इस साल 27 जून को शुरू हुई Amarnath यात्रा की शुरूआत से पूर्व ज्येष्ठ पूर्णिमा की सुबह जब श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पंडित पवित्र गुफा में शिवलिंग पर सुबह की आरती करने पहुंचे तो वहां अनोखा दृश्य देख सभी हैरान रह गए।
Amarnath धाम में अनोखा दृश्य
गुफा में स्थापित शिवलिंग पर कबूतर बैठे हुए थे पूजा करने पहुंचे पंडितों के अनुसार ऐसा दृश्य उन्होंने पहली बार देखा है। इससे पूर्व शिवलिंग पर बैठे कबूतर नहीं देखे गए थे। हांलाकि अकसर पवित्र गुफा के अंदर कबूतरों को उड़ते हुए भक्तों को दर्शन देते रहे हैं लेकिन ऐसा परिर्वतन इस साल पहली बार हुआ है।
शिव से पार्वती का प्रश्न
पुराणों में वर्णित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है। मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यों, और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है। तब भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा कि वे एकांत और गुप्त स्थान पर उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए ताकि कोई अन्य जीव उसे न सुन पाए। इसके पीछे कारण ये था कि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है, वह अमर हो जाता। पुराणों के मुताबिक, शिव ने पार्वती को इसी परम पावन अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की ये कथा सुनाई थी।
कबूतरों ने सुन ली कथा
गुफा में कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को तो नींद आ गई और वह सो गईं, जिसका शिवजी को पता नहीं चला। वे अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय वहां दो सफेद कबूतरों का जोड़ा मौजूद था, और वो ध्यान पूर्वक शिव जी से कथा सुन रहे थे। वे बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे, इस कारण शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया, तो देखा कि वे सो रही थीं।
शिव पार्वती का प्रतीक
इसके बाद जब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बढे। उनका क्रोध देख कर कबूतरों ने याचना की कि, हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगे। तब से यह कबूतर का जोड़ा अमर हो गया। कहते हैं आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होते हैं। इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।