हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान तिलक से होती है। मान्यता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा होता है। सनातन धर्म में आदि काल से माथे पर तिलक लगाने की प्रथा चली आ रही है, अक्सर तिलक को आमतौर पर किसी भी पूजा के बाद माथे पर लगाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार तिलक हमेशा दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक्र पर लगाया जाता है। चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना शुभ माना गया है। इसके अलावा तिलक हल्दी-कुमकुम का भी अच्छा माना जाता है। पुरुष को माथे पर चंदन और महिला को कुमकुम लगाना चाहिए। कहते हैं कि तिलक के बिना तीर्थ स्नान, जप कर्म, दान कर्म, यज्ञ, होमादि, पितर के लिए श्राद्ध कर्म और देवों की पूजा-अर्चना ये सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। कई लोग ऐसा सोचते हैं कि तिलक क्यों लगाया जाता है? किस अंगुली से तिलक लगाने के क्या लाभ बताए गए हैं। साथ ही इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण क्या हैं? आज हम इस बारे में जानते हैं
मान्यताओं के अनुसार सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर या भस्म का तिलक लगाया जाता है। तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक लगाने की केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि इसके कई वैज्ञानिक कारण भी हैं।
मान्यता के अनुसार तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं। तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं। तिलक किसी खास प्रयोजन के लिए भी लगाये जाते हैं जैसे यदि मोक्षप्राप्ती करनी हो तो तिलक अंगूठे से, शत्रु नाश करना हो तो तर्जनी से, धनप्राप्ति हेतु मध्यमा से तथा शान्ति प्राप्ति हेतु अनामिका से लगाया जाता हैं।