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आंत की टीबी से पीड़ित रहीं टीबी चैम्पियन सुशीला की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी- “जानकारी होती पूरी तो पति-बच्चों से न बनाती दूरी”

लखनऊ। तेज पेट दर्द, गैस और लगातार बुखार से तपती शरीर से परेशान राजधानी के डालीगंज निवासी सुशीला देवी ने कई प्राइवेट डाक्टरों से सम्पर्क किया। अल्ट्रासाउंड भी कराया लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आई। इसी दौरान एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने सारे लक्षणों को देखकर टीबी की जांच कराई। सुशीला कहती हैं- रिपोर्ट में आंत की टीबी की पुष्टि की बात सुनकर तो सहसा मानो आँखों के सामने अँधेरा छा गया। सही जानकारी के अभाव में सबसे बड़ी चिंता यही सता रही थी कि किस तरह से पति और दोनों छोटे बच्चों को इस बीमारी के संक्रमण से सुरक्षित बनाएं।

आंत की टीबी से पीड़ित रहीं टीबी चैम्पियन सुशीला की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी- “जानकारी होती पूरी तो पति-बच्चों से न बनाती दूरी”

वर्तमान में टीबी चैम्पियन के रूप में टीबी मरीजों की सच्ची हमदर्द बनकर उनको जल्द से जल्द बीमारी से उबारने में जुटीं सुशीला कोरोना संक्रमण के दौरान अप्रैल 2020 में टीबी की गिरफ्त में आईं थीं । उस वक्त उनको यह तक नहीं पता था कि केवल फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है, अन्य टीबी से संक्रमण फैलने का खतरा नहीं रहता। वह कहती हैं -संकोचवश चिकित्सक और परिवार वालों से भी खुलकर बात नहीं कर सकी और तय किया कि जब तक टीबी की लड़ाई जीत नहीं लूंगी तब तक पति और छह वर्षीय पुत्र और 13 वर्षीया पुत्री से दूर रहूंगी। यही सोचकर बच्चों को ससुराल में छोड़कर मायके आ गयी।

सुशीला ने आगे कहा कि चिकित्सक के बताये अनुसार नियमित रूप से दवा का सेवन किया। खानपान का भी पूरा ख्याल रखा, चना, मूंगफली, सोयाबीन, फल और दूध का नियमित सेवन किया। इसका नतीजा रहा कि एक महीने के अन्दर पेट का दर्द दूर हो गया और छह माह में ही इस जंग को पूरी तरह जीत ली। दोबारा जांच करायी तो टीबी से मुक्त पाई गयी।

उसी समय यह ठान लिया कि अब लोगों को टीबी के बारे में सही जानकारी मुहैया कराना उनके जीवन का सबसे बड़ा ध्येय रहेगा। इस समय टीबी चैम्पियन के रूप में 110 टीबी मरीजों की नियमित देखभाल कर रहीं सुशीला बताती हैं कि आज भी लोगों में टीबी को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। जाँच रिपोर्ट में टीबी की पुष्टि की बात सामने आते ही सबसे बड़ा डर यही लगता है कि लोग क्या कहेंगे और कैसा व्यवहार करेंगे। इसी तनाव के चलते न तो किसी से बात करने का मन करता है और न ही किसी से मिलने-जुलने का। इसका असर खुद के व्यवहार पर पड़ता है और कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है।

आज भी जब टीबी मरीजों से मिलती हूँ तो कई मरीज यही कहते हैं- किसी को यह बात न बताइयेगा । उनको डर रहता है कि कहीं मोहल्ले वाले दूरी न बना लें, ससुराल वाले घर से न निकाल दें, लड़कियां यह सोचती हैं कि कहीं शादी-ब्याह में दिक्कत न आये। ऐसे में लोगों से यही कहना चाहूंगी कि टीबी का इलाज पूरी तरह संभव है, इसलिए डरें नहीं बल्कि सही से इलाज कराएँ और खानपान का पूरा ख्याल रखें। टीबी मरीजों को इलाज के दौरान पौष्टिक आहार के लिए निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रति माह सीधे बैंक खाते में भेजे जाते हैं।

बीमारी किसी को भी हो सकती है, इसलिए भेदभाव ठीक नहीं :केजीएमयू के मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफ़ेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि बीमारियाँ किसी के भी जीवन का हिस्सा बन सकती हैं। इसलिए किसी भी बीमार व्यक्ति से दूरी बनाना या भेदभाव करना कतई उचित नहीं है। जरूरत है तो पूरी सुरक्षा बरतते हुए उसको भावनात्मक सहयोग प्रदान करने की। डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि जब किसी में टीबी की पुष्टि होती है तो उसे लगता है कि लम्बे समय तक दवा चलेगी और लोग जान जायेंगे तो कैसा बर्ताव करेंगे।

इस कारण वह जल्दी बीमारी को स्वीकार नहीं करना चाहता। वह अपनी बात भी किसी से नहीं कह पाता, इस सभी का असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है और उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसलिए किसी भी बीमार की बात को धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए, उसे कदापि नजरंदाज न करें । जब वह खुलकर अपनी बात कह लेता है तो उसका मन हल्का हो जाता है और वह बीमारी से लड़ने के लिए मन को मजबूत बना लेता है।

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