आज चतुरी चाचा ने अपने मड़हा में प्रपंच के लिए दो तख्त और कुछ कुर्सियां डलवाई थीं। क्योंकि, भोर से ही सावन की रिमझिम हो रही थी। ऐसे में खुले प्रपंच चबूतरे पर पंचायत नहीं हो सकती थी। मैं जब वहां पहुंचा तब चतुरी चाचा, मुंशीजी व कासिम चचा राम मंदिर ...
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