कन्नौज। इस्राइल -ईरान में छिड़ी आपसी जंग से इत्र निर्यात में काफी कमी आई है। कन्नौज शहर में जितना भी इत्र बनाया जाता है, उसका 55 फीसदी खाड़ी देशों में निर्यात होता है। दोनों देशों में चल रहे युद्ध से निर्यात की दर में काफी कमी आई है। इससे इत्र निर्माता और निर्यातक परेशान हैं। इत्र की खपत बढ़ाने के लिए वह अफ्रीकी और अमेरिकी महाद्वीप के देशों से संपर्क बढ़ा रहे हैं।
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शहर में इत्र के करीब 350 कारखाने हैं, जिनमें सैकड़ों प्रकार के इत्र बनाए जाते हैं। इनमें शमामा, अगर, ऊद, गुलाब, मोगरा और मुखल्लत का निर्यात खाड़ी देशों में अधिक मात्रा में होता है। इस्राइल और ईरान युद्ध के बाद खाड़ी देशों में इत्र की मांग कम हो गई है। इत्र कारोबारियों की मानें तो वहां के लोग ऑनलाइन व्यापार करते हैं।
वो हर माह अपनी डिमांड भेजकर खाते में धनराशि ट्रांसफर कर देते हैं। इसके बाद उन्हें डिमांड के अनुसार माल भेज दिया जाता है। हालांकि इस्राइल और ईरान से अधिक इत्र की मांग सऊदी अरब में रहती है। वहां के व्यापार में कोई फर्क नहीं पड़ा है, लेकिन इस्राइल और ईरान से व्यापार कम होने के बाद अफ्रीकी और अमेरिकी देशों से संपर्क किया जा रहा है।
कई उद्यमियों ने बना लिए शोरूम
शहर के कई इत्र उद्यमियों ने विदेशों में अपने शोरूम स्थापित किए हैं। सऊदी अरब के दुबई और अबूधाबी में कई शोरूम हैं, जो अन्य देशों में इत्र की सप्लाई प्रदान करते हैं। ओमान और कतर में भी यहां के लोगों ने अपने शोरूम स्थापित किए हैं। इस्राइल और ईरान में अपेक्षाकृत शोरूम नहीं हैं। कन्नौज से तैयार इत्र पहले सऊदी अरब भेजा जाता है और फिर वहां से इस्राइल, ईरान, फलस्तीन, लेबनॉन सहित अन्य देशों में भेजा जाता है। कन्नौज के कई इत्र कारोबारी तो विदेशों में ही बस गए हैं।
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खाड़ी देशों में शमामा की मांग अधिक
इत्र निर्माताओं की मानें तो खाड़ी देशों में शमामा की मांग अधिक है। यह इत्र भारतीय देशी जड़ी-बूटियों से तैयार किया जाता है। यह इत्र खुशबू के साथ – साथ औषधि के रूप में भी काम करता है। मुस्लिम देशों में शमामा और मुखल्लत दो इत्रों का प्रयोग अधिक किया जाता है। इस्राइल में ऊद की मांग अधिक है, जो एक विशेष प्रकार की लकड़ी से तैयार किया जाता है। भारत में यह लकड़ी उत्तर पूर्व के जंगलों में अधिक मिलती है।