Breaking News

सांसद आदर्श ग्राम योजनाः खामियां दूर करके लाएं तेजी

देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी गांव-देहात में रहती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस सत्तर प्रतिशत आबादी का बड़ा हिस्सा आजादी के करीब 73 वर्षो के बाद भी स्वच्छ जल, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, संचार माध्यम, परिवहन सेवाओं और पक्की सड़क से वंचित है। यही नहीं गांवों को खुले में शौच से मुक्त किए जाने को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन आज भी गांव में तालाब किनारे, खेतों के अंदर और ट्रेन की पटरियों के आस-पास खुले में शौच करते लोग मिल जाते हैं। बिजली गांव तक पहुंच जरूर गई है,लेकिन अभी भी इसको लेकर संतोषजनक स्थिति नहीं है। सड़क किनारे के गांवों में तो बिजली की स्थिति कुछ बेहतर नजर आती है,लेकिन जो गांव सड़क से दूर हैं वहां अभी भी लोगों को रात अंधेरे में ही गुजारना पड़ती है। किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए शहर के चक्कर लगाने पड़ते हैं। गांव मेें बैंक और एटीएम की तलाश में आपको लम्बी परिक्रमा पड़ सकती है। ग्रामीण अभी भी विकास से कोसो दूर हैं,इस बात का अहसास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अच्छी तरह से था और है। इसी लिए नरेन्द्र मोदी ने 2014 में जब पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो गांवों के विकास पर उनका विशेष फोकस था। इसी कड़ी में 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री बनने के बाद स्वतंत्रता दिवस के मोदी ने अपने पहले संबोधन में सांसदों के जरिये गांवों की तस्वीर बदलने वाली सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा लालकिले की प्राचीर से की थी। प्रधानमंत्री ने इच्छा जताई थी कि प्रत्येक सांसद हर साल एक गांव को गोद लेकर उसका विकास करे,इस तरह वह पांच वर्षो में पांच गांवों का विकास करा देेगा,जो काफी बड़ा कदम होता। यह योजना की 11 अक्टूबर 2014 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर इसकी शुरूआत भी हो गई थी।


गांवों का विकास हो,इसके लिए प्रधानमंत्री ने जब ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ का खाका खींचा तो इसके तहत उन्होंने सभी संसद सदस्यों से अपने क्षेत्र के एक गाॅव को गोद लेकर उसका विकास आदर्श ग्राम के रूप में करने को कहा। प्रधानमंत्री की सांसद आदर्श ग्राम योजना को अमली जामा पहनाने के पीछे की यही सोच थी कि पहले एक गांव को आर्दश गाॅव के रूप में विकसित किया जाए,इसके बाद इसी को आधार बनाकर अन्य सभी गांवों में विकास का पहिया दौड़ाया जाए। यह काम कोई खास मुश्किल भी नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्वयं अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक गांव को गोद लेकर उसका विकास कराया था,लेकिन सांसदों ने पीएम के उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दूसरे पार्टी के सांसदों की बात छोड़ भी दी जा जाए तो स्वयं भाजपा सांसदों ने भी सांसद आदर्श ग्राम योजना में कोई रूचि नहीं दिखाई। सांसदों की बेरूखी के कारण ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अति-महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना ने ‘दम’ तोड़ दिया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कराए गए एक सर्वे के निचोड़ को समझा जाए तो सांसद आदर्श ग्राम योजना से अपेक्षित उद्देश्य पूरा नहीं हो सका।

बहरहाल, सांसद ग्राम आदर्श योजना के सही ढंग से आगे न बढ़ने के आसार तभी से सामने आने लगे थे, जबकि प्रधानमंत्री की इच्छानुसार संसद सदस्यों ने गांवों को गोद लेने में रुचि नहीं दिखाई थी। विरोधी दलों के सांसद तो सरकार की विकास योजनाओं में अड़ंगा लगाते ही रहते हैं,लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि सख्त शासक माने जाने वाले पीएम मोदी अपनी पार्टी भाजपा के सांसदों और यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों पर भी इस योजना के तहत गांवों के विकास का दबाव नहीं बना पाए। प्रधानमंत्री ने कई बार सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र का कोई एक गांव गोद लेकर उसका आदर्श ग्राम योजना के तहत विकास कराए जाने की योजना की याद भी दिलाई,लेकिन किसी ने उनकी सुनी नहीं। न जाने क्यों भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएएस) जिसकी आवाज पार्टी के कार्यकताओं और नेताओं के लिए एक आदेश होती है,वह भी सांसद आदर्श ग्राम योजना को सफल बनाने के लिए आगे नहीं आया। वर्ना यह कोई बहुत कठिन काम नहीं था। यह हर लिहाज से एक अच्छी योजना थी। लोकसभा और राज्यसभा के करीब आठ सौ सांसद यदि प्रत्येक वर्ष एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करते तो आज आदर्श गांवों की संख्या हजारों में होती। ये गांव न केवल आत्मनिर्भर होते, बल्कि ग्रामीण विकास का आदर्श उदाहरण भी पेश कर रहे होते। चूंकि खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कराया गया सर्वे सांसद आदर्श ग्राम योजना की नाकामी को बयान कर रहा है इसलिए संशय के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। गांवों की सूरत बदलने वाली एक उपयोगी योजना के ऐसे हश्र पर केवल अफसोस ही नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि हर स्तर पर ऐसे उपाय किए जाने चाहिए जिससे अन्य योजनाएं और खासकर ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाएं असफलता का मुंह न देखने पाएं।

सांसद आदर्श ग्राम योजना का सर्वे करने वाला आयोग इस योजना की असफलता के पीछे की जो सबसे बड़ी वजह बता रहा है,उसके अनुसर इस योजना के लिए पृथक फंड निर्धारित न किया जाना इस योजना के असफल होने की सबसे बड़ी वजह बना, लेकिन इसके विपरीत यह भी पाया गया कि कुछ सांसदों ने सांसद आदर्श ग्राम योजना में रूचि दिखाई तो अतिरिक्त सक्रियता दिखाई वहां गांवों के आधारभूत ढांचे में सुधार हुआ। इसका मतलब है कि यदि इस योजना की कमियां दूर की जा सकें तो अभी भी देश के गांव आदर्श रूप ले सकते हैं। यह काम इसलिए प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए था क्योंकि कोरोना संकट के इस दौर में इसकी जरूरत और अधिक महसूस हो रही है कि हमारे गांव आत्मनिर्भर बनें।

लब्बोलुआब यह है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना की नाकामयाबी के लिए कई तथ्य जिम्मेदार हैं। अगर प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना को उसके सांसद इस तरह से मझधार में डाल सकते हैं तो अन्य योजनाओं का क्या हश्र होता होगा। उचित यह रहता कि भारतीय जनता पार्टी संगठन भी सांसदों की लापरवाही को गंभीरता से लेता। अभी भी समय है, अगर मोदी सरकार इस योजना में आने वाली अड़चानों और खामियों को दूर कर दे और बीजेपी आलाकमान चाह ले तो 2024 के लोकसभा चुनाव तक सांसद आदर्श ग्राम योजना के सहारे गांवों की तस्वीर बदलने में देर नहीं लगेगी।

रिपोर्ट-अजय कुमार

About Samar Saleel

Check Also

पीएम मोदी ने प्राकृतिक आपदाओं पर जताई चिंता, बोले- इस कॉन्फ्रेंस का फोकस वैश्विक दक्षिण पर

नई दिल्ली:  लोकसभा चुनाव के प्रचार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम में ...