लगातार गत वर्षों से इस क्रूर ,मानवता की हत्या को देखते हुए, Chandrabhan Bishnoi (चन्द्रभान बिश्नोई) की कुछ पंक्तियाँ – तुम जानवर ही रहे?
पत्थरों में पहाङों में, गर्मियों में जाङों में,
दिन में रात में, एकान्त में साथ में,
तुम जानवर ही रहे?
न तुम्हें प्रकृति
बदल सकी और न ही इंसान !
तुम मनुष्य हो ही नहीं सकते,
तुम्हारे भीतर बैठा है बङा हैवान,
जो तलाशता है मौके,
और कर देता है क़त्ल समूची मानवता का !
तुम यूँ ही गलती से आ गए,स्त्री की कोख में,
क्योंकि मनुष्य बनाते समय बहुत बार
ऊपर वाला भी ग़लती कर बैठता है ।
अनजाने में हुई उस गलती को,
भुनाने में तुम कब चूकते हो?
तुम कब चूकते हो हवश की हदों को पार करने में
तुम घटिया जानवर हो न
मजा़ आता है शिकार करने में !
और हाँ –
तुम्हें जानवर कहने में भी संकोच है मुझे,
क्योंकि जानवर भी तो उतने क्रूर नहीं है,
जितने तुम हो !
तुम समझते हो न कि रक्त है तुम्हारी रगों में …..
यह तुम्हारी बङी भूल है
तुम्हारी नसों में पानी है ,कीचङ है।
और जिस कृत्य को अंजाम देकर
तुम शेखी बघारते हो,
वह कायरता है !
धन-राज-बाहु का जो बल,
तुम समझते हो कि तुम्हारे साथ है,
लेकिन …….
भूल जाना अब ये सारे हथकंडे
काम नहीं आने वाले हैं।
तुम मनुष्यों की तरह नहीं,
कुत्तों की तरह मरने को तैयार रहो,
तुम जीते जी किसी के काम न आ सके,
मगर अब गिद्धों/चीलों/ बाजों के तो काम आ ही सकोगे ,
कुछ ऐसी ही तुम्हारी अंत्येष्टि(दुर्गति) होने वाली है !
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