लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश प्रवक्ता Surendranath सुरेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, शिवसेना आदि अनेकों संगठनों के माध्यम से 24 और 25 नवम्बर को अयोध्या में दूसरे समुदाय को भयभीत करने का कार्यक्रम चलाया और वहां पर विश्व हिन्दू परिषद के लोगों द्वारा भाषण में यह कहना कि मुस्लिम पक्षकार अपना दावा छोड़ें अन्यथा कढ़ी और मथुरा में भी आन्दोलन चलाया जायेगा, स्पष्ट रूप से मुस्लिम समुदाय को डराने के साथ साथ संविधान को न मानने वाला प्रयोजन सिद्ध करता है।
Surendranath: अनर्गल बयानबाजी संविधान की अवहेलना
श्री त्रिवेदी ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय ने काफी लम्बी संवैधानिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह निर्णय दिया कि सम्पूर्ण परिसर रामजन्म भूमि, निरमोही अखाड़ा और बाबरी मस्जिद के पक्षकारों को दी जाती है। इस निर्णय के पश्चात् सर्व विदित है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गयी है कि यहां पर सुनवायी लम्बित है। ऐसी स्थिति में विश्व हिन्दू परिषद अथवा भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस प्रकार की अनर्गल बयानबाजी संविधान की अवहेलना एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना हैं।
राममंन्दिर की स्थापना में किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय का कोई भी व्यक्ति विरोध नहीं करता है। जानबूझकर भारतीय जनता पार्टी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए राजनैतिक मुददा बनाये हुये है। लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रीय लोकदल ऐसी विचारधारा के लोगो का बहिष्कार करता है जो भाई भाई के अलगाव की बात करते हैं। अयोध्यावासी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने गंगा जमुनी तहजीब का परिचय देते हुये भाजपा एवं सहयोगी संगठनों के मंसूबों पर पानी फेर दिया और साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखा।
संकीर्ण मानसिकता लोकतंत्र के लिए खतरा
रालोद प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि उच्चस्तर तक के पढ़े-लिखे उपरोक्त संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा इस प्रकार की संकीर्ण मानसिकता रखना लोकतंत्र की मान्यताओं के लिए खतरा साबित हो सकती है। अतः सक्षम एवं उच्च पदासीन पदाधिकारियों को ऐसी बयानबाजी करने वालों पर रोक लगाने की आवष्यकता है ताकि हमारी गंगा जमुनी तहजीब को किसी प्रकार का धक्का न लगे और धर्म निरपेक्ष देश में सभी धर्मो का बराबर से सम्मान होता रहे। राष्ट्रीय लोकदल मांग करता है कि ऐसी कलुषित विचारधारा वाले व्यक्तियों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम किया जाय और यदि प्रदेश का प्रशासन इसका संज्ञान नहीं लेता है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय को इसका संज्ञान लेकर नियमानुसार कार्यवाही करनी चाहिए।