नई दिल्ली। ‘एक देश, एक चुनाव’ के अमल में आने पर चुनाव खर्च में कम से कम 30 फीसदी की कमी की जा सकती है। हालांकि यह चुनाव आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा। हालांकि तीन दशकों से चुनाव व्यय पर नजर रख रहे एन भास्कर राव ने कहा कि ‘वोट के बदले नोट’ या मतदाताओं को लुभाने पर अंकुश लगाए बिना चुनाव खर्च में उल्लेखनीय कमी नहीं आएगी।
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2024 के लोकसभा चुनावों से पहले सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के प्रमुख राव ने अनुमान लगाया था कि यदि देश में सभी स्तरों पर चुनाव 2024 में होते हैं तो इस पर 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे। उन्होंने कहा कि ये अनुमान संसदीय चुनावों से पहले लगाए गए थे और भविष्य के चुनावों में वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इन आंकड़ों में राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आयोग को बताए गए आधिकारिक व्यय के आंकड़ों तथा चुनाव कराने में सरकार के किए गए व्यय के अतिरिक्त बेहिसाबी व्यय भी शामिल है।
उन्होंने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने पर अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये के चुनाव खर्च में से 3-5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव आयोग कितना प्रभावी है और पार्टियां कितनी सहयोगी हैं।
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‘एक देश, एक चुनाव’ पहल से अकेले चुनाव खर्च में कोई महत्वपूर्ण या पर्याप्त कमी नहीं आएगी, जब तक राजनीतिक दलों की ओर से उम्मीदवारों के चयन, प्रचार और मौजूदा पदाधिकारियों की सहूलियत से संबंधित वर्तमान प्रथाओं पर अंकुश नहीं लगाया जाता, चुनाव आयोग अधिक प्रभावी नहीं हो जाता, इसकी आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों की ओर से नहीं अपनाया जाता और चुनाव कार्यक्रम अधिक तर्कसंगत नहीं हो जाता।