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भारत की संस्कृति में रचा बसा है स्त्री का सम्मान : डा दिनेश शर्मा

•|स्त्री सम्मान व वीरता के तमाम उदाहरण भारत की संस्कृति मौजूद

• देश और प्रदेश को राह दिखा रही है महिलाएं

• महिलाओं को स्वस्थ और सबल बनाने के लिए योजनाए चला रही हैं केन्द्र व राज्य सरकार

•त्योहार आपस के सम्बंधों में रस और प्रेम घोलने का माध्यम

लखनऊ। पूर्व उपमुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा ने कहा कि स्त्री का सम्मान भारत की संस्कृति में रचा बसा है। महिला के सम्मान की बात भारत को किसी से सीखने की जरूरत नहीं है बल्कि यह हमारे मूल में है। हमारे यहां पर देवताओं को भी जब पुकारा जाता है तो गौरीशंकर, सीताराम, लक्ष्मीनारायण, उमाशंकर, राधाकृष्ण कहा जाता है। यहां पर भी नारी का सम्मान प्रथम है। स्त्री सम्मान के तमाम उदाहरण भारत की संस्कृति में मिलते हैं। इसी प्रकार उनकी वीरता के भी कई उदाहरण है। आज देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति मुर्मू और प्रदेश की प्रथम नागरिक राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल महिला हैं और देश और प्रदेश को नेतृत्व दे रही हैं।

भारत की संस्कृति में रचा बसा है स्त्री का सम्मान : डा दिनेश शर्मा

कैंसर फ्री इंडिया और महिला सम्मान समारोह को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के क्षेत्र में कार्य करना समाज की सबसे बडी सेवा है। कैंसर की वैक्सीन महिलाओं को लगाने के बारे में मुख्यमंत्री जी से शीघ्र मंत्रणा करने का भरोसा देते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार महिलाओं को स्वस्थ और सबल बनाने के लिए कई योजनाए चला रही हैं। स्वास्थ्य शिक्षा विवाह सहायता आदि की इन योजनाओं की जानकारी महिलाओं तक पहुचाने की मुहिम संस्थाओं द्वारा भी शुरु की जानी चाहिए।

भारत की संस्कृति में रचा बसा है स्त्री का सम्मान : डा दिनेश शर्मा

महिलाओं की बेहतरी के लिए संस्था के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं को कौशल विकास से भी जोडा जाना चाहिए। इससे उनके बेहतर भविष्य की राह आसान होगी। गरीब घरों की बेटियों तक इस प्रकार की जानकारी उनका भविष्य संवारने का काम करेगी। यूपी की सरकार ने बेटियों को जूडो कराटे की शिक्षा देने का कार्यक्रम स्कूलों में आरंभ किया था। संस्था भी इस प्रकार के कार्यक्रम आरंभ कर उन्हे मानसिक रूप से मजबूत कर सकती है। इसके साथ ही सदगुणों के विकास की भी चर्चा होनी चाहिए।

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उन्होंने कहा कि भारतीय परिवारों में नारी सशक्तिकरण होता है। आज बदलते समय में संयुक्त परिवारों का विघटन बच्चों को अवसादग्रस्त कर रहा है। बच्चों को परिवार में बडो के साथ रखना चाहिए इससे वे खेल खेल में ही कहानियों आदि के जरिए काफी कुछ सीख जाते हैं।

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उन्हें अपने रीति रिवाज से भी परिचित कराते रहने की आवश्यकता है। हमारे त्योहर आपस के सम्बंधों में रस और प्रेम घोलने का माध्यम हैं। महिलएं जब एकत्रित हो तो इस पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विदेशों में चूल्हा खत्म होने के साथ ही परिवार में स्नेह समाप्त् हो रहा है।

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भारत में आज भी चूल्हा परिवार में प्रेम और एकता स्थापित करने में अहम है। उन्होंने समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए बचपन से ही बेटियों को अपने संस्कारों में ढालने का आवाहन किया। जिससे 2 पीढ़ियां प्रभावित होती हैं। कार्यक्रम स्त्री वेलफेयर फाउंडेशन संस्था द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें भारी संख्या में समाजसेवी तमाम संगठन सम्मिलित हुए। संस्था के अध्यक्ष डॉ नीलू द्विवेदी, डॉ रमेश कुमार सिंह, गोपाल राय, शशि पांडे, अंजनी कुमार सिंह, विवेक पांडे, क्षेत्रीय पार्षद कौशलेंद्र कुमार द्विवेदी विशेष रूप से उपस्थित थे।

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