मुस्लिम अलगाववाद के नायाब शिल्पी सर सैय्यद अहमद खान का जन्मोत्सव भारत में मनाया जा रहा है। कड़ुए ऐतिहासिक यथार्थ को भुलाकर। दोआबा की तहजीबी संगमी-परंपरा को नजरंदाज कर। भारतीय मुसलमानों की अलग कौमियत को उभारकर उन्होंने वतन को विभाजित कराने की नींव डाली थी। असल में दिल्ली के जामिया ...
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मजहब के नाम पर पसमांदा मुसलमानों का शोषण बंद हो!
भारत के अस्सी प्रतिशत मुसलमानों को अब कार्ल मार्क्स वाला वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त बड़ा नीक लग रहा होगा। डेढ़ सदियों से वे सब अमीर-कुलीन मुसलमानों द्वारा शोषण के शिकार होते रहे हैं। बैरिस्टर मुहम्मद अली जिन्ना ने उनकी पिछली पीढ़ी को ठगा था। ऑल-इंडिया मुस्लिम लीग के नाम पर। ...
Read More »फिर न आए कभी वैसी भयावह सुबह 26 जून 1975 वाली!
आज ही की वह स्याह सुबह थी, एक दम असगुनी। बृहस्पतिवार, 26 जून 1975, माह श्रावण की तृतीया। पखवाड़ा था कालिमाभरा कृष्णपक्ष वाला। बीती रात भी बिना चांदनी के ही थी। बड़ी गमगीन। उसके चंद घंटे पूर्व 70 साल के अलसाते बुड्ढे मियां फखरुद्दीन अली अहमद ने पाया कि प्रधानमंत्री ...
Read More »फर्जी इतिहास पढ़ाना देशद्रोह
हायतोबा बड़ा मच गया फिर, जब हाल ही में सुर्खियों में खबर आई कि इतिहास की पुस्तकों में से मुगल काल हटा दिया गया है। यह वाजिब है क्योंकि अंग्रेजी राज में ही इतिहास लेखन की पीठिका गठी गयी थी जिसका ध्येय था कि इस्लामी कालखंड को सकारात्मक नजर से ...
Read More »हरीश चंदोला: पत्रकार जिसने रचा इतिहास
जब 94-वर्षीय पत्रकार हरीश चंदोला का उनके नई दिल्ली-स्थित जोरबाग आवास में निधन (रविवार, 26 मार्च 2023) हुआ तो मैंने सोचा था कि संपादकीय श्रद्धांजलियां पेश होंगी। मगर निधन की खबर तक नहीं छपी कहीं भी। एक लाइन भी नहीं। जबकि भारत के चार शीर्षतम अंग्रेजी दैनिकों में वर्षों तक ...
Read More »जजों की नियुक्ति? अपनों के द्वारा होना बेढंगा है!
एक वैधानिक संयोग हुआ। बड़ा विलक्षण भी ! दिल्ली में कल (शुक्रवार, 25 नवंबर 2022) भारतीय संविधान की 73वीं सालगिरह की पूर्व संध्या पर शीर्ष न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में खुला वैचारिक घर्षण दिखा। दो विभिन्न मंचों पर, विषय मगर एक ही था, “जजों की नियुक्ति-प्रक्रिया।” वर्तमान तथा भारत के पूर्व ...
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