भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर देशवासियों को कभी न भूलने वाला गौरव का क्षण दिया है। इसके लिए नीरज चोपड़ा ने काफी मेहनत की थी और अब उनकी यह मेहनत, जहां उनके लिए ख्याति लाई है, साथ ही धन वर्षा भी लेकर आई है।
नीरज चोपड़ा की इस कामयाबी के लिए अब तक करीब 14 करोड़ रुपए के नगद इनाम की घोषणा की जा चुकी है।
बावजूद इसके भारत को वर्ल्ड कप जिताने वाला क्रिकेटर मजदूरी करने को मजबूर है। परिवार के पालन पोषण के लिए इन्हें 250 रुपए में ईंटें उठानी पड़ रही है। नेत्रहीन क्रिकेटर नरेश तुमदा साल 2018 में विश्व कप विजेता टीम की प्लेइंग इलेवन का हिस्सा थे। देश के लिए खेलना और फिर वर्ल्ड कप जीतना दोनों ही बड़ी बातें हैं। साल 2018 में फ़ाइनल में भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को हराकर ब्लाइंड वर्ल्ड कप अपने नाम किया था। तब अचानक भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम सुर्खियों में आ गई थी और उनके खिलाड़ियों की वाहवाही हुई थी।
लेकिन आज तीन साल बाद उसी टीम का एक खिलाड़ी अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करने को मजबूर है। गुजरात के नवसारी के नेत्रहीन क्रिकेटर नरेश तुमदा विश्व कप विजेता टीम की प्लेइंग इलेवन का हिस्सा थे। लेकिन नरेश तुमदा आज मजदूरों की तरह काम करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। नरेश का कहना है कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री से सरकारी नौकरी की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
नरेश का कहना है, कि वे प्रतिदिन 250 रुपये तक कमा लेते हैं । उन्होंने सरकार से अनुरोध किया था कि उन्हें कोई नौकरी दे दी जाए ताकि वे अपना जीवनयापन कर सकें।नरेश पर परिवार के पांच लोगों की जिम्मेदारी है। वह अपने घर में अकेले कमाने वाले हैं। उनका कहना है कि पहले वे सब्जी बेंचा करते थे, किन्तु सब्जी बेचकर जो पैसे आते हैं वह परिवार का खर्च चलाने के लिए काफी नहीं हैं। इस वजह से उन्होंने मजदूरी करने का फैसला किया। वह अब ईंटें उठाते हैं। 29 साल के नरेश को अपने बूढ़े माता-पिता की भी देखभाल करनी होती है और उन्हें कहीं से मदद नहीं मिल रही है।
इससे पहले पिछले बरस नरेश को सब्जी बेचते हुए देखा गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नरेश अहमदाबाद की जमालपुर सब्जी मंडी में छोटी सी दुकान चलाते देखे गए थे। उस समय मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था, जब भारत की सामान्य क्रिकेट टीम जीत हासिल करती है, तो उन पर चारों तरफ़ से पैसों और इनाम की बारिश होती है। हम क्या उनसे छोटे खिलाड़ी हैं? सरकार ने वर्ल्ड कप जीतने के बाद भी न तो नौकरी की पेशकश की, न कोई आर्थिक मदद हुई।
बता दें नरेश ने पांच साल की उम्र में खेलना शुरू किया था। उन्हें एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर माना जाता था। अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर साल 2014 में उन्होंने गुजरात की टीम में जगह बनाई। जल्द ही उन्हें राष्ट्रीय टीम में चुन लिया गया। लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर छाई अनिश्चिताओं के चलते वह अपना खर्च चलाने के लिए मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं।