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मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं..

भारत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ऐतिहासिकता के साथ-साथ तमाम विविधताओं को भी अपने-आप में समेटे हुए है। ‘मुस्कराइए, आप लखनऊ में हैं’। ये स्लोगन यूं ही नहीं बना। अदब और तहजीब के लिए दुनिया भर में मशहूर नवाबों की नगरी में मुस्कराने की कई वजहें हैं। अवध की आबो-हवा में नजाकत, नफासत और शराफत है। यहां के हाट-बाट और ठाठ निराले हैं। ‘पहले आप-पहले आप’ की लखनवी तहजीब मेहमाननवाजी का अनुपम उदाहरण है। हर गली का अपना लजीज व्यंजन चटखारे लेने पर मजबूर कर देता है। यहां की छोटी-छोटी गलियों में खो जाने का मन करता है।

मुगलकालीन इमारतें गौरवशाली स्थापत्य कला की याद दिलाती हैं। इक्के और तांगे आज भी पुराने लखनऊ की शान हैं। मुंह में पान की गिलौरी भरकर इक्के की सैर हवाई जहाज के सफर से भी ज्यादा रोमांचित करती है। बड़ा इमामबाड़ा , छोटा इमामबाड़ा, भूलभुलैया, घंटाघर, रेजीडेंसी, पिक्चर गैलरी, सतखंडा पैलेस, दादा मियां की दरगाह और जामा मस्जिद जैसी नवाबी दौर की तमाम इमारतें आज भी मुस्कराकर पर्यटकों का स्वागत कर रही हैं। ऐतिसाहिक इमारतों के अलावा चौक और अमीनाबाद की तमाम संकरी गलियां अपनी अलग कहानी कहती हैं। चूड़ी वाली गली से लेकर कंघे वाली गली, बताशे वाली गली, फूल वाली गली और बानवाली गली जैसी कई मशहूर गलियां हैं, जो अपने नाम और सामान से आज भी जानी जाती हैं। अमीनाबाद में गड़बड़झाला बाजार है। जहां एकबारिगी गुम हो जाने का अहसास होता है।

जायके का जवाब नहीं

लखनवी चिकनकारी और जायके का तो कोई जवाब ही नहीं। चौक की लस्सी, अमीनाबाद की कुल्फी, टुंडे का कबाब, शाही कोरमा, शीरमाल जैसे व्यंजनों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है। एक फिल्म का डायलाग *लखनऊ में चिकन खाया भी जाता है और पहना भी जाता है* यूँ ही नहीं मशहूर हुआ…। यहाँ की चिकनकारी देसी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है। आप लखनऊ आएं और चिकन के कपड़े न ले जाएं, यह हो ही नहीं सकता।

घुंघुरूओं की रुनझुन और कला साहित्य का संगम

पाकीजा फिल्म की नजाकत से आगे यदि देखें तो लखनऊ की सरजमीं ने नौशाद, मजरूह सुलतानपुरी, कैफी आजमी, जावेद अख्तर, अली रजा, भगवती चरण वर्मा, डॉ कुमुद नागर, डॉ अचला नागर (फिल्म निकाह, बागबान), वजाहत मिर्जा (मदर इंडिया व गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी व व्यंग्यकार केपी सक्सेना (‘लगान के लेखक) जैसे फनकार दिए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं और भाषाशैली के लोग आज भी कायल हैं। लखनऊ कथक नृत्य की भी जननी है। प्रसिद्ध कलाकर लच्छू महाराज, बिरजू महाराज, अच्छन महाराज और शंभू महाराज ने लखनऊ की शान बढ़ाई है। आज भी भातखंडे और पुराने लखनऊ में कथक के घुंघुरूओं की रुनझुन सुनी जा सकती है।

मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं..

दुनिया में मुस्कराहट का सबसे बड़ा प्रतीक है लखनऊ

पुरातन और आधुनिकतम लखनऊ में गजब की साम्यता है। गोमती रिवर फ्रंट की खूबसूरत शाम, अवध की शाम का नया नजारा पेश करती है। तो सुबह रूमी गेट से उगते सूरज को निहारना और अस्त होते सूरज के बीच हजरतगंज की गंजिंग ऐतिहासिकता का बोध कराती है। लखनऊ मेट्रो हो या फिर एशिया का सबसे बड़ा जनेश्वर मिश्र पार्क। आधुनिक सुविधाओं से लैस गोमतीनगर का इकॉना स्पोर्ट्स स्टेडियम हो या फिर ज्ञान-विज्ञान की सैर कराती एनबीआरआई, सीडीआरआई, सीमैप… ये सब के सब दुनिया की सबसे तेज विकसित होती सिटी का अहसास कराते हैं। नवाबी नगरी में पांच सितारा होटलों की लंबी श्रृंखला है। जहां ठहरना नवाबी अहसास तो दिलाता ही है, लक्जरी लाइफ की सुख-सुविधाएं भी मुहैया करवाता है। इसी तरह की तमाम और वजहें हैं जिनकी वजह से बरबस मुंह से निकल ही पड़ता है कि *मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं।*

लखनऊ हम पर फिदा है, हम फिदा-ए-लखनऊ

लखनऊ हम पर फिदा है, हम फिदा-ए-लखनऊ। आसमां में वो ताव कहां, जो हमसे छुड़ाए लखनऊ। इस मशहूर शेर के तीन दावेदार बताए जाते हैं। पहले नवाब वाजिद अली शाह। दूसरे शायर नासिख और तीसरे नौबत राय ‘नज़र’। ये शेर किसी का भी हो, मगर आज इसके सही मायने की समझ उस यूथ ब्रिगेड को है, जो शहर का चेहरा चमकाने निकली है। हफ्ते के छह दिन पढ़ाई और काम में मसरूफ रहने के बावजूद ये संडे को आराम नहीं करते, बल्कि सुबह-सुबह उन गलियों में सफाई करने पहुंच जाते हैं, जो लखनऊ की पहचान हैं। कहीं दीवारों से पोस्टर खुरचते मिलेंगे तो कहीं सफाई करते। सफाई के साथ इनका एक और मकसद है कि दूसरे लोग भी इस मुहिम से जुड़ें और लखनऊ पर फिदा हो जाएं…

मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं..

शहर की शक्ल पर लगे दाग धुलने निकली इस यूथ ब्रिगेड को तैयार करने का श्रेय लखनऊ सोसायटी का है। दरअसल, ये सभी सोसायटी की मुहिम ‘क्योंकि शहर है आपका’ के वॉलेंन्टियर्स हैं। मुहिम का मकसद है कि लोग लखनऊ की फिक्र करें और उसे साफ-सुथरा बनाए रखें। इसकी शुरुआत पिछले दिनों ही हुई है। गोमती नगर में मिठाई वाले चौराहे के पास जुटी यूथ ब्रिगेड ने पुल के खंभों पर चिपके पोस्टर हटाए और इनका रंग-रोगन किया। इनकी मेहनत का असर साफ नजर आया। पुल का एक हिस्सा चमकने लगा और यहां से गुजरने वालों को भी सीख मिली।

आधुनिक लखनऊ में डॉ अंबेडकर को समर्पित स्मृति स्थल

आधुनिक लखनऊ की बात करें तो डा भीम राव आम्बेडकर को याद करना लाज़मी होगा। लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री बहन मायावती ने अम्बेडकर साहब की स्मृतियों को संजोने का अभूतपूर्व काम किया है। आइये समझते हैं आधुनिक लखनऊ में डॉ अंबेडकर को समर्पित स्मृतिस्थलों को…। लखनऊ में पयर्टकों के लिए प्रमुख आकर्षण, गोमती नगर में 107 एकड़ भूमि पर फैला हुआ, डॉ बीआर अंबेडकर की स्मृति को समर्पित है। जैसे ही कोई व्यक्ति गोमती नदी पर बने प्रवेश द्वार से गुजरता है, यह वास्तुशिल्प वैभव खूबसूरती से सामने आता है। इस विशाल परिसर के मध्य में, डॉ अम्बेडकर की 18 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा के साथ एक स्तूप जैसा 112 फीट ऊंचा स्मारक खड़ा है।

आज सावन का पहला दिन: बाबा का अद्भुत श्रृंगार, गर्भगृह में झांकी दर्शन, चारों द्वार से प्रवेश, जानें व्यवस्था

विभिन्न इमारतें जैसे डॉ भीमराव अंबेडकर स्मारक, सामाजिक परिवर्तन संग्रहालय, सामाजिक परिवर्तन गैलरी, प्रतिबिंब स्थल, दृश्य स्थल, गौतम बुद्ध स्थल, सामाजिक परिवर्तन स्तंभ, विशाल प्रांगण, स्मारकीय हाथी गैलरी, कांस्य फव्वारे, अशोक स्तंभ और कलश, प्रवेश द्वार इस भव्य स्मारक के भीतर भी देखा जा सकता है, स्मारक के चारों ओर 20 फीट चौड़ी नहर के साथ इसके हरे-भरे बगीचे और गलियाँ और शांत वातावरण आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह स्मारक रात में भी जीवंत हो जाता है जब विशाल परिसर सुंदर रोशनी से जगमगाता है। यह मनमोहक दृश्य लखनऊ आने वाले प्रत्येक आगंतुक को अवश्य देखना चाहिए। यहाँ पार्किंग सुविधा, कैफेटेरिया और सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध हैं। डॉ. बीआर अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के सामने स्थित रेस्तरां में स्वादिष्ट स्नैक्स का भी आनंद लिया जा सकता है।

डॉ भीमराव अम्बेडकर गोमती बुद्ध विहार

डॉ भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के निकट, 7.5 एकड़ क्षेत्र में 30 मीटर चौड़े और लगभग 700 मीटर लंबे गोमती रिवर फ्रंट को डॉ. भीमराव अंबेडकर गोमती बुद्ध विहार के रूप में विकसित किया गया है। यहां स्थापित तथागत गौतम बुद्ध की 18 फीट ऊंची चतुर्मुखी संगमरमर की मूर्ति देखने लायक है।गोमती नदी के दोनों किनारों पर तटबंधों का सौंदर्यीकरण किया गया है और स्ट्रीट फर्नीचर के साथ अच्छी तरह से रोशनी वाले सैरगाहों का भी निर्माण किया गया है।

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समता मूलक चौक

समता मुलक चौक (क्रॉसिंग), जो सामाजिक परिवर्तन प्रतीक शटल से ज्यादा दूर नहीं है, एक आधुनिक आकर्षक शैली में बनाया गया है। यातायात को नियंत्रित करने के लिए नव निर्मित 8-लेन गोमती पुल, गोमती-बैराज और अन्य सड़कों के जंक्शन पर। छत्रपति शाहूजी महाराज, संत नारायण गुरु और महात्मा ज्योतिबा राव फुले की भव्य काले पत्थर की मूर्तियाँ और विशेष रूप से बनाई गई भू-दृश्यावली के साथ हरियाली यहाँ के विशेष आकर्षण हैं। यहाँ से दो किमी दूर लाल बहादुर शास्त्री एनेक्सी भवन के पास बहुजन समाज प्रेरणा केंद्र है।

डॉ भीमराव अम्बेडकर गोमती विहार

गोमती नदी के इस दक्षिणी तटबंध पर डॉ भीमराव अम्बेडकर परिवर्तन स्थल के निकट लगभग 90 एकड़ क्षेत्र में गोमती विहार विकसित किया गया है। टहलने और पिकनिक के लिए आदर्श विहार में चार निकटवर्ती विशाल पार्क हैं।

डॉ अम्बेडकर गोमती पार्क

22 एकड़ भूमि में विकसित यह खूबसूरत पार्क, जिसमें विशाल गतिशील फव्वारा लगा हुआ है, लोगों के आकर्षण का केंद्र है।

मान्यवर कांशीराम स्मारक

वीआईपी रोड पर एक और भव्य स्मारक मान्यवर कांशीराम स्मारक 86 एकड़ क्षेत्र में बनाया गया है। इसका विशाल गुंबद (125 फीट व्यास वाला) अपनी तरह का सबसे बड़ा गुंबद है। 177 फीट की ऊंचाई पर, यह स्मारक संगमरमर से सुसज्जित लखनऊ के क्षितिज कक्ष, कांस्य मूर्तियों, कांस्य भित्तिचित्रों, दीर्घाओं, विशाल हाथी की मूर्तियों, कांस्य फव्वारे, ग्रेनाइट स्तंभों, स्मारक शिलालेखों, व्यापक उद्यानों, 52 फीट ऊंचे कांस्य फव्वारों आदि पर हावी है। यहां का प्रमुख आकर्षण हैं।

बौद्ध विहार शांति उपवन

वीआईपी रोड पर चारबाग रेलवे स्टेशन से 5 किमी दूर, बौद्ध विहार शांति उपवन शहर का एक और नया आकर्षण है। लगभग 32.5 एकड़ क्षेत्र में फैला यह स्थल वास्तुकला और समरूपता की एक दुर्लभ तस्वीर प्रस्तुत करता है, इसकी शानदार इमारत ऊंचे स्तंभों के साथ रेत-पत्थर से बनी है। ध्यान कक्ष, पुस्तकालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, चतुर्मुखी मूर्तियां भिक्षु निवास, रेस्तरां पार्किंग और हरे-भरे बगीचे यहां के कुछ प्रमुख आकर्षण हैं।

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मान्यवर कांशीराम हरित (इको) उद्यान

मान्यावर कांशीराम स्मारक के निकट नया एमएसकेजेजीईजी है, 112 एकड़ का हरा-भरा उद्यान बड़े पैमाने पर शहरीकरण के कारण पर्यावरणीय गिरावट को दूर करने के लिए जैव-विविधता की अवधारणा और प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से लोगों को समर्पित है।

स्मृति उपवन

बौद्ध विहार शांति उपवन के निकट ऐतिहासिक बिजली पासी किला के सामने बिजनौर रोड पर स्थित स्मृति उपवन है। 11 एकड़ क्षेत्र में फैले उपवन की संरचना ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर से बनी है। रास्ता, हरियाली और वॉच टावर इस स्थल को एक अलग लुक देते हैं। उपवन के बगल में 70 एकड़ में फैला एक बड़ा पार्क है, जहाँ वार्षिक लखनऊ महोत्सव और अन्य कार्यक्रम आयोजित होते हैं। (साभार-पर्यटन विभाग उत्तर प्रदेश सरकार)

लखनऊ की बात और सनातन संस्कृति

अपने लखनऊ की बात करें और सनातन संस्कृति को छोड़ दें तो कुछ बात बनती नहीं है। बताया जाता है कि लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।अत: इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या भी मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है। लखनऊ का नाम कैसे पड़ा इस पर मतभेद है। मुस्लिम इतिहासकारों के मतानुसार बिजनौर के शेख यहां आये और 1526 ईसवी मे‌ बसे और रहने‌ के लिए उस समय के वास्तुविद लखना पासी की देखरेख में एक किला बनवाया ‌‌‌‌जो लखना किला के‌ नाम से जाना‌ गया। समय‌ के‌ साथ धीरे-धीरे लखना किला लखनऊ में परिवर्तित होता गया। प्राचीन हिन्दू साहित्य के अनुसार यहां भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण का‌ जन्म हुआ‌ था जो‌ लाखनपुर से बदलते बदलते लखनऊ हो गया जो अधिक सत्य प्रतीत होता है क्यों कि‌ आज तक किसी‌ वास्तुविद के नाम पर किसी नगर का नाम नहीं रखा गया।

मीडिया रिपोर्ट्स की यदि मानें तो लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1775 ई. में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे सिद्ध हुए। इन नवाबों के काहिल स्वभाव के परिणामस्वरूप आगे चलकर लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध को बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।सन1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश की अधीनता स्वीकार कर ली। कहा जाता है कि लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ।

सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूनाइटेड प्रोविन्स या यूपी कहा गया। सन 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद 12 जनवरी सन 1950 में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस तरह यह अपने पूर्व लघुनाम यूपी से जुड़ा रहा। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री बने।अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री बनीं।

शहर और आस-पास

पुराने लखनऊ में चौक का बाजार प्रमुख है। यह चिकन के कारीगरों और बाजारों के लिए प्रसिद्ध है। यह इलाका अपने चिकन के दुकानों व मिठाइयों की दुकानों की वजह से मशहूर है। चौक में नक्खास बाजार भी है। यहां का अमीनाबाद दिल्ली के चाँदनी चौक की तरह का बाज़ार है जो शहर के बीचोबीच स्थित है। यहां थोक का सामान, महिलाओं के श्रंगार का सामान, वस्त्राभूषण आदि का बड़ा एवं पुराना बाज़ार है।

शामे अवध और सुबहे बनारस की लोकोक्ति की अगर बात करें तो दिल्ली के ही कनॉट प्लेस की भांति *लखनऊ का हृदय हज़रतगंज* है। यहां शाम को खूब चहल-पहल रहती है। प्रदेश का विधान सभा भवन भी यहीं स्थित है। इसके अलावा हज़रतगंज में जी पी ओ, कैथेड्रल चर्च, चिड़ियाघर, उत्तर और पूर्वोत्तर रेलवे का मंडलीय रेलवे कार्यालय (डीआरएम ऑफिस), लाल बाग, पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय (पीएमजी), परिवर्तन चौक, बेगम हज़रत महल पार्क भी काफी प्रमुख़ स्थल हैं। इनके अलावा निशातगंज, डालीगंज, सदर बाजार, बंगला बाजार, नरही, कैसरबाग भी यहां के बड़े बाजारों में आते हैं। अमीनाबाद लखनऊ का एक ऐसा स्थान है जो पुस्तकों के लिए भी मशहूर है।

मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं..

यहां के आवासीय इलाकों में सिस्-गोमती क्षेत्र में राजाजीपुरम, कृष्णानगर, आलमबाग, दिलकुशा, आरडीएसओ कालोनी, चारबाग, ऐशबाग, हुसैनगंज, लालबाग, राजेंद्रनगर, मालवीय नगर, सरोजिनीनगर, हैदरगंज, ठाकुरगंज एवं सआदतगंज आदि क्षेत्र हैं। ट्रांस-गोमती क्षेत्र में गोमतीनगर, इंदिरानगर, महानगर, अलीगंज, डालीगंज, नीलमथा कैन्ट, विकासनगर, खुर्रमनगर, जानकीपुरम, एवं वृंदावन कालोनी साउथ-सिटी (रायबरेली रोड पर) आवासीय क्षेत्र हैं।

लक्ष्मण टीला मस्जिद

लक्ष्मण टीला मस्जिद लखनऊ में एक टीले पर बनी एक बड़ी मस्जिद है। यह सफ़ेद रंग में पुती हुई है एवं टीले पर बनी होने के कारण दूर-दूर से दिखाई देती है। कहा जाता है कि पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास ही बसा हुआ था। अब ‘लक्ष्मण टीला’ का नाम पूरी तरह से मिटा दिया गया है। यह स्थान अब ‘टीले वाली मस्जिद’ के नाम से जाना जा रहा है। लखनऊ के पूर्व भाजपा सांसद लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में दावा किया है कि लखनऊ की संस्कृति के साथ यह जबरदस्ती हुई है।

अब उठने लगी लखनऊ के नाम परिवर्तन की मांग

भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता ने लखनऊ का नाम बदलकर ‘लखनपुर’ या ‘लक्ष्मणपुरी’ करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। मई 2022 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए लखनऊ को लक्ष्मण की नगरी बताने वाले योगी आदित्यनाथ के ट्वीट ने काफी तूल पकड़ा था। योगी ने तब ट्वीट किया था, “शेषावतार भगवान श्री लक्ष्मणजी की पावन नगरी लखनऊ में आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन।”

मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं..

बीजेपी सांसद ने अपने पत्र में कहा है, ”प्राचीन मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने लखनऊ को लक्ष्मण जी को उपहार में दिया था और तब से इसका नाम उनके नाम पर ‘लखनपुर’ या ‘लक्ष्मणपुर’ रखा गया था, लेकिन 18 वीं शताब्दी में तत्कालीन नवाब आसफ-उद- दौला ने इसका नाम बदलकर लखनऊ रख दिया और तभी से इसे जाना जाता है। अब जब देश अमृत काल में प्रवेश कर चुका है, तो गुलामी के इस प्रतीक को खत्म करने की जरूरत है।’ इस बीच, भगवान श्रीराम के छोटे भाई श्रीलक्ष्मण की एक बड़ी, कांस्य प्रतिमा चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर रखी गई, हालांकि इसका औपचारिक अनावरण होना अभी बाकी है।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी फेम मूर्तिकार राम सुतार द्वारा डिजाइन की गई कांस्य प्रतिमा को पार्क के ठीक बाहर एक चौराहे पर स्थापित किया गया है। यह स्थापना 10 से 12 फरवरी 2023 तक लखनऊ में होने वाले वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन और 13 से 15 फरवरी तक होने वाले जी 20 शिखर सम्मेलन की बैठक से कुछ दिन पहले हुई है।

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेश की इन 5 जगहों पर भी है लखनऊ

उत्तर प्रदेश के लखनऊ की तरह ही विदेश में भी लखनऊ नाम के शहर हैं। विदेशों में स्थित लखनऊ नाम की जगहों के बारे में जानिए। कुछ अपने अपने देश में काफी प्रसिद्ध हैं तो कुछ लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। आइये जानते हैं कि भारत के अलावा किन किन देशों में लखनऊ स्थित है।

वेस्ट वर्जीनिया के हैम्पशायर का लखनऊ

वेस्ट वर्जीनिया में लखनऊ नाम की हवेली है, जिसे “कासल इन द क्लाउड” के नाम से जाना जाता है। यह माउंटेन टॉप स्टेट में 5500 एकड़ जमीन पर फैला है, जिसमें 16 कमरे हैं। इस जगह को कैसल प्रिजर्वेशन सोसायटी द्वारा मौसम के अनुसार पर्यटकों के लिए खुलता है।

अमेरिका के पेंसिल्वेनिया का लखनऊ

अमेरिका में तीन लखनऊ नाम की जगहें हैं, जिसमें से एक “हैरिसबर्ग-कार्लिस्ले” क्षेत्र में स्थित है। यह छोटा सा क्षेत्र स्थानीय नगर निगम द्वारा शासित नहीं है, बल्कि बड़े प्रशासनिक प्रभागों के हिस्से के रूप में प्रशासित किया जाता है। इस जगह का नाम भारत के लखनऊ शहर के नाम पर ही रखा गया था।

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स का लखनऊ

ऑस्ट्रेलिया में दो लखनऊ नाम की जगहें हैं। उनमें से एक ऑस्ट्रेलिया के मध्य पश्चिम क्षेत्र न्यू साउथ वेल्स में स्थित है। यह लखनऊ गांव मिशेल हाईवे पर है और वर्ष 2016 में यहां की आबादी लगभग 297 बताई गई थी।

ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में लखनऊ

ऑस्ट्रेलिया का दूसरा लखनऊ विक्टोरिया में पूर्वी गिप्स्लैंड क्षेत्र में स्थित है। मिशेल नदी पर बैरन्सडेल के क्षेत्रीय केंद्र के पास लखनऊ स्थित है।

कनाडा में ओंटारियो का लखनऊ

कनाडा के ओंटारियो में एक इलाका है, जिसका नाम “लखनऊ ब्रूस काउंटी” है। इस जगह की जनसंख्या वर्ष 2016 के अनुसार 1,121 है। कई प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी जैसे पॉल हेंडरसन, डेव फरिश, बॉबी रेमंड, आदि इसी लखनऊ से निकले हैं।

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