Breaking News

मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती

मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती

तुम एक खुली किताब से रहते हो,
फिर भी मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती!
कोशिश करती हूँ शब्दों में ढालने की,
पर रचनाओं में तुम्हें गढ़ नहीं पाती!!

तुम जितना पूछते हो,
मैं उतना ही बताती हूँ।
चाहकर भी तुमसे,
कुछ और कह नहीं पाती हूँ।
जितना खुलना चाहिए,
उतना खुल नहीं पाती हूँ।
पता नही क्या अनजाना डर है,
जिससे आगे बढ़ नहीं पाती!

तुम एक खुली किताब से रहते हो,
फिर भी मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती!
कोशिश करती हूँ शब्दों में ढालने की,
पर रचनाओं में तुम्हें गढ़ नहीं पाती!!

तुम्हारी नशीली आँखों का,
एक जाम बनना चाहती हूँ।
तेरी जिंदगी के हर दिन की,
सुबह-शाम बनना चाहती हूँ।
जो सबसे खास हो तेरे,
वो इंसान बनना चाहती हूँ।
समझाती हूँ की कह दूँ तुम्हें,
पर खुद से ही लड़ नहीं पाती!
तुम एक खुली किताब से रहते हो,
फिर भी मैं तुम्हें पढ़ नहीं पाती!
कोशिश करती हूँ शब्दों में ढालने की,
पर रचनाओं में तुम्हें गढ़ नहीं पाती!!

               सोनल ओमर (कानपुर)

About Samar Saleel

Check Also

बंधन

बंधन वन से आते समय नही था मन में यह विचार। इंसानो की बस्ती में ...