लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार किसानों और श्रमिकों को गुमराह करने के लिए घोषणाओं पर घोषणाएं कर रही है लेकिन उनका क्रियान्वयन कहीं होता नहीं दिखाई देता है। प्रधानमंत्री जी के एक भाषण सेे दूसरे भाषण तक उनकी सभी जिम्मेदारियां खत्म हो जाती है। उनकी आत्मनिर्भरता की बात में तो तनिक भी दम नहीं। यह उनके पांच साल पहले के तमाम वादों की कड़ी भर है। उनके मन की बात से तो यह लगता है कि हर कोई अब अपने जानमाल का खुद जिम्मेदार होगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री जी भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री जी ने उत्तर प्रदेश को बहुत कुछ दे दिया है किसान और मजदूर ढूंढ़ रहे है कहां है क्या दिया है? अपने पांवों पर खड़े होने में आर्थिक मदद देने के बजाय उसे और कर्जदार बनने के की साज़िश है।
भाजपा ने हाल में जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए हैं, वह सिर्फ छलावा है। जब क्रय केन्द्र नहीं है तो किसान अपनी उपज कहां बेचेगा? सरकारी नीतियों में विसंगतियों के चलते भी किसान परेशान है। मसलन मक्का और ऑयल सीड की खरीद ज्यादातर मुर्गी पालन उद्योग में होती है। जब पोल्ट्री उद्योग सरकार ने बंद किया तो मक्का खरीद भी बंद हो गई। किसान की बोई फसल बर्बाद हो गई। भाजपा सरकार के रहते किसानों को कोई आर्थिक लाभ होने वाला नहीं है। जब प्रदेश में ही मण्ड़ियों में उसकी फसल बिक नहीं पा रही है तो वह दूसरे प्रदेशों में बिना सरकारी मदद के कैसे जा पाएगा?
भाजपा ने किसानों के साथ दूसरा छल यह किया कि एक ओर समर्थन मूल्य बढ़ाने का नाटक किया तो दूसरी तरफ डीजल और गैस के दाम बढ़ा दिए। रासायनिक खाद, कीटनाशक, बिजली, सिंचाई और बीज के सम्बंध में किसान को कोई रियायत नहीं मिली। भाजपा सरकार में फल-फूल, सब्जी, दूध का काम करने वाले किसान मुश्किलों में फंस गए हैं। किसान से कहा जा रहा है कि वह बैंको से ज्यादा कर्ज ले, किसान को आत्महत्या की ओर प्रेरित करने का यह भाजपाई तरीका है। असल में भाजपा का खेती-किसान से कुछ लेना देना नहीं है। उसकी मानसिकता गरीब विरोधी, किसान विरोधी है।
प्रदेश में किसानों की जिंदगी बदहाल होती जा रही है। गन्ना किसानों का लगभग 20 हजार करोड़ रूपया मिलों पर बकाया है। गन्ना बकाये पर कानूनन 14 दिन बाद भुगतान न होने की स्थिति में किसानों को ब्याज की राशि भी मिलनी चाहिए, इस पर सभी मौन साधे हैं। मुख्यमंत्री जी की मिल मालिकों पर सख्त कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है क्योंकि पूंजीघराने ही तो भाजपा के समर्थक हैं। उद्योगपतियों को तमाम छूट और राहत पैकेज देने वाली भाजपा क्रय केन्द्र हो या मिलों के तौल केन्द्र वहां किसानों का सिर्फ लाइन लगवाना जानती है। पिछले पांच माह में किसानों को बे-मौसम बरसात, ओलावृष्टि और आकाशीय बिजली गिरने से मुसीबतें उठानी पड़ी हैं, फसलों के नुकसान के साथ मकानों और पशुधन की भी क्षति हुई है। समाजवादी पार्टी ने किसानों के नुकसान की भरपाई करने और किसानों को 10-10 लाख रूपए मुआवजे में देने की मांग की थी। भाजपा सरकार इतनी संवेदनशून्य है कि उसने इधर कान ही नहीं दिए।
सरकार अपने प्रचार पर जो खर्च विज्ञापनों पर कर रही है वह अगर किसानों और मजदूरों को दे देती तो उनका कुछ तो भला होता। बुंदेलखण्ड और बृजक्षेत्र में सैकड़ों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। खेती को प्राइवेट हाथों में देने की भाजपा साजिश कर रही है, यह किसानों के साथ विश्वासघात है। समाजवादी सरकार में 100 एकड़ की मण्डी का आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के किनारे पर कन्नौज में व्यवस्था की थी। मलिहाबाद में आम की मण्डी बनी थी, भाजपा ने इन्हें बंद कर दिया। भाजपा-कांग्रेस की समान आर्थिक नीतियों के कारण किसानों का, गरीबों का भला नहीं हो सकता है।
प्रधानमंत्री जी जिस आत्मनिर्भरता की बात करते है उसकी सफलता बगैर किसानों के योगदान के सम्भव नहीं है। वह अन्नदाता है, भाजपा उसे भिखारी समझने की गलतफहमी न पाले। किसानों की मेहनत और उनकी उपज का लाभकारी मूल्य देना है तो भाजपा सरकार को भण्डारण, संरक्षण की उचित व्यवस्था करनी होगी ताकि अनाज, फल-सब्जी जल्दी खराब न हो। ब्याज पर कर्ज की व्यवस्था समाप्त हो। किसानों को बैंक के बजाय सीधे कार्य पूंजी देने का इंतजाम हो। क्रय केन्द्रों से गेहूं की खरीद हो। बिचैलियों की लूट खत्म की जाए। प्रदेश में सरकार द्वारा किसान कर्जदार हो गए हैं उनके तमाम तरह के कर्ज माफ किए जाए। सन् 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने के वादे का क्या होगा? अभी तक तो इसकी भनक तक नहीं लगी। भाजपा नेतृत्व को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसान ही खेतों में खून पसीना बहाकर हमारे लिए अन्न उपजाता है। वह उदासीन हुआ तो भुखमरी के हालात पैदा हो जाएंगे। भाजपा सरकार और उसकी गरीब, किसान विरोधी नीतियां ही इसके लिए जिम्मेदार होगी।