Chaired by Defense Minister Rajnath Singh) हो रही है। गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, किरेन रिजीजू, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमण बैठक में मौजूद हैं। सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता राजनाथ सिंह कर रहे हैं। जब मैंने यह सुना तो मेरे मन में आया की कुछ लिखा जाए, क्योंकि 2019 में जब राजनाथ सिंह को गृह मंत्री के पद से रक्षा मंत्री का दायित्व दिया गया तब देश के पॉलिटिकल पंडितों ने यह नैरैटिव बनाया कि राजनाथ सिंह को उनके नंबर दो की हैसियत से हटा दिया गया है। उनका कद घट गया है।
लेकिन जब किसानों से संबंधित तीन कानून लाये गए और उनका व्यापक स्तर पर विरोध हुआ तब राजनाथ सिंह को आगे किया गया। जम्मू कश्मीर में हिंसा हो या आरक्षण को लेकर जाट आंदोलन या फिर तथाकथित रूप से गालवान घाटी में चीन के द्वारा अतिक्रमण करने की बात हो तब संसद के दोनों सदनों में बयान देने के लिए राजनाथ को ही आगे किया गया।
वास्तविकता यह है कि निर्विवाद नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते राजनाथ सिंह में जो क्षमता है वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाले भाजपा में किसी और नेता में नहीं है। ‘दी मैन आफ ऑल सीजन’ कहे जाने वाले राजनाथ सिंह के बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा कि जब इमरजेंसी के दौरान वह जेल में थे, तभी उनके माता का निधन हो गया और राजनाथ अपनी मां का अंतिम दौर में मुंह भी ना देख सके।
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काम कम करो दिखावा ज्यादा करो वाले दौर की इस राजनीति में राजनाथ सिंह पर्दे के पीछे से ही रहकर काम करना चाहते हैं। 2014 में भाजपा सत्ता में आई तो उस वक्त राजनाथ सिंह ही राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। जब उन्होंने भाजपा के कई बड़े नेताओं की नाराजगी को झेलते हुए प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का प्रस्ताव किया तब लोगों के द्वारा कहा गया कि राजनाथ सिंह को पता है कि भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा और बहुमत नहीं मिलेगा तो अंततः प्रधानमंत्री राजनाथ सिंह ही होंगे लेकिन राजनाथ के ऊपर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपना काम करते रहे और बाद में प्रधानमंत्री कौन बना यह सब जानते हैं।
यदा कदा राजनाथ सिंह की हैसियत का आकलन वह लोग करते रहते हैं जिन्हें वास्तव में राजनाथ सिंह की हैसियत का अंदाजा ही नहीं है। मैं नाम नहीं लेना चाहता लेकिन यह सत्य है कि उत्तर भारत में तमाम सारे नेता जाति के बंधन को तोड़कर आज बड़े नेता बने हैं वह सब राजनाथ सिंह की ही नर्सरी से निकले हुए हैं।
आज जहां, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच में ऊंट पटांग बयान देने की प्रतियोगिता चल रही है, वहां राजनाथ सिंह बहुत सधे हुए अंदाज में अपनी बात को मजबूती के साथ रखते हैं। वह किसी के ऊपर अनर्गल टिप्पणी कभी नहीं करते। केंद्र में सरकार होने, ईडी, सीबीआई होने पावर व पैसा होने तमाम सरकारी संस्थान होने से अपने आप को कोई चाणक्य भले कह दे। लेकिन वास्तव में चाणक्य सिर्फ और सिर्फ राजनाथ सिंह है। क्योंकि 2013 के गोवा के अधिवेशन में तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी के नाम का प्रस्ताव उस दौर में किया जब भाजपा के बड़े नेता उनका विरोध कर रहे थे। शायद यही कारण है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को मुश्किल वक्त में सिर्फ राजनाथ सिंह ही याद आते हैं।