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शादी के बाद माता-पिता से अलग रहने के हैं फायदे, जानिए दूरी क्यों होती है जरूरी

करियर के चलते परिवार से दूर रहना या फिर शादी के बाद निजता की वजह से परिवार से अलग रहना कई युवाओं की पसंद हो सकती है तो कइयों की मजबूरी। ऐसे में असल वजह को जानने की जरूरत है। राहुल और रीमा कई वर्षों से दोस्त हैं। ये दोस्ती अब बहुत आगे बढ़ चुकी है और एक रिश्ते में बदलने वाली है, जो कि है शादी। दोनों के माता-पिता भी इसके लिए सहमत हैं, लेकिन राहुल थोड़ा तनाव में है। वह अपने मन की बात रीमा को बताना चाहता है, मगर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। इसका कारण है रीमा का शादी के बाद राहुल के माता-पिता से अलग रहने का प्लान! राहुल अपने माता-पिता से बहुत प्यार करता है। इकलौता है तो उसके माता-पिता भी चाहते हैं कि शादी के बाद राहुल उनके साथ ही रहे। उसकी मां तो कई बार अपनी इच्छा जाहिर कर चुकी हैं कि उसको अपने से अलग नहीं रहने देंगी और यही राहुल की चिंता या कहें, समस्या का कारण है।

उधर, कपिल और कविता की शादी को बमुश्किल साल भर भी नहीं हुआ है कि रिश्ता टूटने के कगार पर है। कविता और उसकी सास में बन नहीं रही और रोज-रोज कलह होती है। हालांकि कविता ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि कपिल के माता-पिता के साथ उसका रिश्ता अच्छा रहे और घर में सब मिल-जुलकर रहें, लेकिन उसकी लाख कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं हो सका। कपिल बीच में फंसा महसूस करता है। अब स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि कविता ने कपिल को अल्टीमेटम दे दिया है कि उसे अलग रहना है। हालांकि दोनों मामले अलग हैं और दोष किसी का भी नहीं है, लेकिन यह अधिकतर परिवारों की कहानी हो सकती है। कहीं यह परिस्थितिवश पैदा हो जाती है और कहीं ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाती हैं। अब अगर ऐसा होता है तो क्यों होता है और उसको सही कैसे किया जाए, यह भी जानना जरूरी हो जाता है।

परिवार और करियर पर पश्चिमी और भारतीय कॉन्सेप्ट

पश्चिम की तरफ देखें तो वहां घर-परिवार तथा करियर का कॉन्सेप्ट अलग है और हमारे यहां की अवधारणा एवं संस्कार अलग। पश्चिम में युवा करियर के साथ ही अपने माता-पिता से अलग होकर उसी शहर में या दूर रहते हैं। माता-पिता को भी कोई आपत्ति या परेशानी नहीं होती है। युवाओं में भी एक धारणा होती है कि एक ही घर में, एक ही छत के नीचे रहेंगे तो उन्हें वह निजता और आजादी नहीं मिल सकेगी, जो उन्हें अलग घर में रहने पर मिलेगी। माता-पिता भी बच्चों को करियर और निजी जीवन को अपने तरीके से जीने की आजादी देते हैं। इसलिए वहां पारिवारिक विवाद या रिश्तों में असहमतियों की गुंजाइश कम होती है, लेकिन हमारे यहां इसके एकदम उलट है।

उलट इसलिए कि बच्चा जब युवा होता है, पढ़ाई-लिखाई के बाद जब उसकी नौकरी लगती है तो माता-पिता शादी के लिए दबाव बनाते हैं और शादी होने के बाद ही मान लिया जाता है कि जो लड़की घर में आएगी, वह परिवार की देखभाल करेगी और इसी घर में रहेगी। वह घर छोड़कर तभी जाएगी, जब लड़के के माता-पिता से अनबन हो जाए। लेकिन समय तेजी से बदल रहा है। अब भारतीय युवा भी पारिवारिक रजामंदी से अपने माता-पिता से अलग रहने लगे हैं। यहां तक कि कुछ माता-पिता भी अब बच्चों को अपने से अलग रहने की इजाजत देते हैं। इजाजत ही नहीं देते, बल्कि उनकी हर तरह से सहायता भी करते हैं।

मजबूरी में नहीं हंसी-खुशी लें अलग रहने का फैसला

महानगरों में कई माता-पिता बच्चों को अपनी ही सोसाइटी या आस-पास ही अलग घर दिला देते हैं, ताकि बच्चे मनमर्जी से रह सकें और उन पर कोई बंदिश या निजता की समस्या न हो। माता-पिता भी खुश और बच्चे भी खुश! लेकिन ऐसा बहुत कम है, अधिकतर मामलों में तो पारिवारिक अनबन, निजता, आजादी, घर के खर्चे और सामाजिकता आदि मुद्दे ही आधार होते हैं। दरअसल, माता-पिता से अलग रहने का फैसला कहीं हंसी-खुशी से होता है तो कहीं मजबूरीवश। जहां यह फैसला हंसी-खुशी से होता है, वहां इसके कई फायदे हैं और जहां

मजबूरीवश होता है, वहां कई तरह के नुकसान!

एक-दो कमरे का फ्लैट और उसमें शादी के बाद सास-ससुर के साथ रहना है। अपने लिए स्पेस तलाशना, मनचाहे कपड़े पहनना, दोस्तों का आना-जाना, सब कुछ सहज और आसान नहीं। सास-ससुर की तरफ से कोई बंदिश न होते हुए भी कई तरह की बंदिशें और औपचारिकताएं निभानी पड़ती हैं। उस पर माता-पिता के नियम-कायदे भी बीच-बीच में अपनी भूमिका निभाते हैं। अब इन सबमें तालमेल बिठा लिया तो ठीक, नहीं तो धीरे-धीरे यही मनमुटाव का कारण बन जाते हैं। लेकिन अगर लड़के-लड़की, दोनों जॉब करते हैं और माता-पिता भी शारीरिक एवं आर्थिक रूप से स्वस्थ-संपन्न हैं तो अलग रहने में कोई बुराई नहीं।

परिवार में अपने लिए स्पेस बनाएं

आजकल डिजिटल मीडिया ने दूरियों को समेटकर डिवाइस तक सीमित कर दिया है। फिर अगर उसी शहर या सोसाइटी में बच्चे हंसी-खुशी से रहते हैं तो नुकसान किस बात का? एक तरह से यह व्यक्तिगत सोच और जरूरत का मुद्दा है और इसी नजरिये से इस पर सोचने की जरूरत है। आखिर पक्षियों के बच्चे जब बड़े हो जाते हैं और उड़ना, दाना चुगना सीख जाते हैं तो वे भी अपना नया घोंसला बना लेते हैं। तब इंसान तो इंसान है, उसे तो सुख-दुख, रिश्ते-नातों का अनुभव है। इसलिए कब किसको जरूरत है, उसी हिसाब से निर्णय लेना चाहिए।

हां, आपको यहां तक पहुंचने में माता-पिता ने अपना जो कुछ लगाया है, वे आगे भी आपकी खुशी के लिए सब कुछ करेंगे। यदि उनको आपके साथ की जरूरत है तो संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी भी आप दोनों की है। हंसते-मुस्कराते अपने लिए भी स्पेस बनाएं और जिनको जरूरत है, उन्हें भी स्पेस दें, फिर खुशियों को कौन रोक सकता है!

सबसे पहले उनसे मदद मांगे

कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट साक्षी गुप्ता कहती हैं, शादी या करियर के लिए माता-पिता से दूर रहने का मतलब उनके प्रति लगाव कम होना नहीं है। दूर रहकर भी पारिवारिक रिश्ते मजबूत बने रह सकते हैं। युवा करियर के साथ ही पारिवारिक संबंधों को फोन कॉल, वीडियो चैट या संभव हो तो मुलाकात के माध्यम से मजबूत बनाए रख सकते हैं। माता-पिता और अपनी प्राथमिकताओं में संतुलन बनाएं। जब भी जरूरत पड़े, सबसे पहले माता-पिता से सलाह मांगें। कॅरिअर या निजी जीवन से संबंधित उपलब्धियों को साझा करें। ऐसा जीवन-साथी चुनें, जो परिवार को महत्व देता हो। माता-पिता के प्रति आभार व्यक्त करने से भी संबंध मजबूत होते हैं, भले ही आप दूर क्यों न हों।

हर रिश्ते में सही संतुलन

समाजशास्त्री डॉ. सृष्टि की कहती हैं, एक ही शहर में माता-पिता से अलग रहना कोई बुरी बात नहीं है। इससे बच्चों को अपना स्पेस मिलता है और स्वतंत्रता भी, जो अंततः संबंधों में विषाक्तता से मुक्त स्वस्थ सामाजिक संबंधों के निर्माण के लिए आज की आवश्यकता है। बुढ़ापा जीवन का एक संवेदनशील चरण है, जो भावनात्मक और शारीरिक रूप से माता-पिता में अपनेपन की भावना पैदा करता है। लेकिन दोनों पक्ष आपसी सहमति से अलग रहना चाहते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं। याद रखें, करियर की सफलता और पारिवारिक संबंध एक रह सकते हैं। यह युवाओं पर निर्भर है कि वे ऐसा संतुलन-समाधान ढूंढें, जो उनके लिए सही हो।

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