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आत्मनियंत्रण, अहिंसा व सहअस्तित्व के बिना यह प्रगति बन सकती है विनाश का कारण

               डॉ सत्यवान सौरभ

आज का युग तकनीकी उन्नति (Technological Advancement) , वैज्ञानिक प्रगति (Scientific Progress) और भौतिक समृद्धि (Material Prosperity) का प्रतीक बन चुका है। लेकिन इस विकास के शोरगुल में कहीं मनुष्य का नैतिक और आत्मिक पक्ष (Moral And Spiritual Side) दबता जा रहा है। मनुष्य ने चाँद पर बस्तियाँ बसाने की तैयारी कर ली है, परंतु पृथ्वी पर जीवन की गरिमा और करुणा को बनाए रखना दिन-ब-दिन चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। ऐसे समय में भगवान महावीर (Lord Mahavir) के विचार न केवल मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, बल्कि एक चेतावनी (Warning) भी हैं – कि अगर हमने आत्मनियंत्रण, अहिंसा और सहअस्तित्व की राह नहीं अपनाई, तो यह प्रगति भी विनाश का कारण बन सकती है।

महावीर का जीवन: त्याग और तपस्या की मिसाल

भगवान महावीर का जीवन ही उनके सिद्धांतों का जीवंत उदाहरण है। एक राजकुमार होकर भी उन्होंने भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य की खोज में तपस्या का मार्ग चुना। उन्होंने आत्मा की शुद्धता, सत्य की अनुभूति और मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर साधना की। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि आत्मिक शांति बाहरी भौतिकताओं में नहीं, बल्कि आत्मानुशासन और करुणा में निहित है।

अहिंसा: आज की सबसे बड़ी ज़रूरत

महावीर स्वामी का सबसे महत्वपूर्ण संदेश था — अहिंसा परमो धर्मः। आज, जब समाज धार्मिक असहिष्णुता, जातीय हिंसा, लैंगिक अपराध, युद्धों और आतंकवाद की चपेट में है, तब यह संदेश एक प्रकाश स्तंभ की भाँति मार्गदर्शन करता है। अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा का विरोध नहीं, बल्कि विचारों, शब्दों और व्यवहार में भी करुणा का समावेश है।

आज सोशल मीडिया के माध्यम से फैलती नफरत, ट्रोलिंग, और वैचारिक कट्टरता के दौर में यदि हम महावीर की अहिंसा को अपनाएं, तो समाज में सहिष्णुता, संवाद और समझदारी को बढ़ावा मिल सकता है।

अपरिग्रह: उपभोक्तावाद के विरुद्ध एक चेतावनी

महावीर ने अपरिग्रह यानी संग्रह की प्रवृत्ति से दूर रहने का उपदेश दिया। आज का उपभोक्तावादी समाज “और चाहिए” की मानसिकता में जकड़ा है — अधिक धन, अधिक संपत्ति, अधिक उपभोग। लेकिन इसी लालसा ने पर्यावरण को प्रदूषित किया, सामाजिक असमानता बढ़ाई, और मानसिक तनाव को जन्म दिया।

अपरिग्रह का अर्थ है — आवश्यकताओं तक सीमित रहना, अनावश्यक संग्रह से बचना, और जीवन को सरल बनाना। यदि हम इस सिद्धांत को अपनाएं, तो न केवल पर्यावरण की रक्षा संभव है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

सत्य और अस्तेय: नैतिक मूल्यों का क्षरण रोकने का उपाय

आज राजनीति से लेकर कॉर्पोरेट जगत तक, झूठ और छल की नीति एक आम चलन बन गई है। तथाकथित “स्मार्टनेस” का मतलब अब चालाकी और नैतिकता से समझौता करना हो गया है। लेकिन महावीर का सिद्धांत था — सत्य बोलो और चोरी न करो।

आज जब फेक न्यूज, धोखाधड़ी, और अनैतिक व्यवहार समाज का हिस्सा बन चुके हैं, तब सत्य और अस्तेय का पालन ही हमें नैतिक रूप से पुनः ऊँचाई पर ले जा सकता है। यह व्यक्तिगत आचरण से लेकर राष्ट्रीय चरित्र तक का निर्माण करता है।

ब्रह्मचर्य: आत्मसंयम और मानसिक शुद्धि का मार्ग

ब्रह्मचर्य को आज सिर्फ एक धार्मिक सिद्धांत मानकर छोड़ दिया गया है, जबकि महावीर के अनुसार यह आत्म-नियंत्रण और मानसिक शुद्धता का साधन है। आज की पीढ़ी इंटरनेट, मनोरंजन और तात्कालिक सुखों के आभासी संसार में आत्मविस्मृति की ओर बढ़ रही है।

ब्रह्मचर्य का आशय यहां केवल यौन संयम से नहीं है, बल्कि समग्र इंद्रिय-नियंत्रण से है। जब मनुष्य अपने इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीख जाता है, तभी वह सच्चे अर्थों में स्वतंत्र होता है।

समवेदना और जीवदया: पर्यावरण और प्राणी मात्र के लिए सहअस्तित्व

महावीर का संदेश केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं था। उन्होंने समस्त प्राणियों के प्रति करुणा और दया की बात कही। आज जब हम जंगलों को काट कर विकास की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं, जानवरों के आवास छीन रहे हैं, और पर्यावरण को विनाश की ओर ले जा रहे हैं — तब यह संदेश हमारी चेतना को झकझोरता है।

जीवदया न केवल अहिंसा की भावना है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिकी की रक्षा का आधार भी है। महावीर के सिद्धांतों को अपनाना, एक हरित, टिकाऊ और सह-अस्तित्व पर आधारित दुनिया के निर्माण की ओर कदम है।

मानवाधिकार, न्याय और सामाजिक समानता

आज जब दुनिया जाति, लिंग, धर्म, और आर्थिक असमानता की खाई में उलझी है, तब महावीर का यह विश्वास कि हर जीव आत्मा है और हर आत्मा समान है — सामाजिक न्याय का सशक्त आधार बन सकता है। जैन दर्शन में किसी को नीच या उच्च नहीं माना जाता; सबको मोक्ष का अधिकार है। यही भावना आज के सामाजिक आंदोलनों और मानवाधिकार की मांगों की आत्मा हो सकती है।

आध्यात्मिकता बनाम धर्म का दिखावा

आज धार्मिकता का मतलब पूजा-पाठ, कर्मकांड और बाहरी प्रदर्शन रह गया है, जबकि महावीर की शिक्षाएं आंतरिक शुद्धि और आत्मा की मुक्ति की ओर इंगित करती हैं। धर्म को यदि आडंबरों से निकालकर आत्मा की यात्रा के रूप में देखा जाए, तो यह समाज में पाखंड को खत्म करने का उपाय बन सकता है।

भगवान महावीर के विचार किसी कालखंड तक सीमित नहीं हैं। वे सार्वकालिक हैं — हर युग, हर समाज, हर मनुष्य के लिए। आज का दौर, जिसमें मानसिक तनाव, सामाजिक हिंसा, और नैतिक पतन चरम पर है, वहाँ महावीर की शिक्षाएं एक समाधान के रूप में सामने आती हैं।

हमें यह समझना होगा कि महावीर का दर्शन केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए है। उनकी शिक्षाओं को अपनाकर हम एक अधिक सहिष्णु, करुणामय, न्यायसंगत और संतुलित समाज की नींव रख सकते हैं।

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