मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती तुम एक खुली किताब से रहते हो, फिर भी मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती! कोशिश करती हूँ शब्दों में ढालने की, पर रचनाओं में तुम्हें गढ़ नहीं पाती!! तुम जितना पूछते हो, मैं उतना ही बताती हूँ। चाहकर भी तुमसे, कुछ और कह नहीं पाती ...
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