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‘जय जगत’ के विचार से ही मानव जाति की वैश्विक समस्याओं का हो सकता है समाधान: विनोबा भावे

वर्ष भर में अनेक तिथियां वर्तमान बनकर आती हैं और भूतकाल बनकर चली जाती हैं, लेकिन कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं जो युगों-युगों के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती हैं। 11 सितम्बर, दुनिया के लिए एक ऐसी ही तारीख है। आज ही के दिन चार बड़ी घटनाएं हुईं थी। पहली घटना आज से 126 साल पहले वर्ष 1893 में हुई थी। जब अमेरिका के शिकागो में महान युग दृष्टा स्वामी विवेकानंद ने अपने समय के ऐतिहासिक विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मानवता से भरा युगानुकूल भाषण दिया था। भारतीय दर्शन तथा धर्म की सार्वभौमिक सोच ने सारे विश्व को सभी धर्मों की आत्मा अध्यात्म की उच्चतम अवस्था का ज्ञान कराया था। दूसरी घटना 11 सितम्बर 1895 को धरती को जय जगत का सन्देश देने वाले युग पुरूष संत विनोबा भावे का जन्म हुआ था। इस महापुरूष ने भूदान, डाकूओं के आत्मसमर्पण तथा जय जगत के विचारों द्वारा वैश्विक समास्याओं के अहिंसक तरीके से समाधान निकालने के जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किये थे। तीसरी घटना 11 सितम्बर 1906 में युग पुरूष महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने अहिंसा आंदोलन को ‘सत्याग्रह‘ का नाम दिया था। आगे चलकर दुनिया ने कहा कि हमने एक मोहन के चक्रधारी के विराट रूप में तथा दूसरे मोहन को चरखाधारी के रूप में दर्शन किये हैं। ‘सत्याग्रह‘ के इस सफल प्रयोग ने कुछ वर्षों पश्चात भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई थी। भारत की आजादी के बाद ‘सत्याग्रह‘ की इस आंधी में 54 देशों ने अंग्रेजी शासन को अपने-अपने देश से उखाड़ फेका।

सर्वधर्म समभाव के महत्व को आत्मसात-
ये भी एक दुखद विडंबना ही है कि इस आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों की याद में प्रतिवर्ष विश्व भर में शोक सभाओं के आयोजन किये जाते है। विश्ववासी अपने-अपने तरीके से मारे गए बेकसूर लोगों को श्रद्धांजलि भी देते हैं लेकिन 126 वर्ष पूर्व वर्ष 1893 के 11 सितम्बर को स्वामी विवेकानंद द्वारा वैश्विक मंच से मानव जाति को दी गई सहनशीलता तथा सर्वधर्म समभाव की सीख पर हमने अमल नहीं किया। सच तो ये है कि अगर दुनिया ने स्वामी विवेकानंद के सहनशीलता तथा सर्वधर्म समभाव के महत्व को आत्मसात किया होता तो 11 सितम्बर 2001 जैसा आतंकवादी हमला हुआ ही नहीं होता। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस बार 11 सितम्बर से महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती 2 अक्टूबर तक ‘स्वच्छता ही सेवा अभियान’ की शुरूआत होगी। देश के सवा करोड़ लोग विनोबा-125 तथा गांधी-150 जयन्ती पर स्वच्छ भारत की छबि निखारने के लिए अत्यधिक उत्साहित हैं।

त्याग तथा बलिदान की स्याही से लिखे-
भारत के तीन महान संन्यासियों ने धरती पर विश्व शान्ति के दूत के रूप में जन्म लेकर दुनिया को सहनशीलता, सत्याग्रह तथा जय जगत का यूनिवर्सल लेसन पढ़ाया था। हम कुछ ही वर्षों में त्याग तथा बलिदान की स्याही से लिखे गये उस यूनिवर्सल लेसन को भूल गये। इंसान की विश्व के महान धर्मों को अलग-अलग समझने की अज्ञानता के कारण धरती अनेक बार खून से लाल हो चुकी है। 20वीं सदी मानव सभ्यता के इतिहास में संकुचित राष्ट्रीयता के कारण सबसे बड़ी खूनी सदी रही है। इस सदी में दो विश्व युद्ध तथा दो देशों के बीच युद्ध लड़े गये। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हमें अपनी राष्ट्रीय तथा वैश्विक लोकतांत्रिक संस्थाओं को 21वीं सदी चुनौतियों के अनुकूल बनाना होगा। मानव जाति खुले दिल-दिमाग से इस सार्वभौमिक सच्चाई को स्वीकारना करना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है।

‘‘जो खुद पर काबू पा लेता है, वो दुनिया पर काबू पा सकता है’’

हनशीलता तथा सर्व-धर्म समभाव के विचार को गांधी जी-
आचार्य विनोवा भावे ने जय जगत का यूनिवर्सल स्लोगन मानव जाति को दिया था जिसका लक्ष्य भिन्न-भिन्न संस्कृतियों या क्षेत्रों से होते हुए भी एक मानवता के बंधन द्वारा सम्पूर्ण जगत को एक बनाना है तथा विश्व एकता की भावना का प्रसार करना है। विनोबा भावे सही मायने में महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। स्वामी विवेकानंद के सहनशीलता तथा सर्व-धर्म समभाव के विचार को गांधी जी तथा विनोबा जी ने आगे बढ़ाया। आचार्य विनोबा भावे ने यही संकल्प लिया था कि वे पूरे भारत का भ्रमण करेंगे, नगर-नगर, ग्राम-ग्राम जाएंगे तथा दान में भू-दान लेंगे ताकि जमीन का वितरण उन भूमिहीन किसानों में किया जा सके जिनके पास जमीन का अभाव है और जो बड़ी मुश्किल से अपना जीवन-यापन कर पाते हैं। अपने संकल्प की पूर्ति के लिए महाराष्ट्र में जन्मा यह दुबला-पतला सन्त लोकमंगल की कामना से सारे भारत में घूमा। गरीबों को सिर ढकने के लिए आवास तथा खेती के लिए जमीन की व्यवस्था कराई।

आध्यात्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों से ओतप्रोत-
इसके अलावा सर्वोदय, श्रम दान, अन्त्योदय कार्यक्रमों के द्वारा भारत की शोषित, पीड़ित जनता में स्वाभिमान का भाव जगाकर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का ऐतिहासिक काम विनोबाजी ने आरंभ किया था। विनोबाजी की पदयात्राएं आध्यात्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों से ओतप्रोत होती थी। वे इस बात के लिए सत्त क्रियाशील रहे कि समाज में संघर्ष को टाला जाए। विनोबा जी कहते थे कि सब भूमि गोपाल की है। हमारे पास जितनी भी जमीन, सम्पत्ति, बुद्धि और शक्ति है वह सब हमें आम जनता की सेवा के लिए प्राप्त हुई है। ये हमारी निजी सम्पत्तियां नहीं, दैवी सम्पत्तियां हैं, परमेश्वर की देनें हैं। उनका सद्पयोग जनता की सेवा में करना चाहिए। जिस तरह हम कुटुम्ब में मिल-जुलकर काम करते हैं, वैसे ही हमें सृष्टि की उपासना करनी है। अपने सुख-दुःख में दूसरों को हिस्सा देना है।

युद्ध रूग्ण मानसिकता का नतीजा-
प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजी शासन ने भारतीयों के विश्वास को तोड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को जबरन युद्ध में झोंका जा रहा था जिसके विरूद्ध एक व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्टूबर 1940 को शुरू किया गया था और इसमें गांधी जी द्वारा विनोबा को प्रथम सत्याग्रही बनाया गया था। अपना सत्याग्रह शुरू करने से पहले अपने विचार स्पष्ट करते हुए विनोबा ने एक वक्तव्य जारी किया था। विनोबा लोगों को बताते थे कि युद्ध रूग्ण मानसिकता का नतीजा है और इससे निपटने के लिए मानवीय तथा रचनात्मक कार्यक्रमों की जरूरत होती है। केवल यूरोप के लोगों को नहीं समस्त मानव जाति को इस महत्वपूर्ण दायित्व उठाना चाहिए।

सम्पूर्ण क्रांति के माध्यम से-
लोकनायक जयप्रकाश नारायण विनोबा जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। वर्ष 1975 मंस “सम्पूर्ण क्रांति” नामक आन्दोलन चलाया गया जिसके अग्रणी लोकनायक जयप्रकाश नारायण थे। सम्पूर्ण क्रांति के माध्यम से जेपी ने समाज के दबे कुचले लोगों के जीवन को सुधारने का प्रयास किया था तथा समाज की कुरीतियों को नष्ट करने में अहम् भूमिका निभाई थी। आधुनिक भारत ने भी ऐसा ही एक पूरा दौर देखा जिसकी मिसाल दुनिया में शायद और कहीं भी दिखाई नहीं देती। यह दौर था विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण (जेपी) के अहिंसक व्यक्तित्व और जीवन-संदेशों से प्रभावित होकर उनके सामने देश के सबसे खूंखार हथियारबंद दस्तों ने एक के बाद एक आत्मसमर्पण कर दिया था। 19 मई, 1960 को डकैत गिरोहों के 11 मुखियाओं ने विनोबा के चरणों में अपने हथियार रखते हुए आत्मसमर्पण किया था।

जय जगत यात्रा का शुभारम्भ-
डॉ. एसएन सुब्बाराव एक ऐसे गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने ‘जय जगत’ के विचार को अपने जीवन में पूर्णता से अपनाया है। डॉ. सुब्बाराव का सारा जीवन खास तौर पर नौजवानों को अन्तर्राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, सर्वधर्म समभाव और सामाजिक उत्तरदायित्वों से जोड़ने में लम्बे समय से निरन्तर संलग्न है। डॉ. सुब्बाराव बताते हैं कि उन्होंने अपने साथियों के साथ अलग-अलग भागों में डाकुओं में युवा चेतना शिविर लगाकर बदलाव कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए राजी किया। एकता फाउंडेशन ट्रस्ट के संस्थापक राजगोपाल पीवी के नेतृत्व में 2007 में जनादेश 2007- 2012 में जन सत्याग्रह 2012 और 2018 में जनांदोलन 2018 संपन्न हुआ था। अब अगले कदम के रूप में जय जगत यात्रा 2020 की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। सर्वविदित है कि 2 अक्टूबर 2019 को दिल्ली से जेनेवा के लिए एक वर्ष तक चलने वाली जय जगत यात्रा का शुभारम्भ हो रहा है। कुुल 14 देशों से होते हुए और लगभग 10 हजार किलोमीटर की यात्रा करते हुए साल भर बाद यह यात्रा जेनेवा पहुंचेगी। गांधी-150 के सिलसिले में आयोजित इस यात्रा के दौरान विभिन्न देशों में विभिन्न सामाजिक समूहों के साथ वैश्विक गरीबी, असमानता, न्याय, शान्ति तथा मानव जाति कि बुनियादी सवालों पर चर्चाओं और बैठकों का आयोजन भी होगा। उसी समय यूरोप और अफ्रीका से चलने वाली यात्राएं भी जेनेवा पहुंचेगी।

संविधान लिखते समय बड़ी भूल-
भारतीय संविधान के निर्माता डा. अम्बेडकर ने प्रत्येक नागरिक को वोट डालकर सरकार बनाने का संवैधानिक अधिकार समान रूप से प्रदान कर राजनैतिक आजादी दिलायी। देश के एक गरीब व्यक्ति तथा सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी को वोट डालने का एक समान अधिकार प्राप्त है। डॉ.अम्बेडकर ने आर्थिक आजादी के मामले में संविधान लिखते समय बड़ी भूल कर दी। इस कारण से देश में एक तरफ गरीबी की गहरी खाई है तो दूसरी ओर अमीरी आसमान छू रही है। संविधान की इस भारी भूल को सुधारने के लिए राजनीति सुधारक भरत गांधी अनेक वर्षों से वोटरशिप का मामला भारतीय लोकसभा में 135 सांसदों की लिखित सहमति से उठा रहे हैं लेकिन अफसोस वोटर द्वारा चुनी तत्कालीन लोकसभा ने जनता हित के इस महत्वपूर्ण मामले पर लोक सभा में अब तक बहस भी नहीं करायी। युवा भरत गांधी पूरे जूनून के साथ जनमत बनाने पूरी ऊर्जा के साथ लगे हुए है। देश के एक भी वोटर को आर्थिक तंगी के कारण अपनी जान तथा किसी बेटी को अपने शरीर को बेचकर इज्जत से हाथ धोना पड़े तो यह हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था के गठन की मंजिल-
विनोबाजी ने समग्र देश में भूदान, अन्त्योदय, सर्वोदय, डाकू समस्या आदि आन्दोलनों को कामयाब बनाने के लिए करीब 40 हजार मील की पदयात्राएं की थीं। उनकी ये यात्राएं विश्व की सबसे लम्बी पदयात्राएं मानी जाती हैं। उनकी पदयात्राओं तथा सेवा-कार्य को देखकर सन् 1955 में उन्हें मैगसेसे पुरस्कार से अलंकृत किया गया था। विनोबा जी ने व्यापक जन समुदाय से उनकी ही भाषा में संवाद करने के लिए देश तथा विश्व की विभिन्न भाषाओं को सीखा था। भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया था। विनोबा भावे जी की 125वीं जयंती को मानव जाति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराने के लिए ‘जय जगत’ के अनुरूप सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का हमें संकल्प लेना चाहिए। गुफाओं से शुरू हुई मानव सभ्यता की अंतिम ‘जय जगत’ अर्थात वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था के गठन की मंजिल अब बस एक कदम दूर है। इस दिशा में एक कदम बढ़ाना विनोबा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रदीप कुमार सिंह

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