गुजरात में ही नहीं हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस हारती दिख रही है। इस बात पर न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल्स ने अपनी मुहर लगाई है। कांग्रेस के साथ कई अन्य दिग्गजों ने गुजरात में अपनी पूरी मेहनत झोंक दी। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस गुजरात में 22 साल बाद भी सरकार बनाने में नाकामयाब दिख रही है। बशर्ते 18 दिसंबर को कोई चमत्कार न हो। कांग्रेस के पास 22 साल के सरकार विरोधी लहर को भुनाने का जबरदस्त मौका था। मगर कुछ खास वजहों से वो ऐसा करने में सफल नहीं हो पाई। एग्जिट पोल्स ने गुजरात में कांग्रेस के हार की पटकथा लिख दी है तो दूसरी ओर बीजेपी की जीत। कांग्रेस गुजरात चुनाव में जीत का परचम नहीं लहरा पा रही है, आखिर इसके पीछे कौन-कौन से कारण होंगे। उनके बारे में कुछ खास वजह ये हैं।
मोदी मैजिक का तिलिस्म
यह सबसे बड़ी हकीकत है कि गुजरात चुनाव में बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा फैक्टर मोदी मैजिक होगा। जिसका असर पूरे चुनाव के दौरान बारीकी से देखा गया। अब उसके परिणाम के पहले जो एग्जिट पोल्स के परिणाम है वह भी इस बात पर अपनी मोहर लगा रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस के पास अभी तक मोदी मैजिक का तोड़ नहीं है। गुजरात चुनाव में भी इसकी कमी देखने को मिली। हालांकि, राहुल गांधी ने पिछले अन्य चुनावों के बरक्स इस बार पीएम मोदी को जबरदस्त टक्कर दी, मगर लोगों के सिर से मोदी मैजिक का खुमार उतारने में नाकामयाब दिखाई दिये। रैलियों में पीएम मोदी का नाम ही लोगों को खींचे चला आता है। बीजेपी अभी तक अन्य विधानसभा चुनावों में इसी का फायदा उठाती रही है। कांग्रेस के पास भले ही मोदी के टक्कर में राहुल गांधी का चेहरा हो, मगर अभी भी पीएम मोदी के चेहरे के सामने राहुल फीके पड़ जाते हैं।
बीजेपी की रणनीति के सामने कांग्रेस फेल
बीजेपी की रणनीति का ही नतीजा है कि 22 साल तक राज करने के बाद भी वो गुजरात में एक बार और सरकार बनाने जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव से बीजेपी की रणनीति में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है। खासतौर पर अमित शाह ने जब से बीजेपी की कमान संभाली है तब से तो उनकी रणनीति और दिमाग का कोई तोड़ ही नहीं निकाल पाया है। अगर कांग्रेस आगे आने वाले चुनावों में बीजेपी को मात देना चाहती है तो उसे बीजेपी की तरह ही कुछ सोचना होगा, यहां तक कि उसे टक्कर देने के लिए कुछ और बेहतर रणनीति अपनानी होगी। गुजरात में राहुल गांधी ने व्यक्तिगत तौर पर अच्छा प्रदर्शन किया, मगर कांग्रेस सामुहिक तौर पर बीजेपी की नाकामियों को भुनाने में पिछड़ गई। बीजेपी के कैडर डोर-टू-डोर कैंपने कर लोगों से संवाद स्थापित किया, मगर कांग्रेस इस मामले में भी पिछड़ गई।
मणिशंकर अय्यर का विवादित बयान
अगर गुजरात में कांग्रेस की हार होती है तो उसमें मणिशंकर अय्यर के बयान की बड़ी भूमिका होगी। अय्यर के नीच आदमी वाले बयान को बीजेपी सहित पीएम मोदी ने काफी अच्छे से भुनाया और इसे गुजरात का अपमान बताकर लोगों को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया। अय्यर का बयान ऐसे वक्त में आया था, जब गुजरात चुनाव अपने चरम पर था और आखिरी चरण के लिए दोनों पार्टियां एड़ी-चोटी का दम लगाई हुई थी। पीएम मोदी ने अय्यर के बयान को गुजरात में हथियार के रूप में ऐसे उछाला कि बीजेपी विरोधी लहर कांग्रेस विरोधी लहर में तब्दील हो गई।
पीएम मोदी को घेरने में कांग्रेस नाकाम
इस चुनाव में पीएम मोदी के बयानों में वो गंभीरता और पैनापन नहीं दिखा, जो अन्य चुनावों में देखने को मिलते थे। इस बार पीएम मोदी ने कई ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान देते नजर आए, जिस पर विवाद बढ़ता नजर आया। मगर कांग्रेस ने उस तन्मयता और गंभीरता से उन बयानों को भुनाने की कोशिश नहीं की, जैसा अमूमन बीजेपी वाले करते हैं। चाहे वो गुजरात चुनाव में पाकिस्तान की एंट्री का मामला हो या अय्यर के घर पर पाकिस्तानी अधिकारियों की मीटिंग वाली बात हो, सब में पीएम मोदी फंसते ही नजर आए, मगर कांग्रेस ने इस चुनावी हवा में पूरी ताकत के साथ नहीं उछाला। वहीं, बीजेपी ने कदम-कदम पर कांग्रेस और राहुल को घेरनेकी कोशिश की और इसमें वो सफल होते भी नजर आए। राहुल गांधी को हर हाल में सीखनी चाहिए पीएम मोदी से ये 6 बातें, नहीं तो 2019 में कांग्रेस उनके सामने टिकने भी नहीं पाई। ऐसे में टक्कर देना बहुत ही मुश्किल होगा।
जनता से जुड़ाव में कमी
अमित शाह और मोदी की वजह से गुजरात भाजपा का होमग्राउंड बन गया था। इस वजह से भी अगर राहुल और पीएम मोदी के एंगल से देखा जाए तो गुजरात की जनता को जितना बेहतर मोदी समझ सकते हैं, उतनी बेहतर समझ राहुल की नहीं है। स्थानीय होने के नाते पीएम मोदी को वहां की जनता के बारे में ए से लेकर जेड तक पता है, जिसकी वजह से पीएम मोदी और भाजपा जीतने में कामयाब नजर आ रहे हैं। मगर राहुल गांधी को वहां से ज्यादा जुड़ाव दिखाने के लिए गुजरात में बोलना जरूरी था। पीएम मोदी इस बात को जानते हैं यही वजह है कि उन्होंने अपना भाषण गुजराती में ही रखा और उससे वो वहां की जनता से जुड़ाव बनाने में सफल रहे। मगर राहुल गांधी अपनी बातों को जनता के सामने रखने में कामयाब नहीं हो सके, न ही उनसे खास जुड़ाव बना सके। इसके अलावा, राहुल गांधी के भाषणों में पंच और जुमलों की कमी देखने को मिली। चाहे चुनाव कहीं भी हो, मगर ये बात सत्य है कि अधिकतर लोग भावनाओं में ही बह कर वोट देते हैं।
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