पश्चिम बंगाल कम्युनिस्ट पार्टियों का सफाया है गया है,लेकिन उनके विचार ममता बनर्जी के नेतृत्व में संरक्षित व संवर्धित हो रहे है। इसका प्रमुख कारण यह है कि कम्युनिस्ट कैडर करीब एक दशक पहले ही तृणमूल कॉंग्रेस में शामिल हो चुका है। यहां सरकार तो बदली लेकिन राजनीति व शासन का अंदाज यथावत है। जिस प्रकार वामपंथियों ने तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में शासन चलाया था,ममता बनर्जी भी उसी मार्ग का अनुशरण कर रही है। वह जानती है कि इस अराजक कैडर के बल पर यहां लंबे समय तक शासन किया जा सकता है। यह कैडर विरोधियों का हिंसक तरीके से दमन करता है। भय का वातावरण निर्मित करता है।
इससे सत्ता पक्ष के विरोधियों का मनोबल गिराया जाता है। करीब नब्बे सीटों पर भाजपा मामूली अंतर से पराजित हुई है। बताया जा रहा है कि भय के वातावरण के कारण ही भाजपा के बड़ी संख्या में समर्थक वोट देने ही नहीं गए। यह सही है कि चुनाव के दौरान यहां केंद्रीय सुरक्षा बल भी तैनात थे। लेकिन इनकी संख्या इतनी भी नहीं थी कि सभी जगह इनका नियंत्रण हो सके। चुनावी सभाओं में ममता बनर्जी की खुली धमकी ने भी भाजपा समर्थकों के बीच भय का माहौल बनाया। उनका बयान तृणमूल कॉंग्रेस कैडर का मनोबल बढ़ाने के लिए था। ममता बनर्जी का कहना था कि केंद्रीय सुरक्षा बल चुनाव तक हैं। उसके बाद एक एक को देख लिया जाएगा। यह तृणमूल कॉंग्रेस का विरोध करने वालों की तरफ खुला इशारा था।
इसके बाद तृणमूल कॉंग्रेस के कार्यकर्ता विरोधियों को डराने धमकाने में लग गए था। इसका अप्रत्यक्ष परिणाम चुनाव पर पड़ा। चुनाव के बाद तृणमूल कॉंग्रेस अपनी सुप्रीमों धमकी के अनुरूप ही आचरण कर रहे है। विरोधियों पर हमले का यह वामपंथी विचार है। बिडंबना यह कि ममता बनर्जी स्वयं इन वामपंथी विचारों के अनुसार प्रताड़ित होती रही है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहते हुए उनको संरक्षण मिला था। इसके चलते वह पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों विरोधी राजनीति में सक्रिय हो सकी थी। कम्युनिस्ट सरकार नैनों कार का कारखाना लगाने के लिए किसानों की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर रही थी। कम्युनिस्ट कैडर ने किसानों के विरोध में मोर्चा भी खोला था। तब ममता बनर्जी ने किसानों के समर्थन में धरना दिया था। भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उनको समर्थन देने धरना स्थल पर पहुंचे थे। इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं के संरक्षण में ही ममता बनर्जी कई दिन तक धरना चला सकी थी। इस प्रकार की राजनीति ने ही ममता बनर्जी को वामपंथियों के विकल्प के रूप में मजबूत बनाया था।
बंगाल के लोगों को लगा कि ममता बनर्जी ही उन्हें कम्युनिस्ट कैडर की दबंगई से मुक्ति दिला सकती है। लेकिन ममता बनर्जी स्वयं इसी रास्ते पर चलने लगीं। तुष्टिकरण उसी तरह जारी रखा गया। हिंदुओं के जुलूस रोके गए। ममता के सहयोगी कह रहे थे कि बांग्लादेश के घुसपैठियों के लिए पश्चिम बंगाल सर्वाधिक सुरक्षित स्थान है। इसमें हिंसक प्रवत्ति के रोहंगिया के प्रति भी शामिल थे। इन सबको खूब बढ़ावा मिला। इनके कारण पर सौ से अधिक विधानसभाओं में भय का माहौल बनाया गया था। भाजपा की बढ़त ने ममता बनर्जी की परेशानी बढाई है।
तृणमूल को जहां करीब पांच सीटों का लाभ हुआ,वहीं भाजपा को सत्तर सीटों का लाभ हुआ। लोकसभा में उसकी अठारह सीट है। इसके अलावा पहली बार ममता बनर्जी को वैचारिक व संख्या दोनों दृष्टियों से मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है। इसके पहले कम्युनिस्ट व कांग्रेस विपक्ष में थे। इनमें व तृणमूल कॉंग्रेस में कोई अंतर नहीं था। इसलिए इन पार्टियों से ममता बनर्जी को पिछले दस वर्षों में कोई चुनौती नहीं मिली। कॉंग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टियों के कार्यकर्ता तृणमूल कॉंग्रेस में चले गए।
इसलिये भी ये दल निराधार हो गए थे। भाजपा ने ही तृणमूल को मजबूत चुनौती थी। इसीलिये ममता बनर्जी को चुनाव में अपना गोत्र बताना पड़ा,चंडी पाठ करना पड़ा। इसी के साथ वह मुसलमानों से एकजुट होकर तृणमूल को वोट देने की अपील कर रही थी। भारत के अन्य हिस्सों के लोगों को बाहरी बताया जा रहा था। विरोधियों को धमकी भी दी जा रही थी। वर्तमान हिंसा इसी के अनुरूप है। ममता बनर्जी को समझना चाहिए कि मुख्यमंत्री होने के साथ पार्टी की मुखिया भी है। दोनों रूप में संवैधानिक तन्त्र का उचित संचालन उनका दायित्व है। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता भाजपा के कार्यकर्ताओं व कार्यालयों पर हमला बोल रहे है। प्रदेश सरकार तमाशा देख रही है। ऐसे में राज्यपाल की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। राज्य की स्थिति से केंद्र को अवगत कराना राज्यपाल का संवैधानिक अधिकार व कर्तव्य है।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ इस दिशा में अपने स्तर से प्रयास भी कर रहे है। उन्होंने पुलिस महानिदेशक व कोलकाता पुलिस कमिश्नर सोमेन से तत्काल रिपोर्ट तलब की। इन अधिकारियों ने राज्यपाल से मुलाकात कर कार्रवाई का आश्वासन दिया था। किंतु लगता है कि तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने सरकारी तंत्र लाचार है। क्योंकि वह मुख्यमंत्री को नाराज नहीं करना चाहते। इसलिये राज्यपाल को दिए गए आश्वासन के बावजूद भी हिंसा गतिविधियां कम नहीं हुई है। इसलिए राज्यपाल को कहना पड़ा कि रिपोर्ट्स भयावह स्थिति को दर्शाती हैं। भयभीत लोग खुद को बचाने के लिए भाग रहे हैं। संवैधानिक मूल्यों के प्रति इस तरह के संबंध को नहीं माना जा सकता। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को स्थिति संभालने के निर्देश दिए है।
केंद्र सरकार भी पश्चिम बंगाल की अराजकता और प्रदेश सरकार की लापरवाही से चिंतित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यपाल को फोन करके स्थिति की जानकारी ली। उन्होंने गंभीर व चिंताजनक कानून और व्यवस्था की स्थिति पर अपनी गंभीर पीड़ा और चिंता व्यक्त की थी। राज्यपाल ने ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री की चिंता से अवगत कराया। कहा कि राज्य में हिंसा बर्बरता,आगजनी,लूट और हत्याएं बेरोकटोक जारी हैं। इस पर नियंत्रण अपरिहार्य है। केंद्र सरकार को इसे रोकने के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी का आचरण संविधान विरोधी है।