लगातार गत वर्षों से इस क्रूर ,मानवता की हत्या को देखते हुए, Chandrabhan Bishnoi (चन्द्रभान बिश्नोई) की कुछ पंक्तियाँ – तुम जानवर ही रहे? पत्थरों में पहाङों में, गर्मियों में जाङों में, दिन में रात में, एकान्त में साथ में, तुम जानवर ही रहे? न तुम्हें प्रकृति बदल सकी और न ही ...
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