राजस्थान में कांग्रेस ने चुनाव से पहले पार्टी में पड़ी फूट खत्म कर दी है। सचिन पायलट पूर्वी राजस्थान के ताकतवर नेता माने जाते हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि अब बदले हालात में बीजेपी को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी का पूर्वी राजस्थान से सूपड़ा साफ हो गया है। 39 सीटों में से कांग्रेस के 35 सीट जीतने में सफलता मिली थी। बंपर जीत की वजह सचिन पायलट माने गए थे। क्योंकि पूर्वी राजस्थान का सियासी समीकरण जातियों में उलझा हुआ है। दो प्रमुख जाति मीना-गुर्जर को पायलट ने साध लिया था। लेकिन पायलट की सीएम नहीं बनाने से गुर्जर वोटर्स नाराज हो गए। सियासी जानकारों का तर्क है कि सचिन पायलट का फिर से जुड़ाव कांग्रेस के लिए संजीवनी से कम नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी जाति मीना समुदाय परंपरागत तौर कांग्रेस का वोट बैंक मानी जाति है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पूर्वी राजस्थान में सियासी हवा बदल गई है।
सचिन पायलट का प्रभाव सीधे तौर पर सवाई माधोपुर, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा सहित विभिन्न जिलों के 40 निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इन निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में गुर्जर मतदाता हैं जो चुनाव परिणाम निर्धारित करने में पर्याप्त शक्ति रखते हैं।
गहलोत-पायलट की सुलह से बीजेपी दोनों को काफी नुकसान हो सकता है। पायलट को विभिन्न समुदायों के लगभग 20 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। ये समर्थक गुर्जर समुदाय के प्रभुत्व वाली 40 सीटों के अलावा 15 विधानसभा सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दांवा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को राजस्थान में बड़ा समर्थन मिला था। सचिन पायलट के परंपरागत गढ़ दौसा में राहुल गांधी को देखने के लिए लोगों में क्रेज देखा गया है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का उम्मीद है कि गहलोत-पायलट सुलह से पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस को एक बार फिर सफलता मिलेगी। पूर्वी राजस्थान के दौसा, अलवर, सवाई माधोपुर, करौली, भरतपुर और धौलपुर में सचिन पायलट का बड़ा असर माना जाता है।
सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी राजस्थान में सत्ता वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है। पूर्वी राजस्थान में गुर्जर बाहुल्य कई सीटें हैंष इन सीटों पर बीजेपी की पैनी नजर है। लेकिन गहलोत-पायलट सुलह से बीजेपी के सामने जीत की बड़ी चुनौती है।