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गर्भाशय में भी होती है टीबी, मां बनने में डाल सकती है बाधा

• समय से उपचार व दवाओं के नियमित सेवन से ठीक हो जाती है यह बीमारी

वाराणसी। (केस-1) दौलतपुर की रहने वाली सोनी (परिवर्तित नाम) को विवाह के चार वर्ष बाद भी संतान सुख नहीं नहीं था। वह बीमार रहने लगी थी और वजन लगातार घटता जा रहा था। डेढ वर्ष पूर्व सोनी ने पं. दीनदयाल चिकित्सालय के एमसीएच विंग में उपचार शुरू कराया। जांच हुई तो पता चला कि उसे गर्भाशय की टीबी है। लगभग एक वर्ष तक नियमित दवा के सेवन, पौष्टिक आहार व परहेज का नतीजा रहा कि वह पूरी तरह ठीक हो गयी। अब वह मां भी बनने वाली है। उसे दो माह का गर्भ है।

गर्भाशय में टीबी

(केस-2) सुतबलपुर की सपना मौर्य (परिवर्तित नाम) के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी। छह वर्ष पूर्व उसने बेटी को जन्म दिया था लेकिन दोबारा गर्भवती नहीं हो पा रही थी। एमसीएच विंग में एक वर्ष पूर्व हुई जांच में उसे भी गर्भाशय की टीबी से पीड़ित पाया गया, जो उसके मां बनने में बाधक बना हुआ था। छह माह तक टीबी की दवा के नियमित सेवन से वह पूरी तरह ठीक हो गयी। अब वह भी मां बनने वाली है, उसे चार माह का गर्भ है।

गर्भाशय में टीबी

यह तो सिर्फ बानगी भर है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय में एमसीएच विंग की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ आरती दिव्या बताती हैं कि वैसे तो टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करती है। हालांकि कुछ मामलों में नाखून व बाल को छोड़कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है।

यदि कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है और वह गर्भवती नहीं हो पा रही है तो इसकी वजह जननांग की टीबी भी हो सकती है। दरअसल जब किसी महिला के जननांग में टीबी होती है तो टीबी का बैक्टीरिया उसके यूटरस की दीवारों और इसकी नलियों को खराब कर देता है। टीबी का बैक्टीरिया मुख्य रूप से फैलोपियन ट्यूब को बंद करता है।

गर्भाशय में टीबी

इससे पीरियड्स रेग्युलर नहीं आते हैं। कुछ मामलों में पीरियड्स पूरी तरह से रुक जाते हैं क्योंकि यूटरस की परत को यह गहराई तक प्रभावित कर देता है। समय पर इलाज नहीं होने से यह संक्रमण गंभीर रूप ले लेता है। फिर यह समस्या उसके गर्भधारण करने में भी बाधा बनती है। डॉ. आरती बताती हैं कि उनकी ओपीडी में हर माह तीन-चार महिलाएं ऐसी समस्या लेकर आती है। जांच कराने पर पता चलता है कि जननांग में हुई टीबी उनके मां बनने में रुकावट डाल रही है। वह बताती हैं कि छह माह से एक वर्ष तक नियमित दवा के सेवन से ऐसी महिलाएं पूरी तरह ठीक होकर मां बनने की स्थिति में आ जाती है लेकिन इसके लिए उनका सही समय से उचित उपचार जरूरी है।

गर्भाशय के टीबी के लक्षण- डॉ आरती के अनुसार प्रारंभिक चरण में गर्भाशय टीबी का कोई लक्षण नहीं दिखता है, लेकिन सात या आठ महीने के बाद इसके लक्षणों को देखा जा सकता है। गर्भाशय की टीबी से पीड़ित महिलाओं में योनि स्राव, पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द, अनियमित पीरियड्स, वजन का तेजी से कम होना जैसी समस्याएं होने लगती है।

गर्भाशय में टीबी

परीक्षण व उपचार- गर्भाशय की टीबी है या नहीं इसका पता लगाने के लिए ट्यूबरकुलीन स्किन टेस्ट के साथ ही ब्लड टेस्ट कराया जाता है। जरूरत के अनुसार यूटरस की बायोप्सी भी करायी जाती है, इसके अलावा जेनेटिक टेस्ट भी होता है, जिससे टीबी के इंफेक्शन का पता चलता है। ऐसे मरीजों को 6 महीने तक टीबी की दवा नियमित तौर पर खाना जरूरी होता है। फिर भी रोग के ठीक न होने पर टीबी की दवा 12 माह तक भी दी जाती है।

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समय से उपचार हो जाने पर गर्भाशय की टीबी ठीक हो जाती है और मरीज को गर्भधारण में भी समस्या नहीं आती। डा. आरती कहती हैं कि किसी महिला में गर्भाशय की टीबी के लक्षण यदि नजर आते हो तो उसे फौरन उपचार शुरू कराना चाहिए। सभी सरकारी अस्पतालों में इसके उपचार की व्यवस्था है, जहां टीबी रोगियों को दवाएं भी दी जाती हैं । इतना ही नहीं सरकार की ओर से निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान पोषण के लिए पांच सौ रुपये की धनराशि प्रतिमाह मरीज के खाते में सीधे भेजी जाती है।

रिपोर्ट-संजय गुप्ता

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