दक्षिण भारत के प्रसिद्ध Sabarimala Temple सबरीमाला मंदिर में शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने 800 साल पुरानी परंपरा को खत्म करते हुए पचास वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी है। अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को पुरुषों से कमतर नहीं आंका जा सकता। एक तरफ उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है और दूसरी तरफ उन पर प्रतिबंध हैं। भगवान से रिश्ते को बायोलॉजिकल या सायकोलॉजिकल कारणों से परिभाषित नहीं किया जा सकता।
CJI : Sabarimala Temple की परंपरा असंवैधानिक
सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि धर्म, गरिमा और पहचान को एक बताते हुए यह फैसला सुनाया।सुप्रीम कोर्ट में यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है जिसमें जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है।
सीजेआइ ने भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए आज कहा कि, “सबरीमाला मंदिर की परंपरा संवैधानिक नहीं है। सबरीमाला की पंरपरा को धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता।’
धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए : जस्टिस मल्होत्रा
अपना फैसला सुनते हुए जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूजा से इंकार करना महिलाओं की गरिमा से इंकार करना है। वहीँ जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसले में अपना पक्ष सुनाते हुए कहा कि इस मुद्दे का असर दूर तक जाएगा। धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है, तो उसका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं। समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए और कोर्ट का काम प्रथाओं को रद करना नहीं है।
ट्रावणकोर देवस्वॉम बोर्ड (TDB) के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कोर्ट द्वारा सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दिए जाने पर कहा, “हम अन्य धार्मिक प्रमुखों से समर्थन हासिल करने के बाद पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।”